हमेशा कम उसे पाया, जिसे ज़्यादा समझ बैठे,
मुकम्मल वो मिला है बस, जिसे आधा समझ बैठे..
चमकती चीज़ जो देखी, समझ बैठे उसे सोना,
चमक उसमें मिली असली, जिसे सादा समझ बैठे..
जिसे सूरप-नखा समझे थे हम, निकली वही सीता,
वही इक पूतना थी, हम जिसे राधा समझ बैठे..
हो फ़ितरत या-वो नीयत हो, उमर भर एक रहती है,
हमारा बचपना ही था, उसे दादा समझ बैठे..
वही निकला वज़ीर-ए-आज़म-ए-तक़दीर, इक मोहरा,
जिसे 'घायल', बिसात-ए-ज़िंद का प्यादा समझ बैठे..
तजुर्बा ऐसी नासमझियों से ही आता है.....
ReplyDeleteदुनिया से आदमी सीख कर ही जाता है....
होली के पावन पर्व की आपको हार्दिक शुभकामनाये !
ReplyDeleteHO FITRAT YA WOH NIYAT HO UMRA BHAR EK REHTI HAE......
ReplyDeleteKOE KAISE SAMAGH BAITHE YE USKI FITRAT HAE
वाह!!!बहुत बेहतरीन प्रस्तुति,सुंदर भाव अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteहोली की बहुत२ बधाई शुभकामनाए...
पोस्ट आइये स्वागत है....
RECENT POST...काव्यान्जलि ...रंग रंगीली होली आई,
होता है ऐसा धोखा जीवन में
ReplyDeleteजिस सच्चा समझो वही गलत
हो जाता है, इससे सिख मिलती है
आनेवाले कटीन समय के लिये
बेहतरीन रचना...
होली पर्व कि शुभ कामनाये
बहुत सुन्दर ग़ज़ल....बहुत बहुत बधाई...होली की शुभकामनाएं....
ReplyDeleteवाह! बहुत बधाई। होली की शुभकामनायें।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ...होता है ऐसा ! होली की शुभकामनाएँ ...
ReplyDeleteधीरे धीरे सीख जायेंगे.....ज़रा बाल तो पकने दें..
ReplyDeleteहोली मुबारक हो...
haha.. baal to dhoop ne aur pradooshan ne hi paka diye :)
Deleteपहले जैसी ही बहुत खूबसूरत गज़ल । होली की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteवाह! बहुत सुन्दर लिखा है आपने!
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनाएं.
आदित्य जी आपकी कविताओ का तो इंतज़ार रहता है हमे !
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना !
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteआपको महिला दिवस और होली की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ।
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कल 09/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
bahut bahut shukriya sir shaamil karne k liye :)
Deleteआनन्द आ गया पढ़कर.
ReplyDeleteसुंदर एवं सार्थक अभीव्यक्ति क्यूंकि हर पीली चमकती हुई चीज़ सोना नहीं होती। होली मुबारक हो....
ReplyDeleteसही कहा..!!
DeleteApp sabhi ka bahut bahut shukriya pasand karne k liye..
ReplyDeleteaur sabhi ko shubkaamnaayein holi ki :)
बड़ी अच्छी गज़ल...
ReplyDeleteहोली की शुभकामनाएं...
पहल बार आना हुआ आपकी पोस्ट पर ....अनुभव ही हमें परिपक्व बनाते हैं ....समझदार बनाते हैं .....सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत नज़्म.....
ReplyDeletewah bhai kya khoob likha hai apne ......seeta to aaj ke yug kalpana bhr hai bs pootana hi milati hain ...shandar rachana ke liye badhai .
ReplyDeleteसमझ का फेर न समझे, समझदारी यही तो है
ReplyDeleteउसी ने कामयाबी दी , जिसे बाधा समझ बैठे.
बहुत, बहुत और बहुत ही शानदार रचना.................
har pangti lazabab.....
ReplyDeleteवह क्या बात है ...!!
ReplyDeleteपिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...
ReplyDeleteइस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद कबूल करें..
नीरज
सभी शेर बहुत बढ़िया, दाद स्वीकारें.
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