Friday, November 9, 2012

इश्क़ करने का बहाना मांगिए..



इश्क़ क्या, क्यूं, कब, कहां, कैसे, वजा* ना मांगिए,
मांगिए तो इश्क़ करने का बहाना मांगिए..

ज़िंदगी कट जाएगी, चैन-ओ-सुकूं से आपकी,
इक बड़े से दिल में, कोने का ठिकाना मांगिए..

कामयाबी ख़ुद चली आएगी, चलिए तो सही,
घर की दीवारों से, मंज़िल का पता ना मांगिए..

है नई शै* की चमक, बस तब तलक, जब तक नई,
उम्र भर रौनक की ख़ातिर, कुछ पुराना मांगिए..

आपने कल चाँद मांगा, हमने वो भी ला दिया,
पर ख़ुदा के वास्ते, हमसे ख़ुदा ना मांगिए..

इश्क़ हमको आपसे है, था, रहेगा भी सदा,
पर सनम ताज़ा मुहब्बत का मज़ा ना मांगिए..

मौत भी, जिसको सुने तो, सर झुकाए शर्म से,
ज़िंदगी के इस सफ़र से, वो फ़साना मांगिए..

ग़र ये अंदाज़-ए-बयां, लगता है अच्छा आपको,
आप 'घायल' के लिए, ग़म का ख़ज़ाना मांगिए..


*वजा - वजह
*शै - Object

Thursday, October 25, 2012

गठरी...


तुम्हारे साथ गुज़रे वक़्त की
यादों भरी गठरी
बड़ा लालच दिलाती है,
मैं अक्सर
रुक नहीं पाता
ज़रा सी गाँठ ढीली कर
पकड़ लेता हूं
पल कोई..

कभी
जब खोलता हूं मैं
बंधी मुट्ठी,
तो इक रंगीन सी तितली
चमकते पंख फ़ैलाए
मेरे कमरे में सतरंगी उजाला छोड़ जाती है,
तुम्हारी झील सी आँखें
तुम्हारी रात सी ज़ुल्फ़ें
तुम्हारा चाँद सा चेहरा
तुम्हारे मुस्कुराते लब,
मेरी बेरंग सी दुनिया में रंगत फूंक देते हैं..

कभी
ये हाथ
गठरी से
निकलने भी नहीं पाता,
हथेली झनझनाती है
लहर सी दौड़ जाती है
सपोला एक ज़हरीला
मुसलसल वार करता है,
जलन का
जिस्म की हर तह तलक एहसास होता है,
पलक गिरने सी लगती हैं
ये धड़कन थम सी जाती है
तो सांसें फड़फड़ाती हैं
मेरी बेरंग सी दुनिया में अन्धेरा सा छाता है..

मैं तितली को
अगर हाथों में भर लूं
कैद कर लूं
तो वहीं दम तोड़ देती है,
अगर आज़ाद रहने दूं तो उड़ के भाग जाती है
वो रंगत लौट जाती है..

सपोला
सरसराता
जा के छुप जाता है कोने में
कभी ढूंढे नहीं मिलता
कभी मारे नहीं मरता,
कई हफ़्तों तलक
सूजन बनी रहती है
आँखों मे..

कई दिन की तड़प के सामने
कुछ पल की रौनक है,
मगर
मैं रुक नहीं पाता,
ज़रा सी गाँठ ढीली कर
पकड़ लेता हूं
पल कोई,
तेरी यादों की
गठरी से...



बहरः हज़ज (1222)

Sunday, August 19, 2012

और बात है..


दिल में है और कुछ, ज़बां पे और बात है,
बन आई है जो मेरी जां पे, और बात है..

हाँ आज लिख रहा हूं काग़ज़ों पे हाल-ए-दिल,
इक दिन लिखूंगा आसमां पे, और बात है..

ताज़ा है ज़ख़्म, दुख रहा है, रो रहा हूं मैं,
कल मुस्कुराऊंगा निशां पे, और बात है..

सारे जहां को है ख़बर, वो ठग रहा मुझे,
मुझको यकीं है बेइमां पे, और बात है..

मालूम है, नहीं तुम्हारे दिल में मैं मग़र,
जी जाऊंगा फ़क़त ग़ुमां पे, और बात है..

मुझको ज़हन से, दिल से तो चलो मिटा लिया,
पर नाम है जो दास्तां पे और बात है..

हर ओर हो रहीं है बरकतों की बारिशें,
बस छोड़ कर मेरे मकां पे, और बात है..

है एक सा समां, यहां वहां, इधर उधर,
तुम ले चलो मुझे, जहां पे और बात है..

'घायल' पढ़े कोई अग़र तो बात और है,
जो ग़ौर दे अग़र बयां पे और बात है..

Thursday, August 16, 2012

तुम्हारी ही तो ज़िद थी, इश्क़ मेरा आज़माओगे..


सनम, ग़र तुम क़दम इस राह पर, यूंही बढ़ाओगे,
भरोसा इश्क़ से, सारे ज़माने का उठाओगे..

ख़ुदा हद बेवफ़ाई की, बना सकता तो था लेकिन,
उसे मालूम था, क्या फ़ायदा, तुम पार जाओगे..

वो सारे ख़त, सभी तोह्फ़े, जला डाले हैं चुन-चुन कर,
मुझे दोगे रिहाई कब, मेरा दिल कब जलाओगे..

यही क्या कम करम है, रोज़ तुम ख़्वाबो में आते हो,
अब उस पर ये रहम, कि और की बाहों मे आओगे,

अभी तुम हो जवां, गिनते हो आशिक़ उंगलियों पे तुम,
हुस्न जब साथ छोड़ेगा, तो हक़ किसपे जमाओगे..

नया महबूब बोलेगा, कि बोलो इश्क है उससे,
करोगे क्या, लबों पे जब, मेरा ही नाम पाओगे..

कभी चारो तरफ़ होंगे, हज़ारो चाहने वाले,
मग़र नज़रें मुझे ढूंढेंगी, तो कैसे छुपाओगे..

अभी तक नींद से उठते हो मेरा नाम ले लेकर,
मग़र कहते हो तुम, तो मान लेता हूं भुलाओगे..

कभी ग़र ज़िदगी के मोड़ पर, फिर से मिले हम तुम,
तो अनदेखा करोगे, या गले मुझको लगाओगे..

मेरे मरने पे रोना था अगर, तो सोचते पहले,
तुम्हारी ही तो ज़िद थी, इश्क़ मेरा आज़माओगे..

Monday, August 13, 2012

फिर चाँद है रुआंसा, बर्सात हो रही है..


फिर शाम ढल चुकी है, फिर रात हो रही है,
फिर चाँद है रुआंसा, बरसात हो रही है,
मदमस्त सी हवा है, लम्हे उड़ा रही है,
दिल की ज़मीं पे देखो, जज़्बात बो रही है..

इक हाथ में हैं यादें, इक हाथ में कलम है,
अल्फ़ाज़ बह रहे हैं, कुछ आँख फिर से नम है..
किसको परे छिटक दूं, किसको ग़ज़ल बना लूं,
इस कशमकश से बेहतर, भी कशमकश नहीं है..
फिर चाँद है रुआंसा, बरसात हो रही है..

