Friday, December 30, 2011

शुक्र है..शुक्रवार है..#30 ___________(महफ़िल की रात है)


हाँ खुल के मुस्कुराइये, महफ़िल की रात है,
ग़म सारे भूल जाइये, महफ़िल की रात है,
दामन मुंई तन्हाई से, अब तो छुड़ाइये,
बांहे ज़रा फ़ैलाइये, महफ़िल की रात है..

मुद्दत हुई जिनसे मिले, उनको बुलाइये,
यारों के साथ बैठिए, किस्से सुनाइये,
फिर जाम कुछ लड़ाइये, महफ़िल की रात है,
फिर होश कुछ गंवांइये, महफ़िल की रात है..

दिल की शमां को फिरसे यूं, रौशन बनाइये,
जो याद खुशी रोकती हैं, सब जलाइये,
धुंए में सब उड़ाइये, महफ़िल की रात है,
बस पीते चले जाइये, महफ़िल की रात है..

ग़म सारे भूल जाइये, महफ़िल की रात है..
अब खुल के मुस्कुराइये, महफ़िल की रात है,

इस जन्म के अधूरे, वादों के जैसा गुज़रे..


ये साल जो आएगा, बस साल नया होगा,
ना ज़ख़्म भर चलेंगे, ना हाल नया होगा,
इस साल में नया सा, कुछ भी तो नहीं होगा,
जो अब तलक हुआ है, आगे भी वही होगा,
कुछ अंक बदलने से, क्या वक़्त बदलता है,
बस मन का ये वहम है, बस मन ही बहलता है..

आदत है कौन सी जो, मैं छोड़ने की ठानूं,
इक सांस, इक है धड़कन, मैं किसको बुरा मानूं,
ज़िन्दा हूं जिस सहारे, उसको मैं कैसे छोड़ूं,
ये हाथ की लकीरें, बतलाओ कैसे मोड़ूं,
ये साल का बदलना, ना आख़िरी दफ़ा है,
जितने बचे हैं बाक़ी, इतनी सी इल्तजा है..

नए साल कितने भी हों, सब हाथों-हाथ गुज़रें,
गए साल से पहले की, यादों के साथ गुज़रें..
था साथ कुछ ही पल का, पर शुक्रिया ख़ुदाया,
उन कुछ पलों को मैने, जीते हुए बिताया,
उन कुछ पलों के दम पे, मैं अश्क़ हर पियूंगा,
उन कुछ पलों के दम पे, मैं उम्र भर जियूंगा..

बस एक दुआ मेरी, क़ुबूल ख़ुदा करना,
इक जन्म नया देना, जिसमें ना जुदा करना,
इक जन्म जो पूरा ही, यादों के जैसा ग़ुज़रे,
इस जन्म के अधूरे, वादों के जैसा गुज़रे..
इस जन्म के अधूरे, वादों के जैसा गुज़रे..
इस जन्म के अधूरे, वादों के जैसा गुज़रे..

Thursday, December 29, 2011

गए साल का हर पल, कई साल में गुज़रा..



अब कैसे बताऊं मैं, किस हाल में गुज़रा,
गए साल का हर पल, कई साल में गुज़रा..

ये साल था पहला जो, बीता जुदाई में,
तेरे साथ ना होने की, मुश्क़िल सफ़ाई में,
तुझको भुलाया, तेरे ही ख़याल में गुज़रा,
गए साल का हर पल, कई साल में गुज़रा..

तुझसे किए जो वादे, पूरे नहीं किए,
वो अश्क़ जो आँखों से, गिरने तेरी दिए,
हर सांस जिस्म से मेरे, मलाल में गुज़रा,
गए साल का हर पल, कई साल में गुज़रा..

मुझको पता था, कि तू, नाराज़ है मुझसे,
जो हाल था तेरा वो, क्या राज़ है मुझसे,
हर क़तरा ख़ून दिल से, उबाल में गुज़रा,
गए साल का हर पल, कई साल में गुज़रा..

दिल पे था मेरे तेरा, है तेरा हक़ मग़र,
कुछ कर्ज़ थे, कुछ फर्ज़ हैं, तुझको भी है ख़बर,
मालूम थे जवाब, पर सवाल में गुज़रा,
गए साल का हर पल, कई साल में गुज़रा..

नए साल की मनाऊं खुशी, या मैं रो पड़ूं,
अपने ही फ़ैसलों पे, अपने आप से लड़ूं,
अच्छे बुरे के उलझे हुए, जाल में गुज़रा,
गए साल का हर पल, कई साल में गुज़रा..

अब कैसे बताऊं मैं, किस हाल में गुज़रा,
गए साल का हर पल, कई साल में गुज़रा..


Friday, December 23, 2011

शुक्र है..शुक्रवार है..#29 ________ (मुझे पीने से ना रोको)



मुझे जीने से ना रोको, ज़ख़्म सीने से ना रोको,
मुझे भी सांस लेने दो, मुझे पीने से ना रोको..

मैं गलता हूं तो गलने दो, मेरे दिल को भी जलने दो,
मेरी तुम ना करो परवाह, मुझे पीने से ना रोको..

तुम्हारे ही रिवाज़ों ने, तुम्हारे ही समाजों ने,
मुझे पीना सिखाया है, मुझे पीने से ना रोको..

उसे आने दिया तुमने, उसे छाने दिया तुमने,
उसे जाने से ना रोका, मुझे पीने से ना रोको..

ख़ुदा से ना डराओ तुम, मज़हब से ना बनाओ तुम,
ये सब तुमने बनाया है, मुझे पीने से ना रोको..

Thursday, December 22, 2011

मैं तुझको क्या बताऊं माँ..


