बेच रहे जो भारत को, उनकी न जय-जय कार करो,
पुत्र हो जिस भूमी के तुम, उस माँ का न व्यापार करो..
जिसकी मिट्टी के आंचल में, खेल कूद कर बड़े हुए,
बने नपुंसक, उसके सीने पर बिन लज्जा खड़े हुए,
भारत माँ के हर शत्रू का, आगे बढ़ संहार करो,
पुत्र हो जिस भूमी के तुम, उस माँ का न व्यापार करो..
अब कपूत भी, हैं सपूत का, भेस-ही धारण किये हुए,
ऋषि रूप में छलते दानव, रक्त पिपासा लिए हुए,
जग समक्ष तुम सत्य दिखाकर, इन दुष्टों पर वार करो,
पुत्र हो जिस भूमी के तुम, उस माँ का न व्यापार करो..
दो सौ वर्षों के घावों को सह कर भी, जो डटी रही,
टुकड़े-टुकड़े कर डाले, पर टुकड़ों में भी सटी रही,
उस चिड़िया के स्वर्ण-पंख, लौटाने की हुंकार भरो,
पुत्र हो जिस भूमी के तुम, उस माँ का न व्यापार करो..
वचन अधूरा न छोड़ो, तुम कर्म अधूरा न छोड़ो,
बन सुपुत्र कर्तव्य निभाओ, धर्म अधूरा न छोड़ो,
नव-निर्माण करो भारत का, हर बाधा को पार करो,
पुत्र हो जिस भूमी के तुम, उस माँ का न व्यापार करो..
बेच रहे जो भारत को, उनकी न जय-जय कार करो,
पुत्र हो जिस भूमी के तुम, उस माँ का न व्यापार करो..!!
बेच रहे जो भारत को, उनकी न जय-जय कार करो,
ReplyDeleteपुत्र हो जिस भूमी के तुम, उस माँ का न व्यापार करो..!!
Bahut accha aur bahut sarthak .... aur bahut jaruri bhi hai es samay ...
देशप्रेम की भावनाओं से ओतप्रोत रचना.आह्वाहन करती बधाई
ReplyDeleteबहुत सही...
ReplyDeleteसुन्दर रचना , सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteस्वाधीनता दिवस की शुभकामनाएं .
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें .