Friday, December 30, 2011

शुक्र है..शुक्रवार है..#30 ___________(महफ़िल की रात है)


हाँ खुल के मुस्कुराइये, महफ़िल की रात है,
ग़म सारे भूल जाइये, महफ़िल की रात है,
दामन मुंई तन्हाई से, अब तो छुड़ाइये,
बांहे ज़रा फ़ैलाइये, महफ़िल की रात है..

मुद्दत हुई जिनसे मिले, उनको बुलाइये,
यारों के साथ बैठिए, किस्से सुनाइये,
फिर जाम कुछ लड़ाइये, महफ़िल की रात है,
फिर होश कुछ गंवांइये, महफ़िल की रात है..

दिल की शमां को फिरसे यूं, रौशन बनाइये,
जो याद खुशी रोकती हैं, सब जलाइये,
धुंए में सब उड़ाइये, महफ़िल की रात है,
बस पीते चले जाइये, महफ़िल की रात है..

ग़म सारे भूल जाइये, महफ़िल की रात है..
अब खुल के मुस्कुराइये, महफ़िल की रात है,

इस जन्म के अधूरे, वादों के जैसा गुज़रे..


ये साल जो आएगा, बस साल नया होगा,
ना ज़ख़्म भर चलेंगे, ना हाल नया होगा,
इस साल में नया सा, कुछ भी तो नहीं होगा,
जो अब तलक हुआ है, आगे भी वही होगा,
कुछ अंक बदलने से, क्या वक़्त बदलता है,
बस मन का ये वहम है, बस मन ही बहलता है..

आदत है कौन सी जो, मैं छोड़ने की ठानूं,
इक सांस, इक है धड़कन, मैं किसको बुरा मानूं,
ज़िन्दा हूं जिस सहारे, उसको मैं कैसे छोड़ूं,
ये हाथ की लकीरें, बतलाओ कैसे मोड़ूं,
ये साल का बदलना, ना आख़िरी दफ़ा है,
जितने बचे हैं बाक़ी, इतनी सी इल्तजा है..

नए साल कितने भी हों, सब हाथों-हाथ गुज़रें,
गए साल से पहले की, यादों के साथ गुज़रें..
था साथ कुछ ही पल का, पर शुक्रिया ख़ुदाया,
उन कुछ पलों को मैने, जीते हुए बिताया,
उन कुछ पलों के दम पे, मैं अश्क़ हर पियूंगा,
उन कुछ पलों के दम पे, मैं उम्र भर जियूंगा..

बस एक दुआ मेरी, क़ुबूल ख़ुदा करना,
इक जन्म नया देना, जिसमें ना जुदा करना,
इक जन्म जो पूरा ही, यादों के जैसा ग़ुज़रे,
इस जन्म के अधूरे, वादों के जैसा गुज़रे..
इस जन्म के अधूरे, वादों के जैसा गुज़रे..
इस जन्म के अधूरे, वादों के जैसा गुज़रे..

Thursday, December 29, 2011

गए साल का हर पल, कई साल में गुज़रा..



अब कैसे बताऊं मैं, किस हाल में गुज़रा,
गए साल का हर पल, कई साल में गुज़रा..

ये साल था पहला जो, बीता जुदाई में,
तेरे साथ ना होने की, मुश्क़िल सफ़ाई में,
तुझको भुलाया, तेरे ही ख़याल में गुज़रा,
गए साल का हर पल, कई साल में गुज़रा..

तुझसे किए जो वादे, पूरे नहीं किए,
वो अश्क़ जो आँखों से, गिरने तेरी दिए,
हर सांस जिस्म से मेरे, मलाल में गुज़रा,
गए साल का हर पल, कई साल में गुज़रा..

मुझको पता था, कि तू, नाराज़ है मुझसे,
जो हाल था तेरा वो, क्या राज़ है मुझसे,
हर क़तरा ख़ून दिल से, उबाल में गुज़रा,
गए साल का हर पल, कई साल में गुज़रा..

दिल पे था मेरे तेरा, है तेरा हक़ मग़र,
कुछ कर्ज़ थे, कुछ फर्ज़ हैं, तुझको भी है ख़बर,
मालूम थे जवाब, पर सवाल में गुज़रा,
गए साल का हर पल, कई साल में गुज़रा..

नए साल की मनाऊं खुशी, या मैं रो पड़ूं,
अपने ही फ़ैसलों पे, अपने आप से लड़ूं,
अच्छे बुरे के उलझे हुए, जाल में गुज़रा,
गए साल का हर पल, कई साल में गुज़रा..

अब कैसे बताऊं मैं, किस हाल में गुज़रा,
गए साल का हर पल, कई साल में गुज़रा..


Friday, December 23, 2011

शुक्र है..शुक्रवार है..#29 ________ (मुझे पीने से ना रोको)



मुझे जीने से ना रोको, ज़ख़्म सीने से ना रोको,
मुझे भी सांस लेने दो, मुझे पीने से ना रोको..

मैं गलता हूं तो गलने दो, मेरे दिल को भी जलने दो,
मेरी तुम ना करो परवाह, मुझे पीने से ना रोको..

तुम्हारे ही रिवाज़ों ने, तुम्हारे ही समाजों ने,
मुझे पीना सिखाया है, मुझे पीने से ना रोको..

उसे आने दिया तुमने, उसे छाने दिया तुमने,
उसे जाने से ना रोका, मुझे पीने से ना रोको..

ख़ुदा से ना डराओ तुम, मज़हब से ना बनाओ तुम,
ये सब तुमने बनाया है, मुझे पीने से ना रोको..

Thursday, December 22, 2011

मैं तुझको क्या बताऊं माँ..


मैं तुझको क्या बताऊं माँ,
मैं तुझसे क्या छुपाऊं माँ,
मुझे मालूम है, तुझको पता है, हाल सब मेरा,
मग़र कहके, "दुखी हूं मैं", तुझे कैसे सताऊं माँ..

मैं लिपटा मुश्किलों में हूं,
मैं उलझा मंज़िलों में हूं,
मुझे मालूम है, तू है मरहम, हर ज़ख़्म का मेरे,
मग़र तुझको दिखाकर चोट, मैं कैसे रुलाऊं माँ..

मैं कोशिश रोज़ करता हूं,
मैं हर इक रोज़ मरता हूं,
मुझे मालूम है, मुझपर भरोसा है तुझे पूरा,
मग़र टूटा मेरा ख़ुदपे, तुझे कैसे दिखाऊं माँ..

मेरी मुस्कान झूठी है,
मेरी उम्मीद टूटी है,
मुझे मालूम है, देगा सुकूं, रोना तेरे आगे,
मग़र बेटा हूं, आंसू आँख से, कैसे बहाऊं माँ..
बेटा हूं, आंसू आँख से, कैसे बहाऊं माँ..

