मुझे रह-रह के सदा, याद वो आते ही रहे,
मेरे टुकड़े हुए दिल को, वो जलाते ही रहे..
ये ना मुमकिन था, सितम उनके रुलाते मुझको,
मैं हँसके सहता रहा, वो भी हँसाते ही रहे..
उन्हे मालूम था, आशिक़ को सताने का मज़ा,
तभी रुक-रुक के मोहब्बत, वो जताते ही रहे..
वो लेके आए कभी ग़ैर से, जब भी तोह्फ़ा,
छुपाया इस क़दर, के मुझको दिखाते ही रहे..
मेरी तक़दीर में, उनकी वफ़ाओं का वो सफ़ा,
मैं बनाता रहा जिसको, वो मिटाते ही रहे..
फ़साना मेरा और, मैं ही था जो फ़ंसता रहा,
झुका के नज़रें वो, जाल बिछाते ही रहे..
युं हर इक ज़ख़्म भुलाता रहा, के आख़िरी है,
मैं उठता ही रहा, वो मुझको गिराते ही रहे..
लगाके दिल को, निभाता ही गया बस 'घायल',
वो मुझको इश़्क में एहसान गिनाते ही रहे..
वो मुझको इश़्क में एहसान गिनाते ही रहे.. ...Wah bhai Awesome.
ReplyDeleteWhat a beauty & meaning in these lines ...Great Lines
ये ना मुमकिन था, सितम उनके रुलाते मुझको,
मैं हँसके सहता रहा, वो भी हँसाते ही रहे..
वो भी हँसाते ही रहे.
pyar ki sunder prastuti
ReplyDeleteमुझे रह-रह के सदा, याद वो आते ही रहे,
ReplyDeleteमेरे टुकड़े हुए दिल को, वो जलाते ही रहे..
sundar bahut hi sundar
निराला अंदाज है. आनंद आया पढ़कर...
ReplyDeleteकभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
संजय कुमार
हरियाणा
http://sanjaybhaskar.blogspot.com