Wednesday, May 1, 2013

आज फिर आँख भर गई होगी..


आज फिर आँख भर गई होगी,
उसको मेरी ख़बर गई होगी..

मेरी यांदों की धूल में लिपटी,
हाय कैसे वो घर गई होगी..

रात ख़्वाबों में देख कर मुझको,
सोते-सोते संवर गई होगी..

बारहा बेहया सवालों से,
जीते जी फिर से मर गई होगी..

इक तरफ़ प्यार इक तरफ़ रस्में,
नंगे पांवों गुज़र गई होगी..

अश्क़ पीकर, नज़र झुका कर के,
सबके दिल में उतर गई होगी..

चाय की प्यालियां संभाले, ख़ुद,
होके टुकड़े बिखर गई होगी..

कहते-कहते कबूल है क़ाज़ी,
रहते-रहते मुक़र गई होगी..

Sunday, April 28, 2013

ये ख़लिश दिल से क्यूं नहीं जाती..


ये ख़लिश दिल से क्यूं नहीं जाती,
रूह आराम क्यूं नहीं पाती,
है कोई मर्ज़ या कयामत है,
दवा कोई दुआ नहीं भाती..

बड़ी मुश्क़िल से बड़ी महनत से,
हुई नफ़रत हमें मुहब्बत से,
ये बला कौन आ पड़ी है गले,
नींद अब के ये क्यूं नहीं आती..

कल तलक तो सकून देती थी,
यही रग-रग को ख़ून देती थी,
है ख़फ़ा या है बेवफ़ा मुझसे,
आज मय क्यूं असर नहीं लाती..

न कोई आरज़ू अधूरी है,
न कोई पास है न दूरी है,
ख़्वाहिशें कब की मार दीं सारी,
आस-ए-दिल क्यूं ज़हर नहीं खाती..

ये ख़लिश दिल से क्यूं नहीं जाती,
दवा कोई दुआ नहीं भाती,
है कोई मर्ज़ या कयामत है,
रूह आराम क्यूं नहीं पाती..