मैं तुझको क्या बताऊं माँ,
मैं तुझसे क्या छुपाऊं माँ..

Friday, December 16, 2011

शुक्र है..शुक्रवार है..#28


फिर सब साथ में आओ यारों,
जाम से जाम लड़ाओ यारों,
जहां ठहरा हुआ है आज भी दिल,
वापस वक़्त वो लाओ यारों..

मैं हंसते-हंसते रो पड़ूं फिर से,
बेहुदा बात पे अड़ूं फिर से,
नए कुछ किस्से बनाओ यारों,
वापस वक़्त वो लाओ यारों..

ज़रा कुछ जोश सा मुझमें भर दो,
ज़रा बेहोश सा मुझको कर दो,
मुझे फिर मुझसे मिलाओ यारों,
वापस वक़्त वो लाओ यारों..

ना ग़म हो, ना हो ग़म की कोई ख़बर,
ना हो बहके हुए क़दमों की फ़िक़र,
मुझे फिर इतनी पिलाओ यारों,
वापस वक़्त वो लाओ यारों..

Thursday, December 15, 2011

झुकेगा ना थकेगा ना रुकेगा ठान ले..


शून्य से, अपार से,
बदिराओं की हुंकार से,
ब्रह्मांड भर के भार से,
अम्बर कभी झुका है क्या..
कर्तव्य की पुकार से,
कठिनाई की ललकार से,
इच्छाओं के विकार से,
तू झुका है क्यूं..

प्रकाश के प्रहार से,
निशा के अंधकार से,
पुनः पुनः के वार से,
सूरज कभी थका है क्या..
प्रयास का अपमान कर,
स्वयं को क्षीण जान कर,
क्षण में हार मान कर,
तू थका है क्यूं..

सूखे से या अकाल से,
आंधी से या भूचाल से,
जीवन से या कि काल से,
समय कभी रुका है क्या..
वो खो गया है इसलिये,
तू रो गया है इसलिये,
कुछ हो गया है इसलिये,
तू रुका है क्यूं..

अम्बर से.. सूरज से.. समय से ज्ञान ले,
झुकेगा ना थकेगा ना रुकेगा ठान ले..
झुकेगा ना थकेगा ना रुकेगा ठान ले..

Monday, December 12, 2011

कुर्बानी


ये बिन अपवाद, आंसू-दर्द, अपने संग लाती है,
इच्छा और अच्छा में, उबलती जंग लाती है,
गुज़रती क्या है कुर्बानी में कुर्बां पर, है ये जाना,
बस अब ये देखना बाकी है, क्या ये रंग लाती है..

Friday, December 9, 2011

शुक्र है..शुक्रवार है..#27



मैं इसको पा बहकता हूं, ये मेरी हो महकती है,
मैं तब जाके सुलझता हूं, ये जब मुझमें उलझती है,
ना मैं सबको समझता हूं, ना सब मुझको समझते हैं,
मैं जब ख़ुदको नहीं पाता, मय तब मुझको समझती है..

Wednesday, December 7, 2011

जवाब तब मिले हैं, जब सवाल खो गए..


तलाशते तलाशते, ख़याल खो गए,
जवाब तब मिले हैं, जब सवाल खो गए..

अब क्या बताऊं मैं, के कितना वक़्त हो गया,
"साल हो गए" कहे भी, साल हो गए..

वो सपना, वो ख़्वाहिश, वो आरज़ू, वो तमन्ना,
दुनिया के झमेलों में, सब हलाल हो गए..

जब तक था साथ, तब तलक थे रास्ते सीधे,
तन्हा चला, तो सब उलझ के जाल हो गए..

इश़्क था, उनको भी था, मुझको भी था, फिर क्यूं,
बेहाल हो गया मैं, वो निहाल हो गए..

वो करते रहे ज़ुल्म, मैने उफ़ नहीं किया,
वो थक गए, मैं हंस पड़ा, बवाल हो गए..

धोखों से, दग़ाओं से कुछ तो फ़ायदा हुआ,
कलम हुई तलवार, लफ़्ज़ ढाल हो गए..

ये श़ेर क्या हैं, क्या ग़ज़ल, हैं बस ग़म-ए-'घायल',
जितना मैं रोया, उतने ही कमाल हो गए..

Friday, December 2, 2011

शुक्र है..शुक्रवार है..#26



मंदिरों में, मस्जिदों में, ना-मंज़ूर हो गए,
भगवान से, ख़ुदा से, थोड़ा दूर हो गए,
अज़ान-आरती, हैं दोनो देती सुनाई,
नज़दीक़ थे जो मयकदे, मशहूर हो गए..

Monday, November 28, 2011

यही तो चाहता था मैं..


यही तो चाहता था मैं..
यही तो चाहता था मैं, वो मुझसे दूर रह पाए,
मैं उसको भूल ना पाऊं, उसे मेरी याद ना आए,
वो मुझको भूल बैठी है, वो खुश है आज बिन मेरे,
यही तो चाहता था मैं, तो फिर सांसें जमी क्यूं है...

यही तो चाहता था मैं..
यही तो चाहता था मैं, मुझे दिल से मिटा दे वो,
जो लम्हे संग थे ग़ुज़रे, ज़हन से सब हटा दे वो,
नहीं नाम-ओ-निशां मेरा, वो खुश है आज बिन मेरे,
यही तो चाहता था मैं, तो फिर इतनी कमी क्यूं है...

यही तो चाहता था मैं..
यही तो चाहता था मैं, मेरे बिन सीख ले जीना,
ना रखे आस कंधे की, वो आंसू सीख ले पीना,
हंसी उसके लबों पर है, वो खुश है आज बिन मेरे,
यही तो चाहता था मैं, तो आँखों में नमी क्यूं है...

यही तो चाहता था मैं..
यही तो चाहता था मैं, वो दिल अपना खुला रखे,
कोई मेरे सिवा भाए, तो ना दिल में गिला रखे,
बसा कर और को दिल में, वो खुश है आज बिन मेरे,
यही तो चाहता था मैं, तो ये धड़क
 थमी क्यूं है...
मेरी धड़कन थमी क्यूं हैं..

Wednesday, November 23, 2011

दर्द लफ़्ज़ों में बयां करता हूँ..



मैं-इश्क़ बे-पनाह करता हूँ,
कोई पूछे तो-मना करता हूँ,
आह बातों में छुपा लेता हूँ,
दर्द लफ़्ज़ों में-बयां करता हूँ..

मैं उसकी एक झलक की ख़ातिर,
ना पूछ कितनी दुआ करता हूँ,
वो जिस गली से कभी गुज़री थी,
वहीं कदमों के निशां करता हूँ..

