उन्हे कहते है गुल हम, और हमें वो ख़ार कहते हैं,
नहीं सीने में दिल जिनके, उन्हे दिल हार बैठे हैं..
कई तरहा से दिल तोड़ा, हर इक टुकड़े में वो निकले,
जलाया एक अरमां जब कभी, दो बीज बो निकले,
वही ख़्वाबों मे, वो ही तोड़ते हर बार रहते हैं,
नहीं सीने में दिल जिनके, उन्हे दिल हार बैठे हैं..
सलीके से बड़े, दामन वो अपना साफ़ रखते हैं,
न जाने क़त्ल करके, कैसे ख़ुदको पाक़ रखते हैं,
हमें करके दिवाना, ख़ुद बने हुशियार रहते हैं,
नहीं सीने में दिल जिनके, उन्हे दिल हार बैठे हैं..
हर इक कोशिश गई बेकार, उनको रास आने की,
ख़यालों से मेरे, उनको हसीं एहसास लाने की,
हमें हैं देखते यूं के, बड़ी मुश्क़िल से सहते हैं,
नहीं सीने में दिल जिनके, उन्हे दिल हार बैठे हैं..
कभी तो यूं भी हो के देखकर, हमको वो मुस्काएं,
ना हों रुसवा, ना चेहरे पर ज़रा भी वो शिकन लाएं,
कभी पिघलेंगे वो, ये सोच दिल सुलगाए बैठे हैं,
नहीं सीने में दिल जिनके, उन्हे दिल हार बैठे हैं..
उन्हे कहते है गुल हम, और हमें वो ख़ार कहते हैं,
नहीं सीने में दिल जिनके, उन्हे दिल हार बैठे हैं..
marmik prastuti
ReplyDeleteन जाने क़त्ल करके, कैसे ख़ुदको पाक़ रखते हैं,
ReplyDeletekya likha hai adi..awsm bhai..loved it
Waow ..
ReplyDeleteउन्हे कहते है गुल हम, और हमें वो ख़ार कहते हैं,
ReplyDeleteनहीं सीने में दिल जिनके, उन्हे दिल हार बैठे हैं..
वाह सुन्दर गीत्\