हरी धरती, भरा सागर, खुला अम्बर है तन्हाई,
कभी जो साथ ना छोड़े, वही रहबर है तन्हाई,
यही बस एक साथी है, यही बस एक काफ़ी है,
हज़ारों अजनबी चेहरों से तो, बेहतर है तन्हाई..
बड़े ही ग़ौर से बैठी, मेरी हर बात सुनती है,
मैं सारी रात कहता हूं, ये सारी रात सुनती है,
कभी ऐसा भी होता है, मैं लब से कह नहीं पाता,
ये मेरी आँख से बहते हुए, जज़्बात सुनती है..
कभी हम साथ बैठे, चाँद को मामा बनाते हैं,
कभी गिन-गिन के तारे रात भर, आँखें सुजाते हैं,
कभी बिखरे हुए ख़्वाबों के टुकड़े, साफ़ करते हैं,
कभी फिर जोड़ कर टुकड़े, नए सपने सजाते हैं..
मुझे हर पल समझ देती हुई, ठोकर है तन्हाई,
मैं घर से दूर जब भी हूं, तो मेरा घर है तन्हाई,
यही बस एक साथी है, यही बस एक काफ़ी है,
हज़ारों अजनबी चेहरों से तो, बेहतर है तन्हाई..
वाह....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर आदित्य जी...
शुक्र है शुक्रवार है....
अनु
वाह || तन्हाई भी भाती है...
ReplyDeleteबहुत-बहुत सुन्दर रचना...
दर्द तड़प और बेचैनी के, है इलाज अब सारे
ReplyDeleteएक दावा इनको भी लिख दो क्यूँ रोयें बेचारे,,,,,,
बेहतरीन प्रस्तुति,,,,
RECENT POST ...: आई देश में आंधियाँ....
वाह, क्या कहने बहुत ही उम्दा भाव संयोजन किया है आपने, कहाँ थे इतने दिन बहुत दिनों बाद आज आपकी कोई पोस्ट देखी समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
ReplyDeletehttp://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/
Very well penned!!!
ReplyDeletehttp://ruchitasnotsoordinarylife.blogspot.in/2012/07/draupadis-woes-rewind.html
अन्तिम पंक्तियां भावमय करती हुई ... बेहतरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसच कहा है, तन्हाई से बेहतर कोई साथी नहीं,
ReplyDeleteकम से कम ये साथ नहीं छोड़ती !