Friday, January 27, 2012

शुक्र है..शुक्रवार है..#33


ये ज़िंदगी है-क्या-जाने, वो-जिसने जी-ही-नहीं,
उसे क्या होश का पता है, जिसने पी ही नहीं,
जो चहते हो जानना, के क्या है मय का असर,
तो परिंदे से पूछ लो, है क्या आज़ाद सफर..

जो दिल को, दुनिया के सब कायदे, लगते हों बुरे,
अगर जो ज़ख़्म, दवा देख के, होतें हो हरे,
तो आओ तुम भी, महफ़िलों में पीने वालों की,
पनाह में आओ, तुम भी, मर के जीने वालों की..

ना उनकी बात सुनो, जिनको कुछ पता ही नहीं,
जिन्हे मालूम नहीं, उनकी कुछ ख़ता ही नही,
जो नहीं पीते है, उनको नहीं चोट मिली,
उन्हे क्या दर्द पता, लगती है हर बात भली..

किसी के टूटे हुए दिल की हक़ीक़त समझो,
किसी के उजड़े हुए घर की मुसीबत समझो,
किसी के पीने की वजह क्या है, राज़ सुनो,
किसी अंजाम से पहले, कोई आग़ाज़ सुनो..

जिसे नहीं है ज़रूरत, ना सही, आज नहीं,
वही कल मयकदे में होगा यहीं, आज नहीं,
उसे पता नहीं अभी, के अभी पी ही नहीं,
ये ज़िंदगी है क्या जाने, के उसने जी ही नहीं..
ये ज़िंदगी है क्या जाने, वो जिसने पी ही नहीं..

11 comments:

  1. bahut sundar dil ko choone vaali ghazal.

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  2. बहुत सुन्दर ! लाजबाब आखिरी की चार पंकितियाँ दिल को भा गई !

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  3. awesomely written...:)as always...:):)
    The things u write always have a deep meaning inside...:)

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  4. ...लाज़वाब !...बहुत ख़ूबसूरत
    बसंत पंचमी की शुभकामनाएं....

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    1. Bahut bahut dhanyawad sanjay ji.. :)
      Apko bhi basant panchmi ki bahut bahut shubkaamnaaein.. :)

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