Friday, April 27, 2012

फ़ुर्सत नहीं मिली..(Part-1)


कुछ हमको अपनी हार से फ़ुर्सत नहीं मिली,
कुछ दिल को तेरे प्यार से फ़ुर्सत नहीं मिली..

हमने तो छुपाया था बहुत हाल-ए-दिल मग़र,
यारों को इश्तिहार से फ़ुर्सत नहीं मिली..

दिल दिल से मिले, कोई बड़ी बात तो नहीं,
पर इश्क़ को बाज़ार से फ़ुर्सत नहीं मिली..

लो रात भी थक हार के बेचैन सो गई,
पर हमको इंतज़ार से फ़ुर्सत नहीं मिली..

हमने तो मनाया था दिल को हर तरह मग़र,
उम्मीद को आसार से फ़ुर्सत नहीं मिली..

जो जख़्म थे मिले, उन्हे तो वक़्त भर गया,
पर आदत-ए-आज़ार* से फ़ुर्सत नहीं मिली..
*आज़ार -> illness

जाने वो कौन लोग हैं, करतें हैं सौ दफ़ा,
हमको तो एक बार से फ़ुर्सत नहीं मिली..

दुश्मन की कहो कोई कमी क्यूं ख़ले हमे,
हमको दग़ा-ए-यार से फ़ुर्सत नहीं मिली..

करने तो सितमगर से गए थे शिक़ायतें,
कमबख़्त के दीदार से फ़ुर्सत नहीं मिली..

ये जानते हैं हम, के-ये शराब है ख़राब,
पर क्या करें, करार से फ़ुर्सत नहीं मिली..

Tuesday, April 24, 2012

ऐ सनम, तुझको मेरी याद तो आती होगी..



कभी तन्हाई में चुपके से रुलाती होगी,
कभी थोड़ा, कभी ज़ोरों से सताती होगी,
ये माना, मैं नहीं आता हूं अब ख़यालों में,
ऐ सनम, तुझको मेरी याद तो आती होगी..

बिन मौसम के बरसती हुई बरसातों में,
या सर्द दिल के सर्द हो चुके जज़्बातों में,
या जनवरी की ठिठरती हुई सी रातों में,
मेरे यादों की ही गर्मीं तो सुलाती होगी..
ऐ सनम,...

जो आग दिल से निकलने को फड़कती होगी,
जो आग दिल में चाँदनी से भड़कती होगी,
जो आग दिल की धड़कनों मे धड़कती होगी,
मेरी यादों की ही ठंडक तो बुझाती होगी,
ऐ सनम,...

मुझे इल्ज़ाम दिया तूने बेवफ़ाई का,
मेरी मजबूरियों को नाम इक सफ़ाई का,
मेरा मक़सद ही मोहब्बत में था जुदाई का,
मेरी हर याद रोज़ सच तो दिखाती होगी,
ऐ सनम, तुझको मेरी याद तो आती होगी..
ऐ सनम, तुझको मेरी याद तो आती होगी..!!

Thursday, April 12, 2012

क्या करें...


दिल नहीं कमबख़्त कुछ सुनता हमारा, क्या करें,
हम सुने दिल की, तो दुनिया में गुज़ारा क्या करें..

है समझदारों को-काफ़ी क्या, पता तो है मग़र,
बेवक़ूफ़ों के शहर में, हम इशारा क्या करें..

हां अग़र सूरत पे जाते हम, तो कर लेते यकीं,
आदमी को आँख से पढ़ते हैं सारा, क्या करें..

ग़र उभरना चाहता हो कोई, तो तिनका बहुत,
डूबना मक़सद हो ग़र, तो फिर सहारा क्या करें..

ये सुना था हार कर ही जीत का दस्तूर है,
इश्क़ में हमने मग़र, हारा ही हारा, क्या करें..

हो नशा गर ऊपरी, सौ काट हैं, सौ नुस्ख हैं,
जो रगों में बस गया, उसका उतारा क्या करें..

इक ज़रा सी रोशनी की जुस्तजू दिल में जली,
जल गया दिल पर अंधेरा है, उजारा क्या करें..

मंदिरो में मन्नतें मांगें, या सजदे में झुकें,
या करें उम्मीद, कि टूटे सितारा, क्या करें

और की बाहों में तुम हो, फिर भी हम ही बेवफ़ा,
अब सनम तुम ही बताओ, हम तुम्हारा क्या करें..

हाल सब बेहाल है, मालूम है हमको मग़र,
दिलजलों की बज़्म में चेहरा संवारा क्या करें..

इक बला थी इश्क़, पल्ले पड़ गई थी इक दफ़ा,
अब तलक संभले नहीं हैं, हम दुबारा क्या करें..

ना अग़र मालूम हो अंजाम, तो भी हां करें,
हश्र जिसका हो पता, उसको गंवांरा क्या करें..

ना बुलाते हैं कभी अब हम, ना आता है कोई,
हम कहीं जब ख़ुद नहीं जाते, पुकारा क्या करें..

दिल में सूखी टहनियाँ लो, रूह में बंजर जड़ें,
फिर ज़रा दोहराओ, ये दिलकश नज़ारा क्या करें..

हर तरह खाली किया, कितनी दफ़ा भूला किए,
याद का लेकिन घटा ना ये पिटारा, क्या करें..

शाम जब रोया किए कल, सोच कर ये हंस दिए,
रात के ज़ख्मो को अब हम और खारा क्या करें..

कोई ग़र दिल की नहीं पूरी हुई, तो क्या हुआ,
कोशिशें तो कम नहीं करता बेचारा, क्या करें..

मुश्किलें जितनी मिली, उतनी सिखाई ज़ंन्दगी,
मुश्किलें ही ज़िन्दगी हैं, कोई चारा क्या करें..

कश्तियां तूफान में बढती रहीं, कहती रहीं,
हम बनीं मझधार की ख़ातिर, किनारा क्या करें..

इक कसर 'घायल', तरीका एक भी छोड़ा नहीं,
पर नहीं मरता हमारा ख़्वाव मारा, क्या करें..