मैं तुझको क्या बताऊं माँ,
मैं तुझसे क्या छुपाऊं माँ,
मुझे मालूम है, तुझको पता है, हाल सब मेरा,
मग़र कहके, "दुखी हूं मैं", तुझे कैसे सताऊं माँ..

मैं लिपटा मुश्किलों में हूं,
मैं उलझा मंज़िलों में हूं,
मुझे मालूम है, तू है मरहम, हर ज़ख़्म का मेरे,
मग़र तुझको दिखाकर चोट, मैं कैसे रुलाऊं माँ..

मैं कोशिश रोज़ करता हूं,
मैं हर इक रोज़ मरता हूं,
मुझे मालूम है, मुझपर भरोसा है तुझे पूरा,
मग़र टूटा मेरा ख़ुदपे, तुझे कैसे दिखाऊं माँ..

मेरी मुस्कान झूठी है,
मेरी उम्मीद टूटी है,
मुझे मालूम है, देगा सुकूं, रोना तेरे आगे,
मग़र बेटा हूं, आंसू आँख से, कैसे बहाऊं माँ..
बेटा हूं, आंसू आँख से, कैसे बहाऊं माँ..

मैं तुझको क्या बताऊं माँ,
मैं तुझसे क्या छुपाऊं माँ..

Friday, December 16, 2011

शुक्र है..शुक्रवार है..#28


फिर सब साथ में आओ यारों,
जाम से जाम लड़ाओ यारों,
जहां ठहरा हुआ है आज भी दिल,
वापस वक़्त वो लाओ यारों..

मैं हंसते-हंसते रो पड़ूं फिर से,
बेहुदा बात पे अड़ूं फिर से,
नए कुछ किस्से बनाओ यारों,
वापस वक़्त वो लाओ यारों..

ज़रा कुछ जोश सा मुझमें भर दो,
ज़रा बेहोश सा मुझको कर दो,
मुझे फिर मुझसे मिलाओ यारों,
वापस वक़्त वो लाओ यारों..

ना ग़म हो, ना हो ग़म की कोई ख़बर,
ना हो बहके हुए क़दमों की फ़िक़र,
मुझे फिर इतनी पिलाओ यारों,
वापस वक़्त वो लाओ यारों..

Thursday, December 15, 2011

झुकेगा ना थकेगा ना रुकेगा ठान ले..


शून्य से, अपार से,
बदिराओं की हुंकार से,
ब्रह्मांड भर के भार से,
अम्बर कभी झुका है क्या..
कर्तव्य की पुकार से,
कठिनाई की ललकार से,
इच्छाओं के विकार से,
तू झुका है क्यूं..

प्रकाश के प्रहार से,
निशा के अंधकार से,
पुनः पुनः के वार से,
सूरज कभी थका है क्या..
प्रयास का अपमान कर,
स्वयं को क्षीण जान कर,
क्षण में हार मान कर,
तू थका है क्यूं..

सूखे से या अकाल से,
आंधी से या भूचाल से,
जीवन से या कि काल से,
समय कभी रुका है क्या..
वो खो गया है इसलिये,
तू रो गया है इसलिये,
कुछ हो गया है इसलिये,
तू रुका है क्यूं..

अम्बर से.. सूरज से.. समय से ज्ञान ले,
झुकेगा ना थकेगा ना रुकेगा ठान ले..
झुकेगा ना थकेगा ना रुकेगा ठान ले..

Monday, December 12, 2011

कुर्बानी


ये बिन अपवाद, आंसू-दर्द, अपने संग लाती है,
इच्छा और अच्छा में, उबलती जंग लाती है,
गुज़रती क्या है कुर्बानी में कुर्बां पर, है ये जाना,
बस अब ये देखना बाकी है, क्या ये रंग लाती है..

Friday, December 9, 2011

शुक्र है..शुक्रवार है..#27



मैं इसको पा बहकता हूं, ये मेरी हो महकती है,
मैं तब जाके सुलझता हूं, ये जब मुझमें उलझती है,
ना मैं सबको समझता हूं, ना सब मुझको समझते हैं,
मैं जब ख़ुदको नहीं पाता, मय तब मुझको समझती है..

Wednesday, December 7, 2011

जवाब तब मिले हैं, जब सवाल खो गए..


तलाशते तलाशते, ख़याल खो गए,
जवाब तब मिले हैं, जब सवाल खो गए..

अब क्या बताऊं मैं, के कितना वक़्त हो गया,
"साल हो गए" कहे भी, साल हो गए..

वो सपना, वो ख़्वाहिश, वो आरज़ू, वो तमन्ना,
दुनिया के झमेलों में, सब हलाल हो गए..

जब तक था साथ, तब तलक थे रास्ते सीधे,
तन्हा चला, तो सब उलझ के जाल हो गए..

इश़्क था, उनको भी था, मुझको भी था, फिर क्यूं,
बेहाल हो गया मैं, वो निहाल हो गए..

वो करते रहे ज़ुल्म, मैने उफ़ नहीं किया,
वो थक गए, मैं हंस पड़ा, बवाल हो गए..

धोखों से, दग़ाओं से कुछ तो फ़ायदा हुआ,
कलम हुई तलवार, लफ़्ज़ ढाल हो गए..

ये श़ेर क्या हैं, क्या ग़ज़ल, हैं बस ग़म-ए-'घायल',
जितना मैं रोया, उतने ही कमाल हो गए..

Friday, December 2, 2011

शुक्र है..शुक्रवार है..#26



मंदिरों में, मस्जिदों में, ना-मंज़ूर हो गए,
भगवान से, ख़ुदा से, थोड़ा दूर हो गए,
अज़ान-आरती, हैं दोनो देती सुनाई,
नज़दीक़ थे जो मयकदे, मशहूर हो गए..