सफ़र है ज़िंदगी का, मैं भी गुज़र जाऊंगा,
इसी उम्मीद पे ज़िंदा हूं, के मर जाऊंगा..
घड़े मिट्टी के नहीं जल के कभी ख़ाक हुए,
जला सोना जितना, नूर उतने पाक़ हुए,
वहीं झुलसा, जहाँ सोचा था निखर जाऊंगा,
इसी उम्मीद पे ज़िंदा हूं, के मर जाऊंगा..
भिखारी राजा बनके बैठे, यहाँ झूठों से,
सभी हैं कामयाब, पाप की करतूतों से,
ज़रा सा और दिखा सच, तो बिखर जाऊंगा,
इसी उम्मीद पे ज़िंदा हूं, के मर जाऊंगा..
जहाँ मय्यत में दर्द झूठ है, आहें नकली,
मदद् में मतलब है, सबकी निगाहें नकली,
उसूल लेके असली, कैसे संवर जाऊंगा,
इसी उम्मीद पे ज़िंदा हूं, के मर जाऊंगा..
मरोड़े धर्म जैसे पंडितो को ठीक लगा,
मज़हब को मौलवी ने मोड़ा, जैसे ठीक लगा,
मैं लेके वेद, ये क़ुरान, किधर जाऊंगा,
इसी उम्मीद पे ज़िंदा हूं, के मर जाऊंगा..
सफ़र है ज़िंदगी का, मैं भी गुज़र जाऊंगा,
इसी उम्मीद पे ज़िंदा हूं, के मर जाऊंगा..
sarthak bhav....
ReplyDeleteBahut Accha bhai ..
ReplyDeleteगजब, बहुत ही प्यारा गीत है।
ReplyDelete------
TOP HINDI BLOGS !
खूबसूरत अभिव्यक्ति प्यारा गीत है।
ReplyDeleteखूबसूरत गीत
ReplyDeleteसुंदर प्रवाहमय गीत.
ReplyDeletebahoot khoob likhte hain janab aap.....bahoot hi khoooooooooob
ReplyDeleteबहुत खूब, पा इतनी मायूसी अच्छी नहीं,
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
Sabhi ka bahut bahut shukriya...
ReplyDeleteAapke protsaahan se hi prerna milti hai likhni ki ..