कुछ हमको अपनी हार से फ़ुर्सत नहीं मिली,
कुछ दिल को तेरे प्यार से फ़ुर्सत नहीं मिली..
हमने तो छुपाया था बहुत हाल-ए-दिल मग़र,
यारों को इश्तिहार से फ़ुर्सत नहीं मिली..
दिल दिल से मिले, कोई बड़ी बात तो नहीं,
पर इश्क़ को बाज़ार से फ़ुर्सत नहीं मिली..
लो रात भी थक हार के बेचैन सो गई,
पर हमको इंतज़ार से फ़ुर्सत नहीं मिली..
हमने तो मनाया था दिल को हर तरह मग़र,
उम्मीद को आसार से फ़ुर्सत नहीं मिली..
जो जख़्म थे मिले, उन्हे तो वक़्त भर गया,
पर आदत-ए-आज़ार
जाने वो कौन लोग हैं, करतें हैं सौ दफ़ा,
हमको तो एक बार से फ़ुर्सत नहीं मिली..
दुश्मन की कहो कोई कमी क्यूं ख़ले हमे,
हमको दग़ा-ए-यार से फ़ुर्सत नहीं मिली..
करने तो सितमगर से गए थे शिक़ायतें,
कमबख़्त के दीदार से फ़ुर्सत नहीं मिली..
ये जानते हैं हम, के-ये शराब है ख़राब,
पर क्या करें, करार से फ़ुर्सत नहीं मिली..
वाह!!!!बहुत सुंदर आदित्य जी प्रभावी गजल ,..
ReplyDeleteMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: गजल.....
बेहतरीन गज़ल...हरेक शेर बहुत उम्दा...
ReplyDeleteवाह...............
ReplyDeleteबहुत खूब.
हर शेर एक नगीने जैसा............
लाजवाब गज़ल..........
आदित्य जी क्या लिखते हो यार ! तुम्हारी नयी पोस्ट का तो इंतज़ार रहता है हमे
ReplyDeleteबहुत सुंदर शायरी ....
ReplyDeleteशुभकामनायें ...आदित्य जी ...
वाह ...बहुत खूब ..
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत गजल .............
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन गजल..
ReplyDeleteलाजवाब....शानदार .....
wah....har pangti bemisaal.
ReplyDeleteAap sabhi ka bahut bahut shukriya :)
ReplyDeleteहमको दगा-ए यार से फुर्सत नही मिली क्या खूब लिखा है ।
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