काले सियाह बादल, कहते हैं मुझसे अकसर,
दिल तोड़ के गया जो, बेदर्द है बड़ा वो..
नादान हैं बेचारे, कैसे इन्हे बताऊं,
वो जख़्म के बहाने, कुछ नज़्म दे गया है..
फिर शाम ढल चुकी है, फिर रात हो रही है..

ना रात रूठ जाए, इक आँख है जगी सी,
ना हो सहर भी रुस्वा, इक आँख सो रही है..
मेरा गला भरा सा, है चाँदनी भी गुमसुम,
खामोशियां हैं हर सू, पर बात हो रही है..
मदमस्त सी हवा है, जज़्बात बो रही है..

उलझी हुई हैं सांसे, धड़कन उलझ रही है,
इन उलझनो से मेरी, दुनियाँ सुलझ रही है..
हैं नींद भी ज़रूरी, पर बात ये भी सच है,
इस रतजगे से कुछ तो, औकात हो रही है..
फिर शाम ढल चुकी है, फिर रात हो रही है..

फिर शाम ढल चुकी है, फिर रात हो रही है,
फिर चाँद है रुआंसा, बरसात हो रही है,
मदमस्त सी हवा है, लम्हे उड़ा रही है,
दिल की ज़मीं पे देखो, जज़्बात बो रही है..

Tuesday, July 24, 2012

बहुत हुई फ़िकर ज़माने की..


ये महफ़िलें मेरे जनाज़े की, हैं कोशिशें उन्हे बुलाने की,
जो आए ठीक से नहीं अब तक, जिन्हे लगी हुई है जाने की..

फ़िज़ूल में ही मैं परेशां था, ये कोई बात थी छुपाने की,
मुझे लगी है याद करने की, उन्हे लगी है याद आने की..

अजीब रस्म हैं मुहब्बत की, अजीब इश्क के फ़साने है,
जो आग दिल में यां लगाता है, उसी को बस ख़बर बुझाने की..

वो याद रात भर जगाती थी, तो ठान ली उसे मिटा दूंगा,
ग़ुजर नहीं रहें हैं अब दिन भी, वाह जद्दो-जहद भुलाने की..

हुए हैं जब से मेरे दिल के सौ, बड़े ही खुश हैं साथ में टुकड़े,
था एक दिल तो दिल अकेला था, है अब तो मौज हर दिवाने की..

नहीं रही है दोस्ती माना, ये दुश्मनी भी इक मरासिम है,
बचा उसे, बचा है जो बाक़ी, ग़ुज़र गई घड़ी मनाने की..

निकाल दे जो दर्द है दिल में, मैं सुन रहा हूं ग़ौर से तेरी,
बुरा ना मान मेरे चेहरे का, इसे तो लत है मुस्कुराने की..

बड़े बड़े ये महल आलीशां, ये सब के सब तुम्हे मुबारक हो,
जो दिल में घर बना के रहते हैं, वो सोचते नहीं ठिकाने की..

जो है मेरा मुझे मिलेगा वो, जो खो गया वो था ही कब मेरा,
कि आदमी की ही तरह किस्मत, लिखी हुई है दाने-दाने की..

ज़बां पे जो कभी नहीं आए, वो लफ़्ज़ यूं गिरे हैं काग़ज़ पर,
कभी मैं जिन को ले के रोता था, वो बात हो गईं हैं गाने की..

ख़ुदा मैं शुक्रिया जताने को, उठाऊं हाथ कौन सा कह दे,
इसे है आरज़ू लुटाने की, इसे हैं हसरतें गंवांने की..

भला बुरा किसे पता 'घायल', ये आदमी नहीं ख़ुदा कोई,
चलो करें जो दिल कहे अपना, बहुत हुई फ़िकर ज़माने की..

Friday, July 20, 2012

शुक्र है..शुक्रवार है..#39__(तन्हाई..)


हरी धरती, भरा सागर, खुला अम्बर है तन्हाई,
कभी जो साथ ना छोड़े, वही रहबर है तन्हाई,
यही बस एक साथी है, यही बस एक काफ़ी है,
हज़ारों अजनबी चेहरों से तो, बेहतर है तन्हाई..

बड़े ही ग़ौर से बैठी, मेरी हर बात सुनती है,
मैं सारी रात कहता हूं, ये सारी रात सुनती है,
कभी ऐसा भी होता है, मैं लब से कह नहीं पाता,
ये मेरी आँख से बहते हुए, जज़्बात सुनती है..

कभी हम साथ बैठे, चाँद को मामा बनाते हैं,
कभी गिन-गिन के तारे रात भर, आँखें सुजाते हैं,
कभी बिखरे हुए ख़्वाबों के टुकड़े, साफ़ करते हैं,
कभी फिर जोड़ कर टुकड़े, नए सपने सजाते हैं..

मुझे हर पल समझ देती हुई, ठोकर है तन्हाई,
मैं घर से दूर जब भी हूं, तो मेरा घर है तन्हाई,
यही बस एक साथी है, यही बस एक काफ़ी है,
हज़ारों अजनबी चेहरों से तो, बेहतर है तन्हाई..

Monday, June 11, 2012

बूंदे...


कभी बादलों से, बरसती हैं बूंदें,
कभी अश्क़ बनकर, तरसती हैं बूदें,
कभी प्यास सबकी, बुझाती हैं बूंदें,
कभी आग़ दिल में, लगाती हैं बूंदें..

कभी बन पसीना, हैं ठंडक दिलाती,
कभी बन परेशानी, माथे पे आती,
हों कम तो हलक को, सुखाती हैं बूंदें,
हों ज़्यादा तो सब कुछ, बहाती हैं बूंदें..

जो बूंदों का संग हो, तो मुस्काए गागर,
जो बूंदो से जुड़ जाएं बूंदे, तो साग़र,
जो ग़र कद्र ना हो, मिटाती हैं बूंदें,
जो सीखो तो जीना, सिखाती हैं बूंदें..

जिसम में, ज़मीं में, हवा में हैं बूंदें,
जहां भी जहां है, जहां में है बूंदें,
जो सोचो तो जीवन, चलाती हैं बूंदें,
जो देखो तो दुनिया, बनाती हैं बूंदे..

Friday, June 1, 2012

यही दो दिन तो होते हैं, कि मैं नौकर नहीं होता (शुक्र है..शुक्रवार है..#38)


शुकर है आज शुक्करवार है, घर खुश मैं जाऊंगा,
हंसूंगा, खूब बोलूंगा, थकन सारी मिटाऊंगा..

कोई पिक्चर, कोई नाटक, कोई नॉवल, खबर कोई,
या पत्ते दोस्तों के संग, कोई क्वाटर, बियर कोई,
मैं पूरी रात जागूंगा, सुबह जाकर मैं सोऊंगा,
उठूंगा जब करेगा दिल, नहाऊंगा न धोऊंगा..

न कोई शर्ट, ना ट्राउसर, न कोई बेल्ट, ना जूते,
कोई ढीला सा इक लोअर, टंगी टी-शर्ट जो खूंटे,
मैं खुल के लूंगा अंग्ड़ाई, मैं जी भर के जंभाऊंगा,
जहां खुजली लगेगी, ठीक उस जगहा खुजाऊंगा..

