पिलाए जा, पिलाए जा, पिलाए जा साक़ी,
पिलाए जा, हैं जब तलक मेरी सांसें बाक़ी,
किसे पड़ी है के ढूंढे कोई वजहा, थम के,
पिला खुशी में खुशी की, या ग़म मे ग़म के,
है जितनी भी शराब, सारी कर दे नाम मेरे,
तू खाली होने से पहले ही, भर दे जाम मेरे,
कोई भी हद ना बता, घर को नहीं जाना है,
मेरा बस यार इक तू, मयकदा ठिकाना है,
पिलाए जा, ना तू महबूब है, ना माँ, साक़ी,
पिलाए जा, हैं जब तलक मेरी सांसें बाक़ी..
WOW!!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteBahut bahut shukriya indu ji :)
Deleteबहुत खूब बॉस।
ReplyDeleteशुक्र है शुक्रवार है यह मेरा तकिया कलाम हुआ करता था जब मैं बिग बाज़ार मे अनाउंसर था।
आपकी पोस्ट और ब्लॉग बहुत अच्छा लगा।
सादर
Bahut bahut shukriya sir... :)
DeleteMujhe khushi hai ki aapko pasand aaya.. :)
बहुत सुन्दर रचना!
ReplyDeleteBahut bahut bahut dhanyawad sir.. :)
Deleteaap jaise sthaapit lekhako ke protsaahan ke sahaare aage bhi achchaa likhne ki apni poori koshish karunga.. :)
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeletebahut bahut dhanyawad sir.. :)
DeleteIt is awesome dude...no word to say...
ReplyDeleteyour are heartily invited to My blog...
Thankuuu so much... :)
Deletenice :)
ReplyDeleteWelcome to मिश्री की डली ज़िंदगी हो चली
Thanks.. :)
Deleteumda nazm.
ReplyDeleteShukriya.. :)
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