Friday, July 29, 2011

शुक्र है..शुक्रवार है..#18



इसलिए पीता हूं, के खुल के तुझे याद कर सकूं,
वो बीते लम्हे, फिर से यादों में आबाद कर सकूं,
नहीं मुमकिन ख़ुदा से मांग लूं तुझको, मैं होश में,
इसलिए पीता हूं, के खुल के मैं फ़रियाद कर सकूं..

Thursday, July 28, 2011

मज़ा मंज़िल का बढ़के आया, रस्तों के सितम सह कर..




नज़र धुंधला सी देती है, जो मेरी आँख नम रह कर,
नज़ारा साफ़ कर देती है, ये मेरी कलम बह कर..

कोई मुझसे भी तो पूछे, यकीं है क्या सिला देता,
ज़हर मलते रहे ज़ख़्मों पे वो, मुझसे मरह्म कह कर..

मैं कहता था वही बसते हैं, रग-रग में, तो हंसते थे,
लहू मेरा बहाया, ख़ुद ही निकले दम-ब-दम बह कर..

वहीं ना जान पाए अहमियत अपनी, मेरे दिल में,
है बाक़ी सबने ही लूटा मुझे, उनकी कसम कह कर..

कोई मेरा बुरा भी कर गया, मैं तो दुआ दूंगा,
कोई क्या पा गया है, बेरहम को बेरहम कह कर..

बदन के हो गए पुर्जे, मगर बढ़ता रहा 'घायल',
मज़ा मंज़िल का बढ़के आया, रस्तों के सितम सह कर..

Friday, July 15, 2011

शुक्र है..शुक्रवार है..#17


मैं अगर पीता हूं तन्हा, तो बुराई क्या है,
कोई नाटक ना तमाशा है, बुराई क्या है,
मज़ा मालूम है मुझको भी, जाम-ए-महफ़िल का,
सजी है महफ़िल-ए-तन्हाई, बुराई क्या है..

Monday, July 11, 2011

इसी उम्मीद पे ज़िंदा हूं, के मर जाऊंगा..


सफ़र है ज़िंदगी का, मैं भी गुज़र जाऊंगा,
इसी उम्मीद पे ज़िंदा हूं, के मर जाऊंगा..

घड़े मिट्टी के नहीं जल के कभी ख़ाक हुए,
जला सोना जितना, नूर उतने पाक़ हुए,
वहीं झुलसा, जहाँ सोचा था निखर जाऊंगा,
इसी उम्मीद पे ज़िंदा हूं, के मर जाऊंगा..

भिखारी राजा बनके बैठे, यहाँ झूठों से,
सभी हैं कामयाब, पाप की करतूतों से,
ज़रा सा और दिखा सच, तो बिखर जाऊंगा,
इसी उम्मीद पे ज़िंदा हूं, के मर जाऊंगा..

जहाँ मय्यत में दर्द झूठ है, आहें नकली,
मदद् में मतलब है, सबकी निगाहें नकली,
उसूल लेके असली, कैसे संवर जाऊंगा,
इसी उम्मीद पे ज़िंदा हूं, के मर जाऊंगा..

मरोड़े धर्म जैसे पंडितो को ठीक लगा,
मज़हब को मौलवी ने मोड़ा, जैसे ठीक लगा,
मैं लेके वेद, ये क़ुरान, किधर जाऊंगा,
इसी उम्मीद पे ज़िंदा हूं, के मर जाऊंगा..

सफ़र है ज़िंदगी का, मैं भी गुज़र जाऊंगा,
इसी उम्मीद पे ज़िंदा हूं, के मर जाऊंगा..

Sunday, July 10, 2011

वो मुझको इश़्क में एहसान गिनाते ही रहे..


मुझे रह-रह के सदा, याद वो आते ही रहे,
मेरे टुकड़े हुए दिल को, वो जलाते ही रहे..

ये ना मुमकिन था, सितम उनके रुलाते मुझको,
मैं हँसके सहता रहा, वो भी हँसाते ही रहे..

उन्हे मालूम था, आशिक़ को सताने का मज़ा,
तभी रुक-रुक के मोहब्बत, वो जताते ही रहे..

वो लेके आए कभी ग़ैर से, जब भी तोह्फ़ा,
छुपाया इस क़दर, के मुझको दिखाते ही रहे..

मेरी तक़दीर में, उनकी वफ़ाओं का वो सफ़ा,
मैं बनाता रहा जिसको, वो मिटाते ही रहे..

फ़साना मेरा और, मैं ही था जो फ़ंसता रहा,
झुका के नज़रें वो, जाल बिछाते ही रहे.. 

युं हर इक ज़ख़्म भुलाता रहा, के आख़िरी है,
मैं उठता ही रहा, वो मुझको गिराते ही रहे..

लगाके दिल को, निभाता ही गया बस 'घायल',
वो मुझको इश़्क में एहसान गिनाते ही रहे..

Friday, July 8, 2011

शुक्र है..शुक्रवार है..#16


पियो महफ़िल में गर, तो थोड़ी सी थम के पियो यारों,
पियो यारों के संग, तो फिर ज़रा जम के पियो यारों,
ऐ मय के आशिक़ों, तुम यूं सदा करना क़दर मय की,
पियो जब भी, तो बस पीने में ही रम के पियो यारों..