न शाही वेज, न तंदूरी, न कोई और ही धोखा,
मेरे मन में जो आएगा, मेरी थाली में वो होगा,
कहीं से देख रेसीपी, मैं कोई डिश बनाऊंगा,
मिलाके फ़ोन मम्मी को, कहानी फिर सुनाऊंगा..

पुराने दोस्तों से, कुछ पुरानी बात की बातें,
वो कुछ मस्ती भरे किस्से, वो अपनी मौज की रातें,
ज़रा सी देर लम्हों को, मैं कुछ वापस घुमाऊंगा,
किसी को याद कर लूंगा, किसी को याद आऊंगा..

यही दो दिन तो होते हैं, किसी का डर नहीं होता,
यही दो दिन तो होते हैं, कि मैं नौकर नहीं होता,
यही बस सोच कर, फिर से ज़रा दिल को मनाऊंगा,
शुकर है आज शुक्करवार है, घर खुश मैं जाऊंगा..

Friday, May 18, 2012

शुक्रवार भजन... (शुक्र है..शुक्रवार है..#37)


हे शुक्रवार भगवान..
हे शुक्रवार भगवान..

तू ही हंसाता, पिलाता तू ही है,
तू ही हंसाता, पिलाता तू ही है,
तू ही बस देता आराम..
हे शुक्रवार भगवान..

आई.टी. नौकर, का तू स्वामी,
आई.टी. नौकर, का तू स्वामी,
तेरा ही बस गुणगान..
हे शुक्रवार भगवान..

तू ही चढ़ाए, तू ही उतारे,
तू ही चढ़ाए, तू ही उतारे,
वीकेंड की हर शाम..
हे शुक्रवार भगवान..

तू जब आता, तब खुशी लाता,
तू जब आता, तब खुशी लाता,
ये जीवन तेरे नाम,
हे शुक्रवार भगवान..
हे शुक्रवार भगवान.. !!

Friday, May 11, 2012

शुक्र है..शुक्रवार है..#36


इक बोतल दो प्याले ले आ,
नाटक मत कर साले, ले आ,
हाँ सुन, चखने का सामान भी,
और दस-बारह धूम्र-पान भी,
जल्दी आजा, देर ना करियो,
दिन ही दिन, अंधेर ना करियो,
आजा कुछ माहौल बनाएं,
'शुक्रवार की शाम' मनाएं,
दिन हैं पूरे पाँच बिताए,
इस इक दिन की आस लगाए,
कम्प्यूटर को छोड़ के आजा,
टर्न्सटाइल को तोड़ के आजा,
धीमे-धीमे ग़ज़ल बजाएं,
साहिर-ग़ालिब को बुलवाएं,
काम किसीका खत्म हुआ है?,
ये तिलिस्म कब भस्म हुआ है?,
गोली ना दे, समझा साले,
यार हुं मैं, या क्लाइंट वाले?
कोई बहाना गा के आजा,
बहलाके फ़ुसला के आजा,
कुछ तो शर्म जगाले, ले आ,
सोडा किनली वाले ले आ,
इक बोतल दो प्याले ले आ,
नाटक मत कर साले, ले आ !!

Friday, May 4, 2012

दो बातें..


तुझे पाने की खुशी भी कोई भरम ही थी,
तेरे जाने का ग़म भी ग़म नहीं है सच्चा सा,
तुझे तड़पाने की भी कोई आरज़ू है नहीं,
के मैने कुछ नहीं खोया, हैं खोया तूने मुझे..
जो खटकती हैं दिल को बार बार रह रह कर,
है बात बस दो, एक बीत गई, इक होनी..
इक, काबिल नहीं तू मेरे, देर से जाना,
तुझे वो सब दिया, थी जिसकी तू हक़दार नहीं..
दुजा, ग़र मुझसे कोई असली मोहब्बत कर ले,
ये एहतियात मेरी दुख न उसको पहुंचाए,
जो उसका हक़ हो इश्क़ में उसे मिले पूरा,
मेरी चाहत में कहीं कुछ कमी न रह जाए,
मेरी चाहत में कहीं कुछ कमी न रह जाए..

Friday, April 27, 2012

फ़ुर्सत नहीं मिली..(Part-1)


कुछ हमको अपनी हार से फ़ुर्सत नहीं मिली,
कुछ दिल को तेरे प्यार से फ़ुर्सत नहीं मिली..

हमने तो छुपाया था बहुत हाल-ए-दिल मग़र,
यारों को इश्तिहार से फ़ुर्सत नहीं मिली..

दिल दिल से मिले, कोई बड़ी बात तो नहीं,
पर इश्क़ को बाज़ार से फ़ुर्सत नहीं मिली..

लो रात भी थक हार के बेचैन सो गई,
पर हमको इंतज़ार से फ़ुर्सत नहीं मिली..

हमने तो मनाया था दिल को हर तरह मग़र,
उम्मीद को आसार से फ़ुर्सत नहीं मिली..

जो जख़्म थे मिले, उन्हे तो वक़्त भर गया,
पर आदत-ए-आज़ार* से फ़ुर्सत नहीं मिली..
*आज़ार -> illness

जाने वो कौन लोग हैं, करतें हैं सौ दफ़ा,
हमको तो एक बार से फ़ुर्सत नहीं मिली..

दुश्मन की कहो कोई कमी क्यूं ख़ले हमे,
हमको दग़ा-ए-यार से फ़ुर्सत नहीं मिली..

करने तो सितमगर से गए थे शिक़ायतें,
कमबख़्त के दीदार से फ़ुर्सत नहीं मिली..

ये जानते हैं हम, के-ये शराब है ख़राब,
पर क्या करें, करार से फ़ुर्सत नहीं मिली..

Tuesday, April 24, 2012

ऐ सनम, तुझको मेरी याद तो आती होगी..



कभी तन्हाई में चुपके से रुलाती होगी,
कभी थोड़ा, कभी ज़ोरों से सताती होगी,
ये माना, मैं नहीं आता हूं अब ख़यालों में,
ऐ सनम, तुझको मेरी याद तो आती होगी..

बिन मौसम के बरसती हुई बरसातों में,
या सर्द दिल के सर्द हो चुके जज़्बातों में,
या जनवरी की ठिठरती हुई सी रातों में,
मेरे यादों की ही गर्मीं तो सुलाती होगी..
ऐ सनम,...

जो आग दिल से निकलने को फड़कती होगी,
जो आग दिल में चाँदनी से भड़कती होगी,
जो आग दिल की धड़कनों मे धड़कती होगी,
मेरी यादों की ही ठंडक तो बुझाती होगी,
ऐ सनम,...

मुझे इल्ज़ाम दिया तूने बेवफ़ाई का,
मेरी मजबूरियों को नाम इक सफ़ाई का,
मेरा मक़सद ही मोहब्बत में था जुदाई का,
मेरी हर याद रोज़ सच तो दिखाती होगी,
ऐ सनम, तुझको मेरी याद तो आती होगी..
ऐ सनम, तुझको मेरी याद तो आती होगी..!!

Thursday, April 12, 2012

क्या करें...


दिल नहीं कमबख़्त कुछ सुनता हमारा, क्या करें,
हम सुने दिल की, तो दुनिया में गुज़ारा क्या करें..

है समझदारों को-काफ़ी क्या, पता तो है मग़र,
बेवक़ूफ़ों के शहर में, हम इशारा क्या करें..

