Wednesday, June 29, 2011

महल हूं ताश के पत्तों का..


युं होके दूर तुझसे, खुश तो मैं भी रह नहीं सकता,
तेरी हिम्मत ना जाए टूट, यूं कर कह नहीं सकता..

तेरी खुशियों की ख़ातिर ही, तेरी आँखों में चुभता हूं,
तुझे खुशियों में झूठे ख़्वाबों की, ग़ुम सह नहीं सकता..

तुझे लगता है तझसे इश्क़ अब बाक़ी नहीं मुझको,
है सच तो ये के, अरमानों में खुलके बह नहीं सकता..

महल हूं ताश के पत्तों का, बस इक ठेस काफ़ी है,
मगर कुछ फ़र्ज़ हैं जो, बिन निभाए ढह नहीं सकता..

Sunday, June 26, 2011

शुक्र है..शुक्रवार है..#15




पियो गर जाम इक या दो ही, बनता ख़ूब मौसम है,
मज़ा है तब तलक ज़्यादा, चढ़ी जब तक ज़रा कम है,
जो दिल हो बेख़ुदी का ख़ुद से, तो ही बस पियो ज़्यादा,
नहीं तो थोड़ी-थोड़ी सी पियो, ना जन्नतें कम हैं..

Friday, June 17, 2011

शुक्र है..शुक्रवार है..#14




माना कि ये किसी मुश्क़िल का जवाब नहीं देती,
पर कोई सवाल करती भी तो नहीं है..

मेरी हर हरक़त पर, सही या गलत का ठप्पा भी नहीं लगाती,
ना ही रूठती है मुझसे, किसी नकचढ़ी हसीना की तरह..
ग़म को हमेशा के लिये दूर भी नहीं करती,
पर हाँ.. मुझे देखते ही ऐसे चमकने लगती है,
कि जब तक साथ रहती है, तब तक ग़म याद नही रहता..
सब कहते हैं कि ये अच्छी नहीं है,
नुकसान करती है,
सेहत को.. समझ को.. इंसान को..
पर कमसकम बाक़ी तो रहने देती है,
लोगों की तरह ख़त्म करने पर आमादा तो नहीं रहती,
मेरी ज़िन्दगी.. मेरी सोच.. मेरी इंसानियत..
मैने तो सबको मौका दिया था,
सबके लिये बाहें खोल कर खड़ा था,
पर बस ये ही आई,
मेरी ख़ामियों को अपनी सोच से दरकिनार करके,
और बिना किसी शर्त मेरी हो गयी..
माना गाढ़ी कमाई का कुछ हिस्सा ले जाती है,
पर ख़ुशियाँ ख़रीद पाता हूँ,
क्या ये ही काफ़ी नहीं है..
अब तुम ही कहो,
मैं कैसे शराब को ख़राब कह दूँ.....

Thursday, June 16, 2011

नहीं सीने में दिल जिनके, उन्हे दिल हार बैठे हैं..


उन्हे कहते है गुल हम, और हमें वो ख़ार कहते हैं,
नहीं सीने में दिल जिनके, उन्हे दिल हार बैठे हैं..

कई तरहा से दिल तोड़ा, हर इक टुकड़े में वो निकले,
जलाया एक अरमां जब कभी, दो बीज बो निकले,
वही ख़्वाबों मे, वो ही तोड़ते हर बार रहते हैं,
नहीं सीने में दिल जिनके, उन्हे दिल हार बैठे हैं..

सलीके से बड़े, दामन वो अपना साफ़ रखते हैं,
न जाने क़त्ल करके, कैसे ख़ुदको पाक़ रखते हैं,
हमें करके दिवाना, ख़ुद बने हुशियार रहते हैं,
नहीं सीने में दिल जिनके, उन्हे दिल हार बैठे हैं..

हर इक कोशिश गई बेकार, उनको रास आने की,
ख़यालों से मेरे, उनको हसीं एहसास लाने की,
हमें हैं देखते यूं के, बड़ी मुश्क़िल से सहते हैं,
नहीं सीने में दिल जिनके, उन्हे दिल हार बैठे हैं..

कभी तो यूं भी हो के देखकर, हमको वो मुस्काएं,
ना हों रुसवा, ना चेहरे पर ज़रा भी वो शिकन लाएं,
कभी पिघलेंगे वो, ये सोच दिल सुलगाए बैठे हैं,
नहीं सीने में दिल जिनके, उन्हे दिल हार बैठे हैं..

उन्हे कहते है गुल हम, और हमें वो ख़ार कहते हैं,
नहीं सीने में दिल जिनके, उन्हे दिल हार बैठे हैं..

Saturday, June 4, 2011

उठी जो बात है दिल में, बाहर आएगी ज़रूर..



   
उठी जो बात है दिल में, बाहर आएगी ज़रूर,
ना लब पे आई तो, कागज़ पे तो आएगी ज़रूर..

गई वो यूं, के मुड़के भी ना देखा एक दफ़ा,
दिया जो दिल था मुझे, लेने तो आएगी ज़रूर..

ना मोहब्बत सही, वहशत या वो उल्फ़त ही सही,
कोई तो चीज़, उसके दिल पे भी छाएगी ज़रूर..

नहीं किस्मत में खुशी मेरी, ये उम्मीद मगर,
ना सही जानके, भूले से, पर आएगी ज़रूर..

सभी वो छोड़ गये, जिसको भी दिल ने चाहा,
हुई है ग़म से मोहब्बत, रंग लाएगी ज़रूर..

अदा है, या तेरी दीवानगी ये है 'घायल',
उठा जो दर्द अगर, तो हंसी आएगी ज़रूर..

Friday, June 3, 2011

शुक्र है..शुक्रवार है..#13




ज़रा सी खोल दूं बोतल, ज़रा सा जाम फिर भर लूं,
अभी कुछ होश बाकी है, बेहोशी आम फिर कर लूं,
सुबह से अब तलक, दुनिया बुरी बस है नज़र आई,
चढ़ा के मय का चश्मा, ख़ूबसूरत शाम फिर कर लूं..