माना कि ये किसी मुश्क़िल का जवाब नहीं देती,
पर कोई सवाल करती भी तो नहीं है..
मेरी हर हरक़त पर, सही या गलत का ठप्पा भी नहीं लगाती,
ना ही रूठती है मुझसे, किसी नकचढ़ी हसीना की तरह..
ग़म को हमेशा के लिये दूर भी नहीं करती,
पर हाँ.. मुझे देखते ही ऐसे चमकने लगती है,
कि जब तक साथ रहती है, तब तक ग़म याद नही रहता..
सब कहते हैं कि ये अच्छी नहीं है,
नुकसान करती है,
सेहत को.. समझ को.. इंसान को..
पर कमसकम बाक़ी तो रहने देती है,
लोगों की तरह ख़त्म करने पर आमादा तो नहीं रहती,
मेरी ज़िन्दगी.. मेरी सोच.. मेरी इंसानियत..
मैने तो सबको मौका दिया था,
सबके लिये बाहें खोल कर खड़ा था,
पर बस ये ही आई,
मेरी ख़ामियों को अपनी सोच से दरकिनार करके,
और बिना किसी शर्त मेरी हो गयी..
माना गाढ़ी कमाई का कुछ हिस्सा ले जाती है,
पर ख़ुशियाँ ख़रीद पाता हूँ,
क्या ये ही काफ़ी नहीं है..
अब तुम ही कहो,
मैं कैसे शराब को ख़राब कह दूँ.....
ऐसे में तो बिल्कुल मत कहिये...
ReplyDeletekYA BAT HAI JANAB .. ?
ReplyDeletebahot umda hamesh ki tarah
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