हां अग़र सूरत पे जाते हम, तो कर लेते यकीं,
आदमी को आँख से पढ़ते हैं सारा, क्या करें..

ग़र उभरना चाहता हो कोई, तो तिनका बहुत,
डूबना मक़सद हो ग़र, तो फिर सहारा क्या करें..

ये सुना था हार कर ही जीत का दस्तूर है,
इश्क़ में हमने मग़र, हारा ही हारा, क्या करें..

हो नशा गर ऊपरी, सौ काट हैं, सौ नुस्ख हैं,
जो रगों में बस गया, उसका उतारा क्या करें..

इक ज़रा सी रोशनी की जुस्तजू दिल में जली,
जल गया दिल पर अंधेरा है, उजारा क्या करें..

मंदिरो में मन्नतें मांगें, या सजदे में झुकें,
या करें उम्मीद, कि टूटे सितारा, क्या करें

और की बाहों में तुम हो, फिर भी हम ही बेवफ़ा,
अब सनम तुम ही बताओ, हम तुम्हारा क्या करें..

हाल सब बेहाल है, मालूम है हमको मग़र,
दिलजलों की बज़्म में चेहरा संवारा क्या करें..

इक बला थी इश्क़, पल्ले पड़ गई थी इक दफ़ा,
अब तलक संभले नहीं हैं, हम दुबारा क्या करें..

ना अग़र मालूम हो अंजाम, तो भी हां करें,
हश्र जिसका हो पता, उसको गंवांरा क्या करें..

ना बुलाते हैं कभी अब हम, ना आता है कोई,
हम कहीं जब ख़ुद नहीं जाते, पुकारा क्या करें..

दिल में सूखी टहनियाँ लो, रूह में बंजर जड़ें,
फिर ज़रा दोहराओ, ये दिलकश नज़ारा क्या करें..

हर तरह खाली किया, कितनी दफ़ा भूला किए,
याद का लेकिन घटा ना ये पिटारा, क्या करें..

शाम जब रोया किए कल, सोच कर ये हंस दिए,
रात के ज़ख्मो को अब हम और खारा क्या करें..

कोई ग़र दिल की नहीं पूरी हुई, तो क्या हुआ,
कोशिशें तो कम नहीं करता बेचारा, क्या करें..

मुश्किलें जितनी मिली, उतनी सिखाई ज़ंन्दगी,
मुश्किलें ही ज़िन्दगी हैं, कोई चारा क्या करें..

कश्तियां तूफान में बढती रहीं, कहती रहीं,
हम बनीं मझधार की ख़ातिर, किनारा क्या करें..

इक कसर 'घायल', तरीका एक भी छोड़ा नहीं,
पर नहीं मरता हमारा ख़्वाव मारा, क्या करें..

Wednesday, March 7, 2012

समझ बैठे..


हमेशा कम उसे पाया, जिसे ज़्यादा समझ बैठे,
मुकम्मल वो मिला है बस, जिसे आधा समझ बैठे..

चमकती चीज़ जो देखी, समझ बैठे उसे सोना,
चमक उसमें मिली असली, जिसे सादा समझ बैठे..

जिसे सूरप-नखा समझे थे हम, निकली वही सीता,
वही इक पूतना थी, हम जिसे राधा समझ बैठे..

हो फ़ितरत या-वो नीयत हो, उमर भर एक रहती है,
हमारा बचपना ही था, उसे दादा समझ बैठे..

वही निकला वज़ीर-ए-आज़म-ए-तक़दीर, इक मोहरा,
जिसे 'घायल', बिसात-ए-ज़िंद का प्यादा समझ बैठे..

Thursday, March 1, 2012

ज़िंदगी क्या है..


मैं तुझको आज बताता हूं, के कमी क्या है,
तू मुझको आज ये बता, के ज़िंदगी क्या है..

ये ऊंच-नींच, जात-पात, ये मज़हब क्यूँ हैं,
ये रंग-देश, बोल-चाल, बंटे सब क्यूँ हैं,
तू-ही हर चीज़, तो फिर पाक़-ओ-गंदगी क्या है..

किसी पत्थर को पूज-पूज, नाचना-गाना,
सुबह-ओ-शाम, तेरा नाम, लेके चिल्लाना,
तेरा यकीं या ढोंग, तेरी बंदगी क्या है..

किसी को देके चैन, दर्द में सुकूं पाना,
किसी को देके दर्द, ज़ुल्म करके मुस्काना,
हंसी अपनी या तड़प ग़ैर की, खुशी क्या है..

कोई दरिया लिए दिल में है, मग़र हंसता है,
कोई देता है दहाड़ें, तो होंठ कसता है,
निरा बाज़ार नकल्लों का है, असली क्या है..

सिवा इंसान, मारे उतना जितना खा पाए,
यही बस एक, जितना खाए, भूख बढ़ जाए,
ना जाने कौन जानवर है, आदमी क्या है..

कोई नख़रे में हो नाराज़, और ना बात करे,
कोई क़ाबिल, किसी मजबूर का ना साथ करे,
है बेबसी या गुनाह, या है बेरुखी, क्या है..

जिसे नदिया मिली बहती, वो चाहे दरिया को,
जिसे इक बूंद नहीं, ताके वो गगरिया को,
है दुआ कौन खरी, सच्ची तिश्नगी क्या है..

किसी को दिल में बसा लेना, उम्र भर के लिए,
किसी नए का साथ, हर नए सफ़र के लिए,
है क्या बला ये इश्क़, और-ये दिल्लगी क्या है..

मैं तुझको कब तलक गिनाऊं, के कमी क्या है,
तू मुझको अब तो ये बता, के ज़िंदगी क्या है..


**************************************
एक मक़ता इस नज़्म से अलग, पर इसी क़ाफ़िए पर:

"कोई शायर है, या पागल है, दिवाना है कोई,
ये जिसका नाम है 'घायल', ये वाक़ई क्या है.."
**************************************

Monday, February 27, 2012

तो कुछ बात बने..(Final Part)


वो दिल में आ तो गया था, मेरी मर्ज़ी के बिना,
ना वो जाने में जो कतराए, तो कुछ बात बने..

बड़ी मुद्दत से छुपाया है, दिल के कोने में,
मुझे गहने सा भी सजाए, तो कुछ बात बने..

मुआ दिल, हां पे मरे है, तो ना से खौफ़ज़दा,
ना किसी एक से घबराए, तो कुछ बात बने..

वो हर इक बात पे कह देता है, "ढूंढे तो मिले",
ना कभी जूतियां घिसवाए, तो कुछ बात बने..

हो गणित या के हो विज्ञान हल, है क्या हासिल,
जो कोई ज़िंदगी सुलझाए, तो कुछ बात बने..

सभी को, जाके ख़ुद बताए बात राज़ की वो,
सभी से राज़ भी रखवाए, तो कुछ बात बने..

वो, जिसकी इक नज़र को, लाख मरे जाते हों,
नज़र जो मुझसे वो लड़ाए, तो कुछ बात बने..

ना जाने कब से दिल की दिल में लिए बैठा हूं,
कोई तो हो जो उगलवाए, तो कुछ बात बने..

जो हो रक़ीब-सुखनवर* मेरा, तन्हाई में,
मेरे ही गीत गुन्गुनाए, तो कुछ बात बने..

