Tuesday, September 6, 2011

यही होना था शायद, हो गया है..



यही होना था शायद, हो गया है..
हंसी लब पे है, और दिल रो गया है,

जो मेरा है वो लुट जाता, तो क्या था,
जो पाया भी नहीं था, वो गया है..

अधूरे ख़्वाब, झूठी आस पे दिल,
युंही कब तक धड़कता, सो गया है..

कोई मिलके जुदा होता, तो होता,
जो आया ही नहीं था, वो गया है..

लहू अपने से जिसके बाग़ सींचे,
वो काँटे कब्र पे, क्यूं बो गया है..

हज़ारो ज़ख़्म, 'घायल' किसको देखे,
जिसे देखा, हरा ही हो गया है..


1 comment:

  1. Wah bhai,

    अधूरे ख़्वाब, झूठी आस पे दिल,
    युंही कब तक धड़कता, सो गया है..

    sab kuchh bahar nikal kar rakh diya.
    Bahut sundar.

    ReplyDelete