Monday, February 27, 2012

तो कुछ बात बने..(Final Part)


वो दिल में आ तो गया था, मेरी मर्ज़ी के बिना,
ना वो जाने में जो कतराए, तो कुछ बात बने..

बड़ी मुद्दत से छुपाया है, दिल के कोने में,
मुझे गहने सा भी सजाए, तो कुछ बात बने..

मुआ दिल, हां पे मरे है, तो ना से खौफ़ज़दा,
ना किसी एक से घबराए, तो कुछ बात बने..

वो हर इक बात पे कह देता है, "ढूंढे तो मिले",
ना कभी जूतियां घिसवाए, तो कुछ बात बने..

हो गणित या के हो विज्ञान हल, है क्या हासिल,
जो कोई ज़िंदगी सुलझाए, तो कुछ बात बने..

सभी को, जाके ख़ुद बताए बात राज़ की वो,
सभी से राज़ भी रखवाए, तो कुछ बात बने..

वो, जिसकी इक नज़र को, लाख मरे जाते हों,
नज़र जो मुझसे वो लड़ाए, तो कुछ बात बने..

ना जाने कब से दिल की दिल में लिए बैठा हूं,
कोई तो हो जो उगलवाए, तो कुछ बात बने..

जो हो रक़ीब-सुखनवर* मेरा, तन्हाई में,
मेरे ही गीत गुन्गुनाए, तो कुछ बात बने..

बात ही बात में 'घायल', बिगड़ गई बातें,
बात ही बात को बनाए, तो कुछ बात बने..

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रक़ीब -> Rival/Competitor
सुखनवर -> Writer/Poet
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मेरी लिखी हुई अभी तक की सबसे लम्बी ग़ज़ल का ये आख़िरी भाग है। 60 अशआर की इस ग़ज़ल में भी मैने ग़ज़ल के सभी नियल-कायदे पूरी तरह निभाने की कोशिश की है। क़ाफ़िए में पुनरावृत्ती का दोष, रदीफ़ में असमानता का दोष, या बहर/लय मे चूक, ये सभी ना हों इसका मैने पूरा प्रयास किया है। कोई कमी लगे तो कृपया बताइएगा ज़रूर।

Wednesday, February 15, 2012

तो कुछ बात बने..( Part-5 )


अभी आग़ाज़ है महफ़िल का, अभी मौज कहां,
ज़रा महौल जो गर्माए, तो कुछ बात बने..

नहीं आता मज़ा अब, पी के लुड़क जाने में,
मैं पियूं और वो लड़खड़ाए, तो कुछ बात बने..

जो कह नही पाता मैं, वो धड़कने कह दें,
ज़रा दिल कोई यूं धड़काए, तो कुछ बात बने..

वो जितनी बार बदले राहें, मुझसे दूरी को,
वो आके मुझसे ही टकराए, तो कुछ बात बने..

जिसे हर शख़्स, बेहया के नाम से जाने,
वो मेरे नाम पे शर्माए, तो कुछ बात बने..

वो भड़क जाए, सुनके नाम मेरा, ऊपर से,
मन-ही-मन मगर इतराए, तो कुछ बात बने..

ये सच नहीं, कि मैं बहकाए में नहीं आता,
कोई बहका हुआ बहकाए, तो कुछ बात बने..

यही कोशिश रही सदा, के कोई ना रूठे,
कभी कोई मुझको भी मनाए, तो कुछ बात बने..

बात सीधी हो अगर, वो असर नहीं करती,
ज़रा लफ़्ज़ों को जो उलझाए, तो कुछ बात बने..

कोई हिसाब नहीं, पीठ में खंजर कितने,
कोई सीने में जो घुसाए, तो कुछ बात बने..


TBC..

Tuesday, February 14, 2012

दिन भर के लैला मजनू..


दिन भर के लैला मजनू ने, गला फाड़ चिल्लाया है,
प्यार करो सब, प्यार करो, फिर प्यार भरा दिन आया है..

एक हाथ में, एक जेब में, बाकी फूल हैं बस्ते में,
एक नहीं तो और सही, बस आज-आज हैं सस्ते में,
गज़ब तमाशा, इश्क़-मोहब्बत का क्या ख़ूब बनाया है,
प्यार करो सब, प्यार करो, फिर प्यार भरा दिन आया है..