उसकी कसमों को निभाने के लिये,
रोज़ ख़ुद से मैं दग़ा करता हूँ,
वो रहे पास या हो दूर कहीं,
वफ़ा करता था, वफ़ा करता हूँ..

लो आँख बंद की, वो आई नज़र,
यूं फ़ासलों को फना करता हूं,
इश्क़ को साथ ज़रूरी तो नहीं,
साथ करता था, जुदा करता हूं,

आएगी फिर से मेरी किस्मत में,
यही उम्मीद सदा करता हूँ,
वक़्त को तेज़ चलाने के लिये,
चाँद-सूरज को हवा करता हूँ..

कभी जो ऊबता हूँ जीने से,
चंद ज़ख्मों को हरा करता हूँ,
उसकी यादें मिला के सांसों में,
दवा सा फूंक, भरा करता हूँ..

जो उसको बेव़फा बताते हैं,
उन्हे दर से ही दफ़ा करता हूँ,
मैं जानता हूँ उसकी जान हूँ मैं,
उसकी धड़कन में बसा करता हूँ..


Tuesday, November 22, 2011

इतना भी मैं 'घायल' नहीं हूँ..



मैं तूफ़ां हूँ जले दिल का, कोई बादल नहीं हूँ,
कफ़न हूँ इश्क़ का मैं, माँ का मैं आँचल नहीं हूँ..

दग़ा देकर मुझे, आगे मेरे मासूम ना बन,
ये माना इश्क़ में पागल-हूँ-मैं, पागल नहीं हूँ..

भुलाने में मुझे लग जाएगी ता-उम्र तेरी,
गुज़र जाए जो पल भर में, के मैं वो पल नहीं हूँ..

कभी रस्ते में ग़र मिल जाऊं, तो बचके ग़ुज़रना,
बवंडर बन गया हूँ, अब ज़रा हलचल नहीं हूँ..

सहारे की ना मुझसे अब कभी उम्मीद रखना,
मैं ख़ुद मुश्किल हूँ तेरी, मुश्किलों का हल नहीं हूँ..

कोई जब तोड़ दे दिल, तो ना मेरे पास आना,
तू मेरा कल थी, लेकिन अब मैं तेरा कल नहीं हूँ..

तेरे हर वार का बदला मैं तुझसे गिन के लूंगा,
ज़ख़्म कितने भी हों, इतना भी मैं 'घायल' नहीं हूँ..


Saturday, November 19, 2011

फिर से जाम मैं उठाऊंगा...


फिर से जाम मैं उठाऊंगा,
फिर सिगरेट ज़रा जलाऊंगा,
तमाशा फिर बनेगा दुनिया में,
आग से आग मैं बुझाऊंगा..
फिर से जाम मैं...

फिर तेरी याद चली आएगी,
मेरी झूठी हंसी भी जाएगी,
तमाशा फिर बनेगा दुनिया में,
ख़ून आँखों से मैं बहाऊंगा..
फिर से जाम मैं...

फिर ख़ुद से करूंगा वादे मैं,
तुझे भुलाने के इरादे मैं,
तमाशा फिर बनेगा दुनिया में,
सुबह को सब मैं भूल जाऊंगा..
फिर से जाम मैं..

दर्द फिर हद से गुज़र जाएगा,
हाल-ए-दिल, दिल में ना रह पाएगा,
तमाशा फिर बनेगा दुनिया में,
ख़त लिख-लिख के मैं मिटाऊंगा..

फिर से जाम मैं उठाऊंगा..
फिर से जाम मैं उठाऊंगा..

Thursday, November 17, 2011

क़लम ख़ामोश है..



क़लम ख़ामोश है, कुछ लफ़्ज़ भी नाराज़ बैठे हैं,
ना जाने क्या लिये दिल में, मेरे अल्फाज़ बैठे हैं,
सुबह होने को है, काग़ज़ मग़र कोरा का कोरा है,
ख़यालों के परिंदे, आज बे-परवाज़ बैठे हैं..

ये कोशिश है, के जो लिखूं, कोई ताज़ा तराना हो,
नई सी बात हो कोई, नया कोई फ़साना हो,
नए ज़ख़्मों की ख़ातिर, है बची बाक़ी जगह थोड़ी,
जो हैं उनको भुलाकर, और खाने का बहाना हो..

लो फिर दिल हो चला भारी, उभर कुछ याद आई हैं,
निगाहें भी हुई नम सी, बड़ी मुश्क़िल छुपाई हैं,
नया लिखने को था बैठा, पुराना ही मग़र किस्सा,
के भीगी सी सियाही ने, लकीरें सी बनाई हैं..

"ना कोई एक भी छलके, अदा हो अश्क़ पीने में,
पियाला दिल का भर जाए, मज़ा तब आए जीने में,
जो आँखों से बहे, पानी है वो, आँसू तो बस वो है,
कलम से जो बहे, बस जाए जो काग़ज़ के सीने में.."



Wednesday, November 16, 2011

रात ये कटे कैसे..



है-दिल-में-आग, धुआं आँख से छटे कैसे,
थमा है-वक़्त, आज रात ये कटे कैसे..

ना जाने कब से चाँद, एक जगह ठहरा है,
मैं तारे कैसे गिनूं, बादलों का पहरा है,
कोई भी शोर नहीं, ध्यान ही बटे कैसे,
थमा है वक़्त, आज रात ये कटे कैसे..

कोई जुगनूं भी नहीं दूर तक नज़र आता,
है एक तन्हाई, दूसरा है सन्नाटा,
है होड़ दोनो में, पीछे इक हटे कैसे,
थमा है वक़्त, आज रात ये कटे कैसे..

कोई तो आए, कहीं से भी हो ज़माने में,
हो वो अन्जाने में, या मेरे पहचाने में,
ना मुझसे पूछ, ढूंढता हूं आहटें कैसे,
थमा है वक़्त, आज रात ये कटे कैसे..

है बस उम्मीद यही, ग़र मेरा सपना होगा,
तो जल्द टूट जाएगा, नहीं अपना होगा,
है डर के सच ना हो ये, बदलूं करवटें कैसे,
थमा है वक़्त, आज रात ये कटे कैसे..

है दिल में आग, धुआं आँख से हटे कैसे,
थमा है वक़्त, आज रात ये कटे कैसे..


Tuesday, November 15, 2011

ये सच नहीं, के मोहब्बत ये बस इक बार है मुमकिन..


ये-सच-नहीं, के-मोहब्बत ये-बस-इक-बार-है-मुमकिन,
ना-झूठ ये के-फिर-ना अब किसी से-प्यार-है-मुमकिन,
ना-ऐसा ही, के-मैं-तौबा ही-कर गया हूं इश्क़ से,
ना यूं ही-है, के-फिर किसी पे ऐतबार-है-मुमकिन..