बात ही बात में 'घायल', बिगड़ गई बातें,
बात ही बात को बनाए, तो कुछ बात बने..

***********************
रक़ीब -> Rival/Competitor
सुखनवर -> Writer/Poet
***********************


मेरी लिखी हुई अभी तक की सबसे लम्बी ग़ज़ल का ये आख़िरी भाग है। 60 अशआर की इस ग़ज़ल में भी मैने ग़ज़ल के सभी नियल-कायदे पूरी तरह निभाने की कोशिश की है। क़ाफ़िए में पुनरावृत्ती का दोष, रदीफ़ में असमानता का दोष, या बहर/लय मे चूक, ये सभी ना हों इसका मैने पूरा प्रयास किया है। कोई कमी लगे तो कृपया बताइएगा ज़रूर।

Wednesday, February 15, 2012

तो कुछ बात बने..( Part-5 )


अभी आग़ाज़ है महफ़िल का, अभी मौज कहां,
ज़रा महौल जो गर्माए, तो कुछ बात बने..

नहीं आता मज़ा अब, पी के लुड़क जाने में,
मैं पियूं और वो लड़खड़ाए, तो कुछ बात बने..

जो कह नही पाता मैं, वो धड़कने कह दें,
ज़रा दिल कोई यूं धड़काए, तो कुछ बात बने..

वो जितनी बार बदले राहें, मुझसे दूरी को,
वो आके मुझसे ही टकराए, तो कुछ बात बने..

जिसे हर शख़्स, बेहया के नाम से जाने,
वो मेरे नाम पे शर्माए, तो कुछ बात बने..

वो भड़क जाए, सुनके नाम मेरा, ऊपर से,
मन-ही-मन मगर इतराए, तो कुछ बात बने..

ये सच नहीं, कि मैं बहकाए में नहीं आता,
कोई बहका हुआ बहकाए, तो कुछ बात बने..

यही कोशिश रही सदा, के कोई ना रूठे,
कभी कोई मुझको भी मनाए, तो कुछ बात बने..

बात सीधी हो अगर, वो असर नहीं करती,
ज़रा लफ़्ज़ों को जो उलझाए, तो कुछ बात बने..

कोई हिसाब नहीं, पीठ में खंजर कितने,
कोई सीने में जो घुसाए, तो कुछ बात बने..


TBC..

Tuesday, February 14, 2012

दिन भर के लैला मजनू..


दिन भर के लैला मजनू ने, गला फाड़ चिल्लाया है,
प्यार करो सब, प्यार करो, फिर प्यार भरा दिन आया है..

एक हाथ में, एक जेब में, बाकी फूल हैं बस्ते में,
एक नहीं तो और सही, बस आज-आज हैं सस्ते में,
गज़ब तमाशा, इश्क़-मोहब्बत का क्या ख़ूब बनाया है,
प्यार करो सब, प्यार करो, फिर प्यार भरा दिन आया है..

दिल के जज़्बातो को, आँखो से पढ़ना, क्यूं भूल गए,
पाश्चात पागलपन के झूले में, क्यूं कर झूल गए,
'प्यार', देखकर अपना ही दिन, कोने मे शर्माया है,
प्यार करो सब, प्यार करो, फिर प्यार भरा दिन आया है..

ये माना कि प्यार अगर है, तो इज़हार ज़रूरी है,
लेकिन बस इस दिन ही करना, काहे की मजबूरी है,
कभी सुना है, प्यार कहीं मुहरत निकला कर आया है,
प्यार करो सब, प्यार करो, फिर प्यार भरा दिन आया है..

प्यार मोहब्बत को तो, दिन में और पलों मे ना बांटो,
जिसे बसाओ दिल में, सारी उम्र उसी के संग काटो,
जिसने सच्चा प्यार किया है, जिसने प्यार निभाया है,
उसने हर इक दिन में सच्चा प्यार भरा दिन पाया है..
उसने हर इक दिन में सच्चा प्यार भरा दिन पाया है..

Monday, February 13, 2012

किस माँ का कर्ज़ चुकाऊं मैं..


दोराहे पर खड़ा हुआ हूं, किस रस्ते को जाऊं मैं,
बड़ी कठिन दुविधा में हूं, किस माँ का कर्ज़ चुकाऊं मैं..

इक माँ ने अपने सीने से ला के दूध पिलाया है,
इक माँ ने अपने सीने को चीर अन्न उपजाया है,
किस माँ को समझूं कमतर, किस माँ का त्याग भुलाऊं मैं,
बड़ी कठिन दुविधा में हूं, किस माँ का कर्ज़ चुकाऊं मैं..

इक माँ के आंचल में मैने, पूरी दुनिया पाई है,
इक माँ की गोदी में मैने, सारी उम्र बिताई है,
किसकी करनी फर्ज़ बताऊं, किसको दुख पहुंचाऊं मैं,
बड़ी कठिन दुविधा में हूं, किस माँ का कर्ज़ चुकाऊं मैं..

उस माँ की रक्षा ख़ातिर, सेना में भरती हो जाऊं,
इस माँ को खुशियां दूं, ब्याह करूं मैं, जीवन लौटाऊं,
सीने पे गोली खाऊं, या अपना वंश बढ़ाऊं मैं,
बड़ी कठिन दुविधा में हूं, किस माँ का कर्ज़ चुकाऊं मैं..

या गिर के मैं, इस दलदल में, राजनीत को साफ़ करूं,
या बनके नौकर सरकारी, पैसे का इंसाफ़ करूं,
देश सुधारूं आगे बढ़, या रोटी घर को लाऊं मै,
बड़ी कठिन दुविधा में हूं, किस माँ का कर्ज़ चुकाऊं मैं..

दोराहे पर खड़ा हुआ हूं, किस रस्ते को जाऊं मैं,
बड़ी कठिन दुविधा में हूं, किस माँ का कर्ज़ चुकाऊं मैं..

Friday, February 10, 2012

शुक्र है..शुक्रवार है..#35__(बुरी शराब नहीं है, बुरा तो आदमी है..)


बुराई मुझमें भी है, तुझमें भी है, क्या कमी है,
बुरी शराब नहीं है, बुरा तो आदमी है..

जो नहीं पीता, क्या कुछ बुरा नहीं करता,
ख़ता नहीं करता, क्या गुनाह नहीं करता,
बिना पिए करे कोई, तो कुछ भी लाज़मी है,
कोई पीके भला भी ग़र करे, तो ज़ोख़िमी है..
बुरी शराब नहीं है, बुरा तो..

जो लखपती हैं, वो चिल्लर चढ़ाके भक्त हुए,
जो ग़रीबों को नोट दे गए, कम्बख़्त हुए,
है नशा जिनको दौलतों का, वही ज़ालिमी हैं,
शराब हाथ में, तो पैर के तले ज़मी है,
बुरी शराब नहीं है, बुरा तो..

किसी का दर्द बांटना, या दर्द पहुंचाना,
किसी गिरे को हाथ देना, या के मुस्काना,
होश में तो हंसी बेबसी पे, शबनमी है,
नशे में वो भी ख़ाक है, जो आँख में नमी है,
बुरी शराब नहीं है, बुरा तो..