दिल के जज़्बातो को, आँखो से पढ़ना, क्यूं भूल गए,
पाश्चात पागलपन के झूले में, क्यूं कर झूल गए,
'प्यार', देखकर अपना ही दिन, कोने मे शर्माया है,
प्यार करो सब, प्यार करो, फिर प्यार भरा दिन आया है..

ये माना कि प्यार अगर है, तो इज़हार ज़रूरी है,
लेकिन बस इस दिन ही करना, काहे की मजबूरी है,
कभी सुना है, प्यार कहीं मुहरत निकला कर आया है,
प्यार करो सब, प्यार करो, फिर प्यार भरा दिन आया है..

प्यार मोहब्बत को तो, दिन में और पलों मे ना बांटो,
जिसे बसाओ दिल में, सारी उम्र उसी के संग काटो,
जिसने सच्चा प्यार किया है, जिसने प्यार निभाया है,
उसने हर इक दिन में सच्चा प्यार भरा दिन पाया है..
उसने हर इक दिन में सच्चा प्यार भरा दिन पाया है..

Monday, February 13, 2012

किस माँ का कर्ज़ चुकाऊं मैं..


दोराहे पर खड़ा हुआ हूं, किस रस्ते को जाऊं मैं,
बड़ी कठिन दुविधा में हूं, किस माँ का कर्ज़ चुकाऊं मैं..

इक माँ ने अपने सीने से ला के दूध पिलाया है,
इक माँ ने अपने सीने को चीर अन्न उपजाया है,
किस माँ को समझूं कमतर, किस माँ का त्याग भुलाऊं मैं,
बड़ी कठिन दुविधा में हूं, किस माँ का कर्ज़ चुकाऊं मैं..

इक माँ के आंचल में मैने, पूरी दुनिया पाई है,
इक माँ की गोदी में मैने, सारी उम्र बिताई है,
किसकी करनी फर्ज़ बताऊं, किसको दुख पहुंचाऊं मैं,
बड़ी कठिन दुविधा में हूं, किस माँ का कर्ज़ चुकाऊं मैं..

उस माँ की रक्षा ख़ातिर, सेना में भरती हो जाऊं,
इस माँ को खुशियां दूं, ब्याह करूं मैं, जीवन लौटाऊं,
सीने पे गोली खाऊं, या अपना वंश बढ़ाऊं मैं,
बड़ी कठिन दुविधा में हूं, किस माँ का कर्ज़ चुकाऊं मैं..

या गिर के मैं, इस दलदल में, राजनीत को साफ़ करूं,
या बनके नौकर सरकारी, पैसे का इंसाफ़ करूं,
देश सुधारूं आगे बढ़, या रोटी घर को लाऊं मै,
बड़ी कठिन दुविधा में हूं, किस माँ का कर्ज़ चुकाऊं मैं..

दोराहे पर खड़ा हुआ हूं, किस रस्ते को जाऊं मैं,
बड़ी कठिन दुविधा में हूं, किस माँ का कर्ज़ चुकाऊं मैं..

Friday, February 10, 2012

शुक्र है..शुक्रवार है..#35__(बुरी शराब नहीं है, बुरा तो आदमी है..)


बुराई मुझमें भी है, तुझमें भी है, क्या कमी है,
बुरी शराब नहीं है, बुरा तो आदमी है..

जो नहीं पीता, क्या कुछ बुरा नहीं करता,
ख़ता नहीं करता, क्या गुनाह नहीं करता,
बिना पिए करे कोई, तो कुछ भी लाज़मी है,
कोई पीके भला भी ग़र करे, तो ज़ोख़िमी है..
बुरी शराब नहीं है, बुरा तो..

जो लखपती हैं, वो चिल्लर चढ़ाके भक्त हुए,
जो ग़रीबों को नोट दे गए, कम्बख़्त हुए,
है नशा जिनको दौलतों का, वही ज़ालिमी हैं,
शराब हाथ में, तो पैर के तले ज़मी है,
बुरी शराब नहीं है, बुरा तो..

किसी का दर्द बांटना, या दर्द पहुंचाना,
किसी गिरे को हाथ देना, या के मुस्काना,
होश में तो हंसी बेबसी पे, शबनमी है,
नशे में वो भी ख़ाक है, जो आँख में नमी है,
बुरी शराब नहीं है, बुरा तो..

मज़हब के नाम पे ठग भी ले कोई, तो भला है,
कोई जो मुफ़्त में बांटे खुशी, तो मनचला है,
कोई फ़तवा हो अग़र क़्त्ल का भी, तो अमी है,
हो जाम हाथ में, तो अर्ज़ियां भी हाक़मी हैं,
बुरी शराब नहीं है, बुरा तो..