सभी को है ख़बर, ना-सहरा में बहार है मुमकिन,
ना ठेस पहुंचा हुआ दिल-ही बे-दरार है मुमकिन,
मग़र करूं, तो-क्या शिक़वा करूं मैं अपनी समझ से,
हो जिसको इश्क़, भला कैसे होशियार है मुमकिन,

ना भूलता है वो भूले, ना यादगार है मुमकिन,
मेरी यादों पे वो लम्हा, बड़ा दुश्वार है मुमकिन,
है ये मालूम, के वो बेवफ़ा, था बेवफ़ा लेकिन,
ना कहना, उस हसीं-ग़द्दार को ग़द्दार, है मुमकिन..

कभी लगता है, अब-भी थोड़ा इंतज़ार है मुमकिन,
ज़रा दीदार, या इज़हार, या इक़रार है मुमकिन,
हज़ारो कोशिशें की, मर्ज़ मेरा दूर हो, लेकिन,
कहीं बाक़ी अभी-भी, थोड़ा सा बुख़ार, है मुमकिन,

के जैसे बिन पिये कभी-कभी, ख़ुमार है मुमकिन
हाँ वैसे ही, बिना-दर दिल-की-भी दीवार है मुमकिन,
जो ना समझे शुमार हार, कभी हश्र-ए-इश्क़ में,
उसे बेकार इक मज़ार बिन दीवार, है मुमकिन..

ये माना, मुश्किलों से मंज़िल-इख़्तियार है मुमकिन,
मगर इस इश्क़ की राहों में बस गुबार है मुमकिन,
वहाँ ना दिल के बदले दिल की रख उम्मीद तू 'घायल'
जहाँ के इश्क़ का, हर मोड़ पे बाज़ार है मुमकिन..

Friday, November 11, 2011

शुक्र है.. शुक्रवार है..#25


ये दिन ऐसा, के जब आता है तब त्योहार होता है,
इसी की राह तकते, पूरा हफ़्ता पार होता है,
ये ना होता अगर, तो है कसम, के जी ना पाते हम,
खुदा का शुक्र है, दुनिया में शुक्रवार होता है..

Monday, November 7, 2011

कुछ भी नहीं..


हो-कोई बात, कुछ-भी-हो, तो-बात कुछ-भी-नहीं,
है-मुसीबत तो-यही बस, के-बात कुछ-भी-नहीं..

कभी लगती है जहन्नुम, कभी जन्नत लेकिन,
सहर का इंतज़ार है ये रात, कुछ भी नहीं..

यूं तो मिलने को रोज़, कितने लोग मिलते हैं,
ना मिलें दिल, तो बस है वारदात, कुछ भी नहीं..

तू घर में हो दाख़िल, जैसे हुआ था दिल में,
ना दर पे दस्तक दे, एहतियात कुछ भी नहीं..

तू अपनी बात कर, ना मुझसे पूछ हाल मेरा,
वजूद ही नहीं जिसका, हालात कुछ भी नहीं..

मैं तो डूबा हूं गुनाहों में सर से पांव, मग़र,
नहीं ऐसा, के तुझपे इल्ज़ामात कुछ भी नहीं..

मज़ा तो तब है, जब के मार के रोए क़ातिल,
नहीं तो क्या हयात, क्या वफ़ात, कुछ भी नहीं..

जो मेरे हाथ से गया, नहीं ग़म है उसका,
सदा रहता नहीं कुछ भी, सबात कुछ भी नहीं..

यूं हर इक हार को, धुंए में उड़ाया 'घायल',
जो मान लूं तो है, नहीं, तो मात कुछ भी नहीं..

*******************Glossary**********************
वारदात -- Events/Occurences एहतियात -- Caution
हयात – Life वफ़ात -- Death
सबात -- Stability/Constancy
***************************************************


Friday, November 4, 2011

शुक्र है..शुक्रवार है..#24


किए पुर्जे दिल के, ग़म के कारखाने ने,
उठा उठा के पटका, रूह को ज़माने ने,
नहीं पीता अगर, तो कब का मर गया होता,
मुझे ज़िंदा है रखा, मय ने ओ मयखाने ने..

Saturday, October 22, 2011

फिर से बात वही है..


जिस बात पे रोया था, फिर से बात वही है,
जिस रात ना सोया था, फिर से रात वही है..

जज़्बात जगाती हुई, बरसात वही है,
अंजाम भी होगा वही, शुरुआत वही है..

जिसमें कि पड़ गये थे मेरी अक़्ल पे पर्दे,
बस शख़्स ये नया है, मुलाक़ात वही है..

लगता था टूट कर तो सुधर जाएगा लेकिन,
कमबख़्त दिल की सारी ख़ुराफ़ात वही हैं..

सोचा था तजुर्बे से कुछ तो राज़ खुलेंगे,
पर इश्क़ की राहों के तिलिस्मात वही हैं..

है जुर्म भी ऐसा, कि मुक़दमा नहीं कोई,
चालें भी पुरानी हैं वही, मात वही है..

पत्थर को उनके, दिल की शक़्ल दे भी दूं अग़र,
तोड़ेगा ही कुछ, उसकी तो औक़ात वही है..

वो दें दग़ा तो दें भले, तू दे वफ़ा 'घायल,
तेरी भी यही है, जो उनकी ज़ात वही है..


Tuesday, October 11, 2011

मुझे बीमार रहने दो..


दवा ना दो, दुआ ना दो, मुझे लाचार रहने दो,
मज़ा ये दर्द देता है, मुझे बीमार रहने दो..

ये मज़हब-धर्म की बातें हैं सब बेकार, रहने दो,
जिसे अपनी ख़बर ना हो उसे अख़बार, रहने दो..

वो गुज़रेंगे गली मेरी से, है अफ़्वाह ग़रम ऐसी,
तो ले आओ जनाज़ा, क़ब्र भी तैयार रहने दो..

जो चाहते हो कि मर जाऊं, मग़र ना हो निशां कोई,
तो बस इक़रार भर कर दो, ये-सब हथियार, रहने दो..

ये माना प्यार के बाज़ार के रस्ते नहीं मुश्क़िल,
मुझे दे दो वफ़ा, राहें भले दुश्वार रहने दो..

मुझ-ही से सीखकर तरक़ीब, मुझपर आज़माते हो,
के थोड़ी सी श़रम बाक़ी, मिंयां-मक्कार, रहने दो..

हंसी मेरी, खुशी मेरी, सभी कुछ छीन लो लेकिन,
कलम मेरी, मेरा काग़ज़, ये बस दो यार रहने दो..

वफ़ा की आस में जीते हुए ही मर गया 'घायल',
के अब तौबा से क्या होगा, उन्हे ग़द्दार रहने दो..