मज़हब के नाम पे ठग भी ले कोई, तो भला है,
कोई जो मुफ़्त में बांटे खुशी, तो मनचला है,
कोई फ़तवा हो अग़र क़्त्ल का भी, तो अमी है,
हो जाम हाथ में, तो अर्ज़ियां भी हाक़मी हैं,
बुरी शराब नहीं है, बुरा तो..

बुराई मुझमें भी है, तुझमें भी है, क्या कमी है,
बुरी शराब नहीं है, बुरा तो आदमी है..

=========================================
लाज़मी -> Justified/Essential || ज़ोख़िमी -> Risky
शबनमी -> Sparkling || अमी -> Nector/Pious
अर्ज़ियां -> Requests || हाक़मी -> Ordered (Forcibly)
=========================================

Monday, February 6, 2012

"नादान परिंदे" प्रतियोगिता में चयन



Tumbhi.com द्वारा आयोजित "नादान परिंदे" प्रतियोगिता के अंतम चरण में चुने गए 25 लोगो में मेरा भी नाम है..

प्रतियोगिता के नतीजे यहां पर हैः

कृपया मेरी ग़ज़ल को पढ़ने/पसंद करने के लिये नीचे दिये लिंक पर क्लिक करें:

Friday, February 3, 2012

शुक्र है..शुक्रवार है..#34


आज कहानी सबको, अपने पल-पल की बतलाता हूं,
कैसे मैं ज़िंदा रहता हूं, कैसे सब सह पाता हूं,
रोज़ रात भर लेटा रहता हूं मैं, आंखें बंद किए,
सुबह-सुबह सब जगते है, मैं बिस्तर से उठ जाता हूं..

फिर होके तैयार, नौकरी करने को बढ़ जाता हूं,
दिनभर काम-काम चिल्ला कर, दिल को मैं बहलाता हूं,
चौबिस में से, बस ये दस घंटे ही जल्दी कटते हैं,
फिर सदियां बितलाने को मैं, दफ़तर से घर जाता हूं..

इस शरीर की ख़ातिर ही, बस खाता हूं, जो खाता हूं,
कुछ कर्ज़ों की ख़ातिर, मैं कुछ फर्ज़ निभाता जाता हूं,
राह ज़रा तकता हूं, बाकी सब के मैं सो जाने की,
फिर अपनी असली दुनिया में, नज़र बचाके आता हूं..

मैं सिगरट होठों पे रखके, फिर ख़ुदको सुलगाता हूं,
मैं शराब का जाम उठाके, फिर ख़ुदको पी जाता हूं,
फिर जो उसके संग ग़ुज़ारे, उन लम्हों की याद लिए,
मैं जितना जीना चाहता हूं, फिर उतना जी आता हूं..

सारा दिन मुस्कान लिए चहरे पर, सबको भाता हूं,
दो आँसूं आंखों में लेकर, कहने को सो जाता हूं..
दो आँसूं आंखों में लेकर, कहने को सो जाता हूं..

....

रोज़ रात भर लेटा रहता हूं मैं, आंखें बंद किए,
सुबह-सुबह सब जगते है, मैं बिस्तर से उठ जाता हूं..

Wednesday, February 1, 2012

तो कुछ बात बने..(Part-4)


बहुत असान है, ईमान बेच कर पैसा,
कोई इज़्ज़त ज़रा कमाए, तो कुछ बात बने..

वो कसम खाके कहे, इश्क़ नहीं है मुझसे,
और मेरी ही कसम खाए, तो कुछ बात बने..

मेरे आगे, वो गालियां दे मुझे, जी भर के,
और पीछे से दे दुआएं, तो कुछ बात बने..

कोई इल्ज़ाम जो मुझपे, लगाए इश्क मेरा,
मेरे ही क्त्ल का लगाए, तो कुछ बात बने..

जिसे अपना समझा, सब उसी ने ज़ख़्म दिए,
कोई अब ग़ैर ही अपनाए, तो कुछ बात बने..

मेरे इज़हार की ग़ज़ल को, बताकर अपनी,
वो किसी और को सुनाए, तो कुछ बात बने..

के बदल जाए, हाथापाई में, तू-तू मैं-मैं,
बात इतनी कोई बढ़ाए, तो कुछ बात बने..

वो जागते हुए तो सच को छुपा लेता है,
जो नींद में ना बड़बड़ाए, तो कुछ बात बने..

सफ़र में दस ही कदम, नौ तो बड़े जम के रखे,
जो आखिरी ना डगमगाए, तो कुछ बात बने..

मैं उसको चाहूं, और वो चाहे और को, उस पर,
ख़त भी मुझसे ही लिखवाए, तो कुछ बात बने..

Tuesday, January 31, 2012

तो कुछ बात बने..(Part-3)



उसे यकीं है, सच्चा इश्क़ बस वहम है कोई,
हमें इक बार आज़माए, तो कुछ बात बने..

जिसे रुहानी मोहब्बत पे हो, यकीं बाक़ी,
वो मेरे यार से फ़र्माए, तो कुछ बात बने..

वो आए और नमक लगाए, मेरे ज़ख़्मो पे,
लगाए, ख़ुद ही तिल्मिलाए, तो कुछ बात बने..

वो जिसके पास हो जवाब, सब सवालों का,
मेरी बातों पे सर खुजाए, तो कुछ बात बने..

ये दिल की आग है, पानी से भला बुझती है,
ये आग प्यार से बुझाए, तो कुछ बात बने..

लो फिर से छाई घटा, फिर वही ग़रीब की आह,
जो अबके रोटियां बरसाए, तो कुछ बात बने..

जो कहता है, के कोई चीज़ नहीं नामुमकिन,
वो इश्क़ दिल में जो जगाए, तो कुछ बात बने..

मेरी तो आदत है, रोज़ उसपे मरने की,
कभी वो मुझपे जां लुटाए, तो कुछ बात बने..

जो सूरमा हो, तीस मार खां हो, सबसे बड़ा,
मेरे दिल से उसे हटाए, तो कछ बात बने..

यूं मंदिरों में लगाने से भोग, क्या हासिल,
किसी भूखे को कुछ खिलाए, तो कुछ बात बने..

Monday, January 30, 2012

तो कुछ बात बने.. (Part-2)


जिसे बरसों से लहू देके, मैने सींचा है,
वही इक फूल जो मुर्झाए, तो कुछ बात बने..

जो मेरे लाख बुलाने पे भी, नहीं आया,
सिसक-सिसक मुझे बुलाए, तो कुछ बात बने..

जो मेरी याद पे काबिज़ है, वही शख़्स कभी,
मुझे हर सांस पे भुलाए, तो कुछ बात बने..

जो कोई भी शराब को, ख़राब कहता हो,
वही खुशी-खुशी पिलाए, तो कुछ बात बने..

जिसे नफ़रत हो मुझसे, मुझसे भी कहीं ज़्यादा,
वो मुझे दिल में जो बसाए, तो कुछ बात बने..

अग़र जो आए झूठ बोलने, मेरे आगे,
वो लट में उंगलियां फिराए, तो कुछ बात बने..

मेरी ख़ातिर जो दिल में रक्खी है, जगह उसने,
छुपाए यूं, के वो दिखाए, तो कुछ बात बने..

मैं जिस हंसी के लिए, थाम रहा था आंसू,
वही दिल खोल के रुलाए, तो कुछ बात बने..