बुराई मुझमें भी है, तुझमें भी है, क्या कमी है,
बुरी शराब नहीं है, बुरा तो आदमी है..

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लाज़मी -> Justified/Essential || ज़ोख़िमी -> Risky
शबनमी -> Sparkling || अमी -> Nector/Pious
अर्ज़ियां -> Requests || हाक़मी -> Ordered (Forcibly)
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Monday, February 6, 2012

"नादान परिंदे" प्रतियोगिता में चयन



Tumbhi.com द्वारा आयोजित "नादान परिंदे" प्रतियोगिता के अंतम चरण में चुने गए 25 लोगो में मेरा भी नाम है..

प्रतियोगिता के नतीजे यहां पर हैः

कृपया मेरी ग़ज़ल को पढ़ने/पसंद करने के लिये नीचे दिये लिंक पर क्लिक करें:

Friday, February 3, 2012

शुक्र है..शुक्रवार है..#34


आज कहानी सबको, अपने पल-पल की बतलाता हूं,
कैसे मैं ज़िंदा रहता हूं, कैसे सब सह पाता हूं,
रोज़ रात भर लेटा रहता हूं मैं, आंखें बंद किए,
सुबह-सुबह सब जगते है, मैं बिस्तर से उठ जाता हूं..

फिर होके तैयार, नौकरी करने को बढ़ जाता हूं,
दिनभर काम-काम चिल्ला कर, दिल को मैं बहलाता हूं,
चौबिस में से, बस ये दस घंटे ही जल्दी कटते हैं,
फिर सदियां बितलाने को मैं, दफ़तर से घर जाता हूं..

इस शरीर की ख़ातिर ही, बस खाता हूं, जो खाता हूं,
कुछ कर्ज़ों की ख़ातिर, मैं कुछ फर्ज़ निभाता जाता हूं,
राह ज़रा तकता हूं, बाकी सब के मैं सो जाने की,
फिर अपनी असली दुनिया में, नज़र बचाके आता हूं..

मैं सिगरट होठों पे रखके, फिर ख़ुदको सुलगाता हूं,
मैं शराब का जाम उठाके, फिर ख़ुदको पी जाता हूं,
फिर जो उसके संग ग़ुज़ारे, उन लम्हों की याद लिए,
मैं जितना जीना चाहता हूं, फिर उतना जी आता हूं..

सारा दिन मुस्कान लिए चहरे पर, सबको भाता हूं,
दो आँसूं आंखों में लेकर, कहने को सो जाता हूं..
दो आँसूं आंखों में लेकर, कहने को सो जाता हूं..

....

रोज़ रात भर लेटा रहता हूं मैं, आंखें बंद किए,
सुबह-सुबह सब जगते है, मैं बिस्तर से उठ जाता हूं..

Wednesday, February 1, 2012

तो कुछ बात बने..(Part-4)


बहुत असान है, ईमान बेच कर पैसा,
कोई इज़्ज़त ज़रा कमाए, तो कुछ बात बने..

वो कसम खाके कहे, इश्क़ नहीं है मुझसे,
और मेरी ही कसम खाए, तो कुछ बात बने..

मेरे आगे, वो गालियां दे मुझे, जी भर के,
और पीछे से दे दुआएं, तो कुछ बात बने..

कोई इल्ज़ाम जो मुझपे, लगाए इश्क मेरा,
मेरे ही क्त्ल का लगाए, तो कुछ बात बने..

जिसे अपना समझा, सब उसी ने ज़ख़्म दिए,
कोई अब ग़ैर ही अपनाए, तो कुछ बात बने..

मेरे इज़हार की ग़ज़ल को, बताकर अपनी,
वो किसी और को सुनाए, तो कुछ बात बने..

के बदल जाए, हाथापाई में, तू-तू मैं-मैं,
बात इतनी कोई बढ़ाए, तो कुछ बात बने..

वो जागते हुए तो सच को छुपा लेता है,
जो नींद में ना बड़बड़ाए, तो कुछ बात बने..

सफ़र में दस ही कदम, नौ तो बड़े जम के रखे,
जो आखिरी ना डगमगाए, तो कुछ बात बने..

मैं उसको चाहूं, और वो चाहे और को, उस पर,
ख़त भी मुझसे ही लिखवाए, तो कुछ बात बने..