तलाशते तलाशते, ख़याल खो गए,
जवाब तब मिले हैं, जब सवाल खो गए..
अब क्या बताऊं मैं, के कितना वक़्त हो गया,
"साल हो गए" कहे भी, साल हो गए..
वो सपना, वो ख़्वाहिश, वो आरज़ू, वो तमन्ना,
दुनिया के झमेलों में, सब हलाल हो गए..
जब तक था साथ, तब तलक थे रास्ते सीधे,
तन्हा चला, तो सब उलझ के जाल हो गए..
इश़्क था, उनको भी था, मुझको भी था, फिर क्यूं,
बेहाल हो गया मैं, वो निहाल हो गए..
वो करते रहे ज़ुल्म, मैने उफ़ नहीं किया,
वो थक गए, मैं हंस पड़ा, बवाल हो गए..
धोखों से, दग़ाओं से कुछ तो फ़ायदा हुआ,
कलम हुई तलवार, लफ़्ज़ ढाल हो गए..
ये श़ेर क्या हैं, क्या ग़ज़ल, हैं बस ग़म-ए-'घायल',
जितना मैं रोया, उतने ही कमाल हो गए..
बहुत सुंदर ................
ReplyDeletebadhiya sher...acchi prastuti samay mile to aaiyegaa meri post par aapka svagat hai
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