अभी तो मुझको दिन-ओ-रात में, है फ़र्क पता,
जो इश्क़ और बुरा छाए, तो कुछ बात बने..

वो जिस ख़ता पे ज़माना हुआ ख़िलाफ़ मेरे,
ज़रा मुझको भी तो बताए, तो कुछ बात बने..

Sunday, January 29, 2012

तो कुछ बात बने.. (Part - 1)



कोई जो मुझको समझ पाए, तो कुछ बात बने
समझ के मुझको भी समझाए, तो कुछ बात बने..

यूंही कब तक, तुम्हारी हाँ में हाँ, भरता रहूं मैं,
ज़रा यकीं सा भी आ जाए, तो कुछ बात बने..

मैं तन्हा रात के आलम में, तन्हा लेटा हूं,
जो उसकी याद, तब ना आए, तो कुछ बात बने..

कोई परवाना जल मरे, तो जल मरे, मुझे क्या,
जो शमा ख़ुद को ही झुलसाए, तो कुछ बात बने..

वो जिसका नाम लहू से, रगों पे लिखा हो,
वो अपने हाथ से मिटाए, तो कुछ बात बने..

मैं कब तलक पुराने ज़ख़्म, हरे करता रहूँ,
वो फिर से आए और सताए, तो कुछ बात बने..

किसी ने मारने का जान से, किया था कभी,
वो आए वादे को निभाए, तो कुछ बात बने..

वो जिसके नाम से बदनाम हुआ, नाम मेरा,
उसे लग जाए मेरी हाए, तो कुछ बात बने..

वो जिसको राज़ बताया था, छुपाने के लिए,
वो सारी दुनिया को बताए, तो कुछ बात बने..

ख़ुदा के नाम पे लगाते हैं जो, आग यहां,
ख़ुदा ख़ुद उनके घर जलाए, तो कुछ बात बने..



नोटः यह ग़ज़ल कुछ लम्बी हो गई लिखते लिखते, इसलिये भागों में प्रस्तुत करूंगा..:)

Friday, January 27, 2012

शुक्र है..शुक्रवार है..#33


ये ज़िंदगी है-क्या-जाने, वो-जिसने जी-ही-नहीं,
उसे क्या होश का पता है, जिसने पी ही नहीं,
जो चहते हो जानना, के क्या है मय का असर,
तो परिंदे से पूछ लो, है क्या आज़ाद सफर..

जो दिल को, दुनिया के सब कायदे, लगते हों बुरे,
अगर जो ज़ख़्म, दवा देख के, होतें हो हरे,
तो आओ तुम भी, महफ़िलों में पीने वालों की,
पनाह में आओ, तुम भी, मर के जीने वालों की..

ना उनकी बात सुनो, जिनको कुछ पता ही नहीं,
जिन्हे मालूम नहीं, उनकी कुछ ख़ता ही नही,
जो नहीं पीते है, उनको नहीं चोट मिली,
उन्हे क्या दर्द पता, लगती है हर बात भली..

किसी के टूटे हुए दिल की हक़ीक़त समझो,
किसी के उजड़े हुए घर की मुसीबत समझो,
किसी के पीने की वजह क्या है, राज़ सुनो,
किसी अंजाम से पहले, कोई आग़ाज़ सुनो..

जिसे नहीं है ज़रूरत, ना सही, आज नहीं,
वही कल मयकदे में होगा यहीं, आज नहीं,
उसे पता नहीं अभी, के अभी पी ही नहीं,
ये ज़िंदगी है क्या जाने, के उसने जी ही नहीं..
ये ज़िंदगी है क्या जाने, वो जिसने पी ही नहीं..

Friday, January 20, 2012

ज़माना ख़ुद सही होता, तो बदल जाते हम.


तू झूठ ही सही, कहता तो, बहल जाते हम,
ज़हर ही देता, तू देता तो, निगल जाते हम..

बड़ा ही सर्द रवैया रहा, तेरा हम से,
ज़रा सी गर्म-दिली से, क्या उबल जाते हम..

तू ही कहता था कि पत्थर हो, तो मज़बूत रहे,
जो तू कह देता हमें मोम, पिघल जाते हम..

तू बाहें खोल खड़ा होता, पार शोलों के,
हाँ चले जाते हम, चाहे तो जल जाते हम..

ये तो अच्छा हुआ, पहले से चोट खाए थे,
नहीं तो इक दफ़ा तो, तुझसे भी छल जाते हम..

है बुरा या के भला, दिल बता ही देता है,
नहीं होता, तो तेरे रंग में, ढल जाते हम..

हमें एहसास ही नहीं हुआ, नशे का कोई,
जो पता होता कि बहके हैं, संभल जाते हम..

बड़ी जल्दी हमें क़ाफ़िर बता दिया, वाइज़,
तेरी मस्जिद में, नहीं आज, तो कल जाते हम..

ज़माना हमको, ज़माने से ग़लत कहता है,
ज़माना ख़ुद सही होता, तो बदल जाते हम..

ज़रा उम्मीद के चक्कर में फंस गए 'घायल',
जो होते नामुराद, कब के निकल जाते हम..

Tuesday, January 17, 2012

बचपन के ख़ज़ाने का बक्सा…


वो बचपन के ख़ज़ाने का बक्सा…
क्या क्या नहीं था उसमें,
वो 1 आने, 2 पैसे के सिक्के,
वो आइस-क्रीम की डंडियों का पेन स्टैण्ड,
च्वींग गम के साथ मिले क्रिकेट कार्ड,
रसना के डिब्बे में निकले रबर के कीड़े मकोड़े,
मेले से खरीदा हुआ 10 तरह की आवाज़ निकालने वाला खिलौना,
किसी जिगरी दोस्त का दिया, हाथ से बनाया हुआ, नए साल का कार्ड,
वो गलियों की मिट्टी में जीते हुए कंचे,
वो टूटे हुए गुड्डे का सर,
रंगीन पन्नो वाली छोटी सी डयरी,
बूमर के 100 छिलके इकट्ठे करके मिला वो ईनाम,
चाचा-भतीजा चूरन का वो पैकेट,
पहला बटुआ,
एक सूखा हुआ पता,
एक पुरानी कैमरे की रील,
हिलाने पर 2 तस्वीरें दिखाने वाला मिकी माउस का स्टीकर,
एक काँच का, और एक लकड़ी का पेन,
कागज़ का बनाया हुआ मेंढ़क,
टूटी हुई ऑडियो केसट का एक चक्कर,
स्पीकर को तोड़कर निकाली हुई चुम्बक,
लाल इंक से निशान बना कर घेरा हुआ-
-दो रुपये के नोट पर नीले बिन्दुओं के बीच लिखा हुआ P.B.C. ,
वो महंगी वाली लम्बी रबर, जो कभी इस्तेमाल ही नहीं की,
पहले पोस्टर कलर के रंगों की शीशी,
भगवान जी की तस्वीर,
और बचपन की लिखी वो पहली कविता...

तब से आज तक,
बहुत सी कीमती चीज़ें आई ज़िन्दगी में,
पर कोई इतनी अनमोल नहीं हुई-
-कि उस बचपन के ख़ज़ाने के बक्से में जगह बना पाए...

