इज़हार-ए-इश्क़ फिर है, निकले फिर अंजाम जो निकले,
बहाना है, ज़ुबां से उनकी, मेरा नाम तो निकले..
सुबह होते ही घर से, ये दुआ लेकर निकलता हूं,
बने जो सिर्फ मुझसे, आज उनको काम वो निकले..
ज़ुबां से हर तरह भेजा, मगर ना कान तक पहुंचा,
के पहुंचे दिल तलक, इस दिल से अब पैग़ाम जो निकले..
मैं जमके ठान बैठा था, के उनको भूल जाऊंगा,
हुए पुर्जे इरादों के, वो घर से शाम को निकले..
अभी तक तो कभी मुझपर, नहीं उंगली उठी कोई,
वफ़ा का बेवफ़ा से हो, कोई इल्ज़ाम जो निकले,
बड़ी ज़िल्लत मिली, जब भी हूं गुज़रा उस गली से मैं,
कभी तो हो, के दर मेरा हो और बदनाम वो निकले..
हुआ जो इश्क़ तो भी, और मिला इनकार तो 'घायल',
सुनाया हाल-ए-दिल इक यार को, और जाम दो निकले..!!
बहाना है, ज़ुबां से उनकी, मेरा नाम तो निकले..
सुबह होते ही घर से, ये दुआ लेकर निकलता हूं,
बने जो सिर्फ मुझसे, आज उनको काम वो निकले..
ज़ुबां से हर तरह भेजा, मगर ना कान तक पहुंचा,
के पहुंचे दिल तलक, इस दिल से अब पैग़ाम जो निकले..
मैं जमके ठान बैठा था, के उनको भूल जाऊंगा,
हुए पुर्जे इरादों के, वो घर से शाम को निकले..
अभी तक तो कभी मुझपर, नहीं उंगली उठी कोई,
वफ़ा का बेवफ़ा से हो, कोई इल्ज़ाम जो निकले,
बड़ी ज़िल्लत मिली, जब भी हूं गुज़रा उस गली से मैं,
कभी तो हो, के दर मेरा हो और बदनाम वो निकले..
हुआ जो इश्क़ तो भी, और मिला इनकार तो 'घायल',
सुनाया हाल-ए-दिल इक यार को, और जाम दो निकले..!!
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteBAHUT ACHHA BAS U KAHIYE KE
ReplyDeleteरोज सूरज को नीकलते देखता हु !
लेकर नाम तेरा तब मै घर से नीकलता हु !!
सायद आज तो मील ही जाएगी तू !
इसलिए तुझे रोज ढूढ़ने नीकलता ह !!
बहुत ही सुन्दर और बेहतरीन ग़ज़ल!
ReplyDeleteआदित्य भाई पढकर मजा आ गया, कसमसे।
ReplyDelete---------
मौलवी और पंडित घुमाते रहे...
बदल दीजिए प्रेम की परिभाषा।
bhai mja aa gaya .... wah
ReplyDeleteसुबह होते ही घर से, ये दुआ लेकर निकलता हूं,
ReplyDeleteबने जो सिर्फ मुझसे, आज उनको काम वो निकले..
-वाह, क्या ख्वाइश है....काश!!!
बेहतरीन रचना...
बहुत बहुत शुक्रिय सभी का... मुझे खुशी है कि आप लोगों को पसंद आई..
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