Friday, October 7, 2011

शुक्र है..शुक्रवार है..#23


कभी थोड़ी, कभी थोड़ी-सी बेहिसाब पीता हूं,
मिलाकर जाम में, कड़वे से कुछ जवाब पीता हूं,
लहू जो एक दूजे का हैं पीते, नेक वो बंदे,
बुरा मैं हूं बहुत ही आदमी, शराब पीता हूं..


Thursday, October 6, 2011

हों बुरे, या हों भले, लम्हे बीत जाते हैं..


मुझे दिल, दिल को मैं अक्सर, यही समझाते हैं,
हों बुरे, या हों भले, लम्हे बीत जाते हैं..

जो बह गये, तो-ही आँखों के अश्क़ पानी हैं,
जो रह गये, तो बन तेज़ाब दिल जलाते हैं..

मैं-तो अब-भी ग़ुज़रता हूं, उन्ही की गलियों से,
ये अलग बात है, अब वो नहीं बुलाते हैं..

बड़ा सुकून मिला, दिल मेरा, जब से टूटा,
बिना तक़लीफ, नए लोग आते-जाते हैं..

जो मतलबों से दें प्यासे को पानी, क़ाफिर वो,
वो फरिश़्ते, जो दिलजलों को मय पिलाते हैं..

ये ज़रूरी नहीं, हर बात का मतलब निकले,
कभी-दिल और-मैं, बेवजह भी बड़बड़ाते हैं..

ना महफ़िलो की, ना साक़ी की ज़रूरत है कोई,
मैं-और-मय ख़ुद ही, एक दूजे को पिलाते हैं,

ज़हन के ज़ख़्म से 'घायल' हूं, हाल क्या होगा,
बदन की चोट पे, लब खुल के मुस्कुराते हैं..

Friday, September 30, 2011

शुक्र है..शुक्रवार है..#22


बड़ा माहिर हूं, ख़ुद को ख़ुद से मैं छुपाने में,
खुशी-ग़म-और सभी एहसास मैं दबाने में,
जो सच में चाहते हो, सच से मेरे, मिलना तुम,
ज़माने में नहीं, मुझसे मिलो मयखाने में..

Tuesday, September 27, 2011

रेत और पानी..


कल एक बनते हुए मकान के बाहर रेत के एक ढेर को देखा,
ऊपर से पानी छिड़क कर गीला किया हुआ था,
कुछ ही देर में धूप से पानी उड़ गया,
रेत सूख गया,
और हवा के थपेड़ों से, रेत के कण उड़कर बिखरने लगे..
ना जाने क्यूं लगा, कि मैं भी उसके जैसा ही हूं,
कई दिनो से मन और मस्तिष्क में बहुत अशांति थी,
कुछ सवाल थे,
जितना जवाब खोजने का प्रयास बढ़ता,
उतनी ही अशांति बढ़ती जाती..
सूखे रेत को उड़ता देख कर,
कुछ जवाब मिले..
मैं भी रेत जैसा ही हूं,
जब तक गीला हूं, इकट्ठा हूं, बंधा हूं, एक हूं..
लेकिन अक्सर ही असफलताओं, ग़मों, तनावों,
ख्वाहिशों और मजबूरियों की धूप से सूख जाता हूं,
और फिर धोखों, बंदिशों, और
सबकी अपेक्षाओं को पूरी करने के दबाव की हवाओं के थपेड़े,
मुझे उड़ाकर इधर-उधर बिखेरने लगते हैं..
ख़ुद पर से विश्वास उठने लगता है,
अपनी क़ाबिलियत, अपनी दृढ़ता, अपना संयम,
सब खो बैठता हूं..
अब सवालों की संख्या घटकर सिर्फ एक रह गई है,
मुझे जरूरत है गीला रहने की,
बंधा, पूरा और एक रहने की,
बिल्कुल उस रेत के ढेर की तरह..
मुझे बस अपना पानी ढूंढना है,
अपना पानी ढूंढना है..

Friday, September 23, 2011

शुक्र है..शुक्रवार है..#21


कभी तो रीत दुनिया की, मिलन होने नहीं देती,
कभी पैसे की किल्लत, बीच की दूरी बढ़ाती है,
करे देरी से मिलने पर भी, नख़रा ना गिला कोई,
मेरे महबूब से बेहतर तो मेरी बोतल-ए-मय है..
 

Wednesday, September 21, 2011

कुछ तो जवाब दे दे..



इस बार उर्दू के थोड़े मुश्क़िल लफ़्ज़ों का इस्तमाल किया है.. उनका मतलब रचना से पहले ही लिख़ रहा हूं.. ताकी पढ़ने में आसानी रहे.. :)
   
  आब :      Splendor        ||          शबाब : Youth
     सवाब :      Reward          ||          वाइस : Preacher
           अज़ाब :     Punishment   ||           बाब : Topic/Subject
   इज़्तराब :   Restlessness  ||          इंतख़ाब : Choice


खुशी दे रूह को, चेहरे को मेरे थोड़ा आब दे दे,
मेरे जीने की चाहत को-भी, थोड़ा सा शबाब दे दे,
तू बाक़ी कुछ भी दे, या ना दे, बस इतना रहम कर दे,
समझ भारी पड़े दिल पे मेरे, ऐसा सवाब दे दे..

ऐ वाइस, मुझको मेरी ज़िन्दगी का तू हिसाब दे दे,
गिना दे सब गुनाह मेरे, हर-इक का तू अज़ाब दे दे,
मुझे तड़पा, जला, या दे डुबा, जो करना है तू कर,
फ़टाफ़ट फ़ैसला दे, फिर ज़रा थोड़ी शराब दे दे..

मेरे महबूब कुछ तो गुफ़्तगू का, मुझको बाब दे दे,
मेरी कमियां गिना, रुस्वा हो, मुझको इज़्तराब दे दे,
बढ़ी ख़ामोशियां अक़्सर, ग़लत-फ़हमी बढ़ाती हैं,
सवालों का सवालों से सही, कुछ तो जवाब दे दे..

ख़ुदा दुनिया तेरी आए समझ, ऐसी किताब दे दे,
सभी को दे भला, और बस मुझे, जो हो ख़राब दे दे,
मेरी किस्मत में जो भी है लिखा, मुझसे बिना पूछे,
कमस्कम मौत के ज़रियो में-ही, कुछ इंतख़ाब दे दे..


Saturday, September 10, 2011

टुकड़े इतने छोटे हों..


मेरे महबूब गर दिल तोड़ना मेरा, तो कुछ ऐसे,
के टुकड़े इतने छोटे हों, जो फिर तोड़े से ना टूटें..

