Friday, September 30, 2011

शुक्र है..शुक्रवार है..#22


बड़ा माहिर हूं, ख़ुद को ख़ुद से मैं छुपाने में,
खुशी-ग़म-और सभी एहसास मैं दबाने में,
जो सच में चाहते हो, सच से मेरे, मिलना तुम,
ज़माने में नहीं, मुझसे मिलो मयखाने में..

Tuesday, September 27, 2011

रेत और पानी..


कल एक बनते हुए मकान के बाहर रेत के एक ढेर को देखा,
ऊपर से पानी छिड़क कर गीला किया हुआ था,
कुछ ही देर में धूप से पानी उड़ गया,
रेत सूख गया,
और हवा के थपेड़ों से, रेत के कण उड़कर बिखरने लगे..
ना जाने क्यूं लगा, कि मैं भी उसके जैसा ही हूं,
कई दिनो से मन और मस्तिष्क में बहुत अशांति थी,
कुछ सवाल थे,
जितना जवाब खोजने का प्रयास बढ़ता,
उतनी ही अशांति बढ़ती जाती..
सूखे रेत को उड़ता देख कर,
कुछ जवाब मिले..
मैं भी रेत जैसा ही हूं,
जब तक गीला हूं, इकट्ठा हूं, बंधा हूं, एक हूं..
लेकिन अक्सर ही असफलताओं, ग़मों, तनावों,
ख्वाहिशों और मजबूरियों की धूप से सूख जाता हूं,
और फिर धोखों, बंदिशों, और
सबकी अपेक्षाओं को पूरी करने के दबाव की हवाओं के थपेड़े,
मुझे उड़ाकर इधर-उधर बिखेरने लगते हैं..
ख़ुद पर से विश्वास उठने लगता है,
अपनी क़ाबिलियत, अपनी दृढ़ता, अपना संयम,
सब खो बैठता हूं..
अब सवालों की संख्या घटकर सिर्फ एक रह गई है,
मुझे जरूरत है गीला रहने की,
बंधा, पूरा और एक रहने की,
बिल्कुल उस रेत के ढेर की तरह..
मुझे बस अपना पानी ढूंढना है,
अपना पानी ढूंढना है..

Friday, September 23, 2011

शुक्र है..शुक्रवार है..#21


कभी तो रीत दुनिया की, मिलन होने नहीं देती,
कभी पैसे की किल्लत, बीच की दूरी बढ़ाती है,
करे देरी से मिलने पर भी, नख़रा ना गिला कोई,
मेरे महबूब से बेहतर तो मेरी बोतल-ए-मय है..
 

Wednesday, September 21, 2011

कुछ तो जवाब दे दे..



इस बार उर्दू के थोड़े मुश्क़िल लफ़्ज़ों का इस्तमाल किया है.. उनका मतलब रचना से पहले ही लिख़ रहा हूं.. ताकी पढ़ने में आसानी रहे.. :)
   
  आब :      Splendor        ||          शबाब : Youth
     सवाब :      Reward          ||          वाइस : Preacher
           अज़ाब :     Punishment   ||           बाब : Topic/Subject
   इज़्तराब :   Restlessness  ||          इंतख़ाब : Choice


खुशी दे रूह को, चेहरे को मेरे थोड़ा आब दे दे,
मेरे जीने की चाहत को-भी, थोड़ा सा शबाब दे दे,
तू बाक़ी कुछ भी दे, या ना दे, बस इतना रहम कर दे,
समझ भारी पड़े दिल पे मेरे, ऐसा सवाब दे दे..

ऐ वाइस, मुझको मेरी ज़िन्दगी का तू हिसाब दे दे,
गिना दे सब गुनाह मेरे, हर-इक का तू अज़ाब दे दे,
मुझे तड़पा, जला, या दे डुबा, जो करना है तू कर,
फ़टाफ़ट फ़ैसला दे, फिर ज़रा थोड़ी शराब दे दे..

मेरे महबूब कुछ तो गुफ़्तगू का, मुझको बाब दे दे,
मेरी कमियां गिना, रुस्वा हो, मुझको इज़्तराब दे दे,
बढ़ी ख़ामोशियां अक़्सर, ग़लत-फ़हमी बढ़ाती हैं,
सवालों का सवालों से सही, कुछ तो जवाब दे दे..

ख़ुदा दुनिया तेरी आए समझ, ऐसी किताब दे दे,
सभी को दे भला, और बस मुझे, जो हो ख़राब दे दे,
मेरी किस्मत में जो भी है लिखा, मुझसे बिना पूछे,
कमस्कम मौत के ज़रियो में-ही, कुछ इंतख़ाब दे दे..


Saturday, September 10, 2011

टुकड़े इतने छोटे हों..


मेरे महबूब गर दिल तोड़ना मेरा, तो कुछ ऐसे,
के टुकड़े इतने छोटे हों, जो फिर तोड़े से ना टूटें..

Friday, September 9, 2011

शुक्र है..शुक्रवार है..#20



नई सी अब कोई भी आरज़ू, दिल में नहीं खिलती,
मुझे भूसे में ग़म के, खुशियों की सूंई नहीं मिलती,
बहुत कोशिश की मैने, ये जहां पर ना समझ आया,
पिला तू और साक़ी, होश में दुनिया नहीं झिलती..

Tuesday, September 6, 2011

यही होना था शायद, हो गया है..



यही होना था शायद, हो गया है..
हंसी लब पे है, और दिल रो गया है,

जो मेरा है वो लुट जाता, तो क्या था,
जो पाया भी नहीं था, वो गया है..

अधूरे ख़्वाब, झूठी आस पे दिल,
युंही कब तक धड़कता, सो गया है..

कोई मिलके जुदा होता, तो होता,
जो आया ही नहीं था, वो गया है..

लहू अपने से जिसके बाग़ सींचे,
वो काँटे कब्र पे, क्यूं बो गया है..

हज़ारो ज़ख़्म, 'घायल' किसको देखे,
जिसे देखा, हरा ही हो गया है..