आज कहानी सबको, अपने पल-पल की बतलाता हूं,
कैसे मैं ज़िंदा रहता हूं, कैसे सब सह पाता हूं,
रोज़ रात भर लेटा रहता हूं मैं, आंखें बंद किए,
सुबह-सुबह सब जगते है, मैं बिस्तर से उठ जाता हूं..
फिर होके तैयार, नौकरी करने को बढ़ जाता हूं,
दिनभर काम-काम चिल्ला कर, दिल को मैं बहलाता हूं,
चौबिस में से, बस ये दस घंटे ही जल्दी कटते हैं,
फिर सदियां बितलाने को मैं, दफ़तर से घर जाता हूं..
इस शरीर की ख़ातिर ही, बस खाता हूं, जो खाता हूं,
कुछ कर्ज़ों की ख़ातिर, मैं कुछ फर्ज़ निभाता जाता हूं,
राह ज़रा तकता हूं, बाकी सब के मैं सो जाने की,
फिर अपनी असली दुनिया में, नज़र बचाके आता हूं..
मैं सिगरट होठों पे रखके, फिर ख़ुदको सुलगाता हूं,
मैं शराब का जाम उठाके, फिर ख़ुदको पी जाता हूं,
फिर जो उसके संग ग़ुज़ारे, उन लम्हों की याद लिए,
मैं जितना जीना चाहता हूं, फिर उतना जी आता हूं..
सारा दिन मुस्कान लिए चहरे पर, सबको भाता हूं,
दो आँसूं आंखों में लेकर, कहने को सो जाता हूं..
दो आँसूं आंखों में लेकर, कहने को सो जाता हूं..
....
रोज़ रात भर लेटा रहता हूं मैं, आंखें बंद किए,
सुबह-सुबह सब जगते है, मैं बिस्तर से उठ जाता हूं..
nice composition
ReplyDeletedin kuch yun hi gujarte hai apne bhi... :-)
Thanks sirji.. :)
Deletedincharya to achchhi hai...bas shaam ko thoda khushnuma banaayen....!
ReplyDeletekuchh rachnaayen padhi hain....
badiya hain.....
kuchh baad mein padhungi....
shukriya mere blog tak aane ke liye...
badhayi sundar lekhan ke liye...!!
Bahut Bahut shukriya Punam ji :)
DeleteBas koshish jaari hai shaam ko khushnuma banane ki.. dekhiye kab safalta milti hai :)
Wow again...!!!
ReplyDelete(:
Thankuuuuu... :)
Deleteबहुत ही बहतरीन लिखा है आपने प्रभावशाली रचना समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।http://aapki-pasand.blogspot.com/2012/02/blog-post_03.html
ReplyDeleteBahut bahut shukriya Pallavi ji.. :)
Deleteसारा दिन मुस्कान लिए ...
ReplyDeleteवाह ...बहुत खूब लिखा है आपने ...
Bahut bahut dhanyawad apka..
DeleteMujhe khushi hai apko pasand aai.. :)
गजब का लिखते हैं मित्र आप।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा।
सादर
Bahut bahut dhanyawad sir :D
Deleteबहुत बेहतरीन एक -एक पंक्ती दिल को छु लेनेवाली है
ReplyDeleteअंत कि पंक्तीया
सारा दिन मुस्कान लिये चेहरे पर सबको भाता हू
दो आंसू आंखो में लेकर कहने को सो जाता हु
बहुत हि कमाल कि पंक्तीया है ...
Bahut bahut shukriya Reena ji :)
Deletebehatareen prastuti ..... badhai aditya ji.
ReplyDeleteBahut bahut shukriya sir :)
Deleteमन की अकुलाहट की सुंदर प्रस्तुति.पर खुद हो सुलगाने और खुद को पीने के लिए अन्य वस्तुओं की क्या जरूरत ?
ReplyDeleteBahut bahut dhanyawad sir :)
DeleteAb kisi insaan par to itna bharosa raha nahi sir, to duniya mein khud ko barbaad karne ki sabse mashhoor cheezo ka sahaara le liya :D
अपने मन को उकेरकर रख दिया है आपने...दूसरों के मन-द्वार तक पहुंचकर...आज ६०% लोग ऐसे ही जी रहे हैं....बहुत बढ़िया ..
ReplyDeleteBahut bahut shukriya Ragini ji :)
Deleteयही आज का जीवन है...बहुत सुंदर रचना जो अंतस को छू जाती है...
ReplyDeleteBahut bahut shukriya sirji.. :)
Deletea good verse having a good theme.../keep it up/thanks for visiting/ i joined you blog/hope same for u/
ReplyDeleteThanks a lot :)
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