Friday, September 9, 2011

शुक्र है..शुक्रवार है..#20



नई सी अब कोई भी आरज़ू, दिल में नहीं खिलती,
मुझे भूसे में ग़म के, खुशियों की सूंई नहीं मिलती,
बहुत कोशिश की मैने, ये जहां पर ना समझ आया,
पिला तू और साक़ी, होश में दुनिया नहीं झिलती..

Tuesday, September 6, 2011

यही होना था शायद, हो गया है..



यही होना था शायद, हो गया है..
हंसी लब पे है, और दिल रो गया है,

जो मेरा है वो लुट जाता, तो क्या था,
जो पाया भी नहीं था, वो गया है..

अधूरे ख़्वाब, झूठी आस पे दिल,
युंही कब तक धड़कता, सो गया है..

कोई मिलके जुदा होता, तो होता,
जो आया ही नहीं था, वो गया है..

लहू अपने से जिसके बाग़ सींचे,
वो काँटे कब्र पे, क्यूं बो गया है..

हज़ारो ज़ख़्म, 'घायल' किसको देखे,
जिसे देखा, हरा ही हो गया है..


Friday, August 26, 2011

शुक्र है..शुक्रवार है..#19



सजाओ महफिलें मय की, तो दिल की बात कहूं,
पिलाओ जाम दो ज़रा, तो दिल की बात कहूं..

अभी तो होश में हूं, दिल भला कैसे खोलूं,
ज़रा मय का असर बढ़े, तो दिल की बात कहूं..

छुपे से कुछ अरमां, और दुबकती आरज़ू हैं,
दबे जज़्बात जगाओ, तो दिल की बात कहूं..

ना सर से, और ना कंधे से बनेंगी बातें,
जो दिल पे हाथ रखो तुम, तो दिल की बात कहूं..

बिना मय के बड़ी घबराहटें सी हैं 'घायल',
ज़रा डर सा चला जाए, तो दिल की बात कहूं..


Thursday, August 4, 2011

माँ का न व्यापार करो




बेच रहे जो भारत को, उनकी न जय-जय कार करो,
पुत्र हो जिस भूमी के तुम, उस माँ का न व्यापार करो..

जिसकी मिट्टी के आंचल में, खेल कूद कर बड़े हुए,
बने नपुंसक, उसके सीने पर बिन लज्जा खड़े हुए,
भारत माँ के हर शत्रू का, आगे बढ़ संहार करो,
पुत्र हो जिस भूमी के तुम, उस माँ का न व्यापार करो..

अब कपूत भी, हैं सपूत का, भेस-ही धारण किये हुए,
ऋषि रूप में छलते दानव, रक्त पिपासा लिए हुए,
जग समक्ष तुम सत्य दिखाकर, इन दुष्टों पर वार करो,
पुत्र हो जिस भूमी के तुम, उस माँ का न व्यापार करो..

दो सौ वर्षों के घावों को सह कर भी, जो डटी रही,
टुकड़े-टुकड़े कर डाले, पर टुकड़ों में भी सटी रही,
उस चिड़िया के स्वर्ण-पंख, लौटाने की हुंकार भरो,
पुत्र हो जिस भूमी के तुम, उस माँ का न व्यापार करो..

वचन अधूरा न छोड़ो, तुम कर्म अधूरा न छोड़ो,
बन सुपुत्र कर्तव्य निभाओ,  धर्म अधूरा न छोड़ो,
नव-निर्माण करो भारत का, हर बाधा को पार करो,
पुत्र हो जिस भूमी के तुम, उस माँ का न व्यापार करो..

बेच रहे जो भारत को, उनकी न जय-जय कार करो,
पुत्र हो जिस भूमी के तुम, उस माँ का न व्यापार करो..!!

Friday, July 29, 2011

शुक्र है..शुक्रवार है..#18



इसलिए पीता हूं, के खुल के तुझे याद कर सकूं,
वो बीते लम्हे, फिर से यादों में आबाद कर सकूं,
नहीं मुमकिन ख़ुदा से मांग लूं तुझको, मैं होश में,
इसलिए पीता हूं, के खुल के मैं फ़रियाद कर सकूं..

Thursday, July 28, 2011

मज़ा मंज़िल का बढ़के आया, रस्तों के सितम सह कर..




नज़र धुंधला सी देती है, जो मेरी आँख नम रह कर,
नज़ारा साफ़ कर देती है, ये मेरी कलम बह कर..

कोई मुझसे भी तो पूछे, यकीं है क्या सिला देता,
ज़हर मलते रहे ज़ख़्मों पे वो, मुझसे मरह्म कह कर..

मैं कहता था वही बसते हैं, रग-रग में, तो हंसते थे,
लहू मेरा बहाया, ख़ुद ही निकले दम-ब-दम बह कर..

वहीं ना जान पाए अहमियत अपनी, मेरे दिल में,
है बाक़ी सबने ही लूटा मुझे, उनकी कसम कह कर..

कोई मेरा बुरा भी कर गया, मैं तो दुआ दूंगा,
कोई क्या पा गया है, बेरहम को बेरहम कह कर..

बदन के हो गए पुर्जे, मगर बढ़ता रहा 'घायल',
मज़ा मंज़िल का बढ़के आया, रस्तों के सितम सह कर..

Friday, July 15, 2011

शुक्र है..शुक्रवार है..#17


मैं अगर पीता हूं तन्हा, तो बुराई क्या है,
कोई नाटक ना तमाशा है, बुराई क्या है,
मज़ा मालूम है मुझको भी, जाम-ए-महफ़िल का,
सजी है महफ़िल-ए-तन्हाई, बुराई क्या है..

Monday, July 11, 2011

इसी उम्मीद पे ज़िंदा हूं, के मर जाऊंगा..


सफ़र है ज़िंदगी का, मैं भी गुज़र जाऊंगा,
इसी उम्मीद पे ज़िंदा हूं, के मर जाऊंगा..

घड़े मिट्टी के नहीं जल के कभी ख़ाक हुए,
जला सोना जितना, नूर उतने पाक़ हुए,
वहीं झुलसा, जहाँ सोचा था निखर जाऊंगा,
इसी उम्मीद पे ज़िंदा हूं, के मर जाऊंगा..

भिखारी राजा बनके बैठे, यहाँ झूठों से,
सभी हैं कामयाब, पाप की करतूतों से,
ज़रा सा और दिखा सच, तो बिखर जाऊंगा,
इसी उम्मीद पे ज़िंदा हूं, के मर जाऊंगा..

जहाँ मय्यत में दर्द झूठ है, आहें नकली,
मदद् में मतलब है, सबकी निगाहें नकली,
उसूल लेके असली, कैसे संवर जाऊंगा,
इसी उम्मीद पे ज़िंदा हूं, के मर जाऊंगा..

