Monday, November 28, 2011

यही तो चाहता था मैं..


यही तो चाहता था मैं..
यही तो चाहता था मैं, वो मुझसे दूर रह पाए,
मैं उसको भूल ना पाऊं, उसे मेरी याद ना आए,
वो मुझको भूल बैठी है, वो खुश है आज बिन मेरे,
यही तो चाहता था मैं, तो फिर सांसें जमी क्यूं है...

यही तो चाहता था मैं..
यही तो चाहता था मैं, मुझे दिल से मिटा दे वो,
जो लम्हे संग थे ग़ुज़रे, ज़हन से सब हटा दे वो,
नहीं नाम-ओ-निशां मेरा, वो खुश है आज बिन मेरे,
यही तो चाहता था मैं, तो फिर इतनी कमी क्यूं है...

यही तो चाहता था मैं..
यही तो चाहता था मैं, मेरे बिन सीख ले जीना,
ना रखे आस कंधे की, वो आंसू सीख ले पीना,
हंसी उसके लबों पर है, वो खुश है आज बिन मेरे,
यही तो चाहता था मैं, तो आँखों में नमी क्यूं है...

यही तो चाहता था मैं..
यही तो चाहता था मैं, वो दिल अपना खुला रखे,
कोई मेरे सिवा भाए, तो ना दिल में गिला रखे,
बसा कर और को दिल में, वो खुश है आज बिन मेरे,
यही तो चाहता था मैं, तो ये धड़क
 थमी क्यूं है...
मेरी धड़कन थमी क्यूं हैं..

1 comment:

  1. क्यूंकी प्यार में कभी कोई शर्त नहीं होती .... सुंदर रचना...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/.

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