Friday, January 13, 2012

शुक्र है..शुक्रवार है..#32


पिलाए जा, पिलाए जा, पिलाए जा साक़ी,
पिलाए जा, हैं जब तलक मेरी सांसें बाक़ी,
किसे पड़ी है के ढूंढे कोई वजहा, थम के,
पिला खुशी में खुशी की, या ग़म मे ग़म के,
है जितनी भी शराब, सारी कर दे नाम मेरे,
तू खाली होने से पहले ही, भर दे जाम मेरे,
कोई भी हद ना बता, घर को नहीं जाना है,
मेरा बस यार इक तू, मयकदा ठिकाना है,
पिलाए जा, ना तू महबूब है, ना माँ, साक़ी,
पिलाए जा, हैं जब तलक मेरी सांसें बाक़ी..

Wednesday, January 11, 2012

बचाए रखते हैं..



रगों में थोड़ा सा लहू, बचाए रखते हैं,
बड़ी ही मुश्क़िलों से रूह, बचाए रखते हैं..

जो हमको, दूसरों के राज़ बता देता है,
उसी इंसान से, पहलू बचाए रखते हैं..

कई लाखों के लिबासों में, सब दिखाते हैं,
कई कत्तर* में, आबरू बचाए रखते हैं..
 *कत्तर-- piece of torn cloth                                  

जो किसी और की होती, तो टूट ही जाती,
ये तो हम हैं, के आरज़ू बचाए रखते हैं..

जिसे जहां में हमसे और बुरा, कोई नहीं,
उसी की, दिल में जुस्तजू बचाए रखते हैं..

कोई बोले, तो नहीं बोलते हैं कुछ 'घायल',
कोई सुन ले, तो गुफ़्तगू बचाए रखते हैं..

Monday, January 9, 2012

चर्चा-ए-बेवफ़ा था, तुम याद क्यूं ना आते..


दिल जिस्म से बड़ा था, हम ख़ैर क्या मनाते,
पत्थर से लगा बैठे, हम चोट क्यूं ना खाते..

तुमसे वफ़ा की चाहत, ग़लती ही हमारी थी,
तुम थे दिमाग़ वाले, तुम इश्क़ क्या निभाते..

इल्ज़ाम-ए-तर्क-ए-ताल्लुक*, ख़ुदपे ही लिया हमने,
हरकत भला तुम्हारी, हम किस तरह बताते..
* इल्ज़ाम-ए-तर्क-ए-ताल्लुक -> रिश्ता तोड़ने का इल्ज़ाम

दुनिया ने बहुत पूछा, क्यूं हो गए जुदा तुम,
लब हमने यूं ना खोले, तुम मुंह कहाँ छुपाते..

कल रात मयकदे में, था जश्न दिलजलों का,
चर्चा-ए-बेवफ़ा था, तुम याद क्यूं ना आते..

हर एक सितम हंसके, 'घायल' गुज़ार देता,
दिल में बसाए रखते, जी भर के तुम सताते..

Friday, January 6, 2012

शुक्र है..शुक्रवार है..#31 ___________(तू तो ये ना पूछ, के क्यूं पीता हूं..)


तेरी आंखों के नशे में, मैं अब भी जीता हूं,
मेरी जाँ, तू तो ये ना पूछ, के क्यूं पीता हूं..

कभी तूने ही निगाहों से, पिलाई थी मुझे,
ये जो आदत है नशे की, ये लगाई थी मुझे,
मैं तब से अब तलक, नशे में ही तो बीता हूं,
मेरी जाँ, तू तो ये ना पूछ, के क्यूं पीता हूं..

शराब रोज़ यूं पीता हूं, के नशा उतरे,
ना हो मुमकिन पूरा, थोड़ा तो ज़रा उतरे,
चढ़ाने को नहीं, उतारने को पीता हूं,
मेरी जाँ, तू तो ये ना पूछ, के क्यूं पीता हूं..

मुझे अब होश में तो, सांस भी नहीं आता,
ना हूं बेहोश, तो एहसास भी नहीं आता,
जो ज़ख़्म तूने दिए, बस उन्ही को सीता हूं,
मेरी जाँ, तू तो ये ना पूछ, के क्यूं पीता हूं..

कोई मतलब नहीं मुझे, सही ग़लत से कोई,
ना तो जीवन से कोई, ना ही कयामत से कोई,
ना तो क़ुरान हूं मैं, और, ना ही गीता हूं,
मेरी जाँ, तू तो ये ना पूछ, के क्यूं पीता हूं..

तेरा भी शुक्र है, तू थी, जो ग़र नहीं होती,
तो मेरी मय, ये मेरी हमसफ़र नहीं होती,
तुझे दुआएं ही देता हूं, जब भी पीता हूं,
मेरी जाँ, तू तो ये ना पूछ, के क्यूं पीता हूं..

तेरी आंखों के नशे में, मैं अब भी जीता हूं,
मेरी जाँ, तू तो ये ना पूछ, के क्यूं पीता हूं..

Thursday, January 5, 2012

इक बार बस रुला दे कोई..



मेरी मुस्कान को जला दे कोई,
मुझे अश्क़ों का सिलसिला दे कोई,
मेरी आँखों में कुछ मिला दे कोई,
मुझे इक बार बस रुला दे कोई..

सुना है, रोने से ग़म कम होगा,
ना रोना, ख़ुद पे ही सितम होगा,
मुझे भी तो कोई मरहम हो ज़रा,
दिल सूखे, ये आँख नम हों ज़रा ,
आंसू जम गए गला दे कोई,
मुझे इक बार बस रुला दे कोई..

सुबह से शाम तक नहीं आते,
कभी अंजाम तक नहीं आते,
मेरे दिल में ही कुछ ख़राबी है,
मेरे अश्क़ों का ये शराबी है,
न पी सके, वो ज़लज़ला दे कोई,
मुझे इक बार बस रुला दे कोई..

कोई वादा भी ना ख़िलाफ़ दिखे,
मैं इतना रोऊं के सब साफ़ दिखे,
है जितना बोझ सब उतर जाए,
क़तरा-क़तरा हो, बिख़र जाए,
बस, पहला क़दम चला दे कोई,
मुझे इक बार बस रुला दे कोई..

कोई दवा सी कुछ पिला दे कोई,
मेरी आदत मुझे भुला दे कोई,
मेरी आँखों में कुछ मिला दे कोई,
मुझे इक बार बस रुला दे कोई..

Tuesday, January 3, 2012

इक़ बार इश्क़ में..


इक़ बार इश्क़ में वो, मुझको भी आज़माते,
दुनियाँ में हर किसी को, ना बेवफ़ा बताते..

बस दूर से हमेशा, मुझको बुरा बताया,
थोड़ा सा पास आते, तो और पास आते..

इतनी सी आरज़ू थी, इतनी सी बस तमन्ना,
मैं जिनपे लुट मरा था, वो मुझपे जाँ लुटाते..

दोनो के टूटे दिल की, आसान सी दवा थी,
वो मेरा चुरा लेते, अपना मुझे गंवांते..

हिम्मत वो अग़र थोड़ी, इक बार फिर से करते,
तो मेरी तरह वो भी, तन्हा नहीं कहाते..

वो भी थे चोट खाए, 'घायल' मेरी तरह थे,
दो दिलजले वफ़ा की, नई दास्तां बनाते..