मरोड़े धर्म जैसे पंडितो को ठीक लगा,
मज़हब को मौलवी ने मोड़ा, जैसे ठीक लगा,
मैं लेके वेद, ये क़ुरान, किधर जाऊंगा,
इसी उम्मीद पे ज़िंदा हूं, के मर जाऊंगा..

सफ़र है ज़िंदगी का, मैं भी गुज़र जाऊंगा,
इसी उम्मीद पे ज़िंदा हूं, के मर जाऊंगा..

Sunday, July 10, 2011

वो मुझको इश़्क में एहसान गिनाते ही रहे..


मुझे रह-रह के सदा, याद वो आते ही रहे,
मेरे टुकड़े हुए दिल को, वो जलाते ही रहे..

ये ना मुमकिन था, सितम उनके रुलाते मुझको,
मैं हँसके सहता रहा, वो भी हँसाते ही रहे..

उन्हे मालूम था, आशिक़ को सताने का मज़ा,
तभी रुक-रुक के मोहब्बत, वो जताते ही रहे..

वो लेके आए कभी ग़ैर से, जब भी तोह्फ़ा,
छुपाया इस क़दर, के मुझको दिखाते ही रहे..

मेरी तक़दीर में, उनकी वफ़ाओं का वो सफ़ा,
मैं बनाता रहा जिसको, वो मिटाते ही रहे..

फ़साना मेरा और, मैं ही था जो फ़ंसता रहा,
झुका के नज़रें वो, जाल बिछाते ही रहे.. 

युं हर इक ज़ख़्म भुलाता रहा, के आख़िरी है,
मैं उठता ही रहा, वो मुझको गिराते ही रहे..

लगाके दिल को, निभाता ही गया बस 'घायल',
वो मुझको इश़्क में एहसान गिनाते ही रहे..

Friday, July 8, 2011

शुक्र है..शुक्रवार है..#16


पियो महफ़िल में गर, तो थोड़ी सी थम के पियो यारों,
पियो यारों के संग, तो फिर ज़रा जम के पियो यारों,
ऐ मय के आशिक़ों, तुम यूं सदा करना क़दर मय की,
पियो जब भी, तो बस पीने में ही रम के पियो यारों..

Wednesday, June 29, 2011

महल हूं ताश के पत्तों का..


युं होके दूर तुझसे, खुश तो मैं भी रह नहीं सकता,
तेरी हिम्मत ना जाए टूट, यूं कर कह नहीं सकता..

तेरी खुशियों की ख़ातिर ही, तेरी आँखों में चुभता हूं,
तुझे खुशियों में झूठे ख़्वाबों की, ग़ुम सह नहीं सकता..

तुझे लगता है तझसे इश्क़ अब बाक़ी नहीं मुझको,
है सच तो ये के, अरमानों में खुलके बह नहीं सकता..

महल हूं ताश के पत्तों का, बस इक ठेस काफ़ी है,
मगर कुछ फ़र्ज़ हैं जो, बिन निभाए ढह नहीं सकता..

Sunday, June 26, 2011

शुक्र है..शुक्रवार है..#15




पियो गर जाम इक या दो ही, बनता ख़ूब मौसम है,
मज़ा है तब तलक ज़्यादा, चढ़ी जब तक ज़रा कम है,
जो दिल हो बेख़ुदी का ख़ुद से, तो ही बस पियो ज़्यादा,
नहीं तो थोड़ी-थोड़ी सी पियो, ना जन्नतें कम हैं..

Friday, June 17, 2011

शुक्र है..शुक्रवार है..#14




माना कि ये किसी मुश्क़िल का जवाब नहीं देती,
पर कोई सवाल करती भी तो नहीं है..

मेरी हर हरक़त पर, सही या गलत का ठप्पा भी नहीं लगाती,
ना ही रूठती है मुझसे, किसी नकचढ़ी हसीना की तरह..
ग़म को हमेशा के लिये दूर भी नहीं करती,
पर हाँ.. मुझे देखते ही ऐसे चमकने लगती है,
कि जब तक साथ रहती है, तब तक ग़म याद नही रहता..
सब कहते हैं कि ये अच्छी नहीं है,
नुकसान करती है,
सेहत को.. समझ को.. इंसान को..
पर कमसकम बाक़ी तो रहने देती है,
लोगों की तरह ख़त्म करने पर आमादा तो नहीं रहती,
मेरी ज़िन्दगी.. मेरी सोच.. मेरी इंसानियत..
मैने तो सबको मौका दिया था,
सबके लिये बाहें खोल कर खड़ा था,
पर बस ये ही आई,
मेरी ख़ामियों को अपनी सोच से दरकिनार करके,
और बिना किसी शर्त मेरी हो गयी..
माना गाढ़ी कमाई का कुछ हिस्सा ले जाती है,
पर ख़ुशियाँ ख़रीद पाता हूँ,
क्या ये ही काफ़ी नहीं है..
अब तुम ही कहो,
मैं कैसे शराब को ख़राब कह दूँ.....

Thursday, June 16, 2011

नहीं सीने में दिल जिनके, उन्हे दिल हार बैठे हैं..


उन्हे कहते है गुल हम, और हमें वो ख़ार कहते हैं,
नहीं सीने में दिल जिनके, उन्हे दिल हार बैठे हैं..

कई तरहा से दिल तोड़ा, हर इक टुकड़े में वो निकले,
जलाया एक अरमां जब कभी, दो बीज बो निकले,
वही ख़्वाबों मे, वो ही तोड़ते हर बार रहते हैं,
नहीं सीने में दिल जिनके, उन्हे दिल हार बैठे हैं..

सलीके से बड़े, दामन वो अपना साफ़ रखते हैं,
न जाने क़त्ल करके, कैसे ख़ुदको पाक़ रखते हैं,
हमें करके दिवाना, ख़ुद बने हुशियार रहते हैं,
नहीं सीने में दिल जिनके, उन्हे दिल हार बैठे हैं..

हर इक कोशिश गई बेकार, उनको रास आने की,
ख़यालों से मेरे, उनको हसीं एहसास लाने की,
हमें हैं देखते यूं के, बड़ी मुश्क़िल से सहते हैं,
नहीं सीने में दिल जिनके, उन्हे दिल हार बैठे हैं..

कभी तो यूं भी हो के देखकर, हमको वो मुस्काएं,
ना हों रुसवा, ना चेहरे पर ज़रा भी वो शिकन लाएं,
कभी पिघलेंगे वो, ये सोच दिल सुलगाए बैठे हैं,
नहीं सीने में दिल जिनके, उन्हे दिल हार बैठे हैं..

उन्हे कहते है गुल हम, और हमें वो ख़ार कहते हैं,
नहीं सीने में दिल जिनके, उन्हे दिल हार बैठे हैं..

Saturday, June 4, 2011

उठी जो बात है दिल में, बाहर आएगी ज़रूर..



   
उठी जो बात है दिल में, बाहर आएगी ज़रूर,
ना लब पे आई तो, कागज़ पे तो आएगी ज़रूर..

गई वो यूं, के मुड़के भी ना देखा एक दफ़ा,
दिया जो दिल था मुझे, लेने तो आएगी ज़रूर..

ना मोहब्बत सही, वहशत या वो उल्फ़त ही सही,
कोई तो चीज़, उसके दिल पे भी छाएगी ज़रूर..

नहीं किस्मत में खुशी मेरी, ये उम्मीद मगर,
ना सही जानके, भूले से, पर आएगी ज़रूर..

सभी वो छोड़ गये, जिसको भी दिल ने चाहा,
हुई है ग़म से मोहब्बत, रंग लाएगी ज़रूर..

अदा है, या तेरी दीवानगी ये है 'घायल',
उठा जो दर्द अगर, तो हंसी आएगी ज़रूर..

Friday, June 3, 2011

शुक्र है..शुक्रवार है..#13




ज़रा सी खोल दूं बोतल, ज़रा सा जाम फिर भर लूं,
अभी कुछ होश बाकी है, बेहोशी आम फिर कर लूं,
सुबह से अब तलक, दुनिया बुरी बस है नज़र आई,
चढ़ा के मय का चश्मा, ख़ूबसूरत शाम फिर कर लूं..

Tuesday, May 31, 2011

दिल करता है..


दिल करता है कि,
कोई कागज़ का छोटा सा टुकड़ा,
कोई उलझा हुआ धागा,
या कोई अजीब सा पत्थर उठाकर,
फिर से पापा की गोदी में बैठकर,
एक ख़ामख़ां का सवाल करूं,
'पापा ये क्या है'..

कोई जवाब अब मुझे इतनी तसल्ली क्यूं नहीं देता..

दिल करता है कि,
फिर भागते-भागते घर में घुसूं,
और सीधा रसोई में जाकर,
कभी कोई सूखा हुआ पत्ता,
जिस पर किसी कीड़े ने,
कोई तस्वीर बनाई हो,
कभी कोई टूटी हुई लकड़ी,
या शीशे की बोतल में बंद किया हुआ,
जुगनू दिखाकर बोलूं,
'मुम्मी देखो मुझे क्या मिला'..

कोई ख़ज़ाना अब मुझे इतनी ख़ुशी क्यूं नहीं देता..

दिल करता है कि,
फिर पापा का हाथ पकड़ कर,
बिना रास्ते के डर के,
बिना मंज़िल की फ़िक्र के,
युंही आधा लटका हुआ,
लहराता हुआ, गाता हुआ,
चलता चला जाऊं..

कोई सहारा अब मुझे इतना यकीं क्यूं नहीं देता..

दिल करता है कि,
कुछ फ़ाल्तू की बकर-बकर करते हुए,
कभी बालों मे हाथ फ़िरवाते हुए,
कभी साड़ी के पल्लू का सिरा चबाते हुए,
उल्टा-सीधा, टेढ़ा-मेढ़ा होकर भी,
गहरी, चैन भरी नींद में,
फिर मम्मी के पेट पर सो जाऊं..

कोई मख़मली बिस्तर अब मेरी रातों को सुकून क्यूं नहीं देता.

Saturday, May 28, 2011

ज़ुबां से उनकी, मेरा नाम तो निकले..




इज़हार-ए-इश्क़ फिर है, निकले फिर अंजाम जो निकले,
बहाना है, ज़ुबां से उनकी, मेरा नाम तो निकले..

सुबह होते ही घर से, ये दुआ लेकर निकलता हूं,
बने जो सिर्फ मुझसे, आज उनको काम वो निकले..

ज़ुबां से हर तरह भेजा, मगर ना कान तक पहुंचा,
के पहुंचे दिल तलक, इस दिल से अब पैग़ाम जो निकले..

मैं जमके ठान बैठा था, के उनको भूल जाऊंगा,
हुए पुर्जे इरादों के, वो घर से शाम को निकले..

अभी तक तो कभी मुझपर, नहीं उंगली उठी कोई,
वफ़ा का बेवफ़ा से हो, कोई इल्ज़ाम जो निकले,

बड़ी ज़िल्लत मिली, जब भी हूं गुज़रा उस गली से मैं,
कभी तो हो, के दर मेरा हो और बदनाम वो निकले..

हुआ जो इश्क़ तो भी, और मिला इनकार तो 'घायल',
सुनाया हाल-ए-दिल इक यार को, और जाम दो निकले..!!

Friday, May 27, 2011

शुक्र है..शुक्रवार है..#12




जो आते हैं ये बादल, क्यूं भला दिल सा मचलता है,
क्यूं आती याद है मय, क्यूं ना उस-बिन दिल बहलता है,
हमें तो शक़ है यूं के, बादलों के पर्दे के पीछे,
वो ख़ुद हाथो में लेकर जाम, मस्ती में टहलता हैं..!

Wednesday, May 25, 2011

टूटे सपने..




कभी मन मार लेता हूँ, कभी लगता हूँ रब जपने,
वो अब भी याद आते हैं, मुझे टूटे मेरे सपने..

सभी ने दी सलाह वो काम कर, दिल को मज़ा जो दे,
ख़ुदा से पूछ, करता चल, अगर बस वो रज़ा जो दे,
ये दिल नायाब है, अनमोल हैं ये धड़कनें सारी,
कभी ना काम ऐसा कर, तेरे दिल को सज़ा जो दे..

दिखा के दूर से जन्नत, कदम लूटे मेरे सबने,
वो अब भी याद आते हैं, मुझे टूटे मेरे सपने..

जला के आँख के सपने, कई रातें जगे काटी,
चली जो आरज़ू मेरी पे, वो बंदिश भरी लाठी,
कभी रस्मों ने दुनिया की, कभी झूठे रिवाज़ों ने,
गला घोटा दबी आशाओं का, इच्छा सभी छाँटी..

सरकते रेत से, हाथों से सब छूटे मेरे अपने,
वो अब भी याद आते हैं, मुझे टूटे मेरे सपने..

जलाने ही थे सारे ख़्वाब तो मुझको दिखाए क्यूँ,
गुनाह है जिनपे चलना, रास्ते वो थे सिखाए क्यूँ,
नहीं मालूम था वो ख़्वाब, बस बचपन में ही सच थे,
है अब अफ़सोस ये, जल्दी में लम्हे थे बिताए क्यूँ..

ना तब मालूम था, अरमान-ए-दिल यूं थे मेरे तपने,
वो अब भी याद आते हैं मुझे, टूटे मेरे सपने..