इक़ बार इश्क़ में वो, मुझको भी आज़माते,
दुनियाँ में हर किसी को, ना बेवफ़ा बताते..
बस दूर से हमेशा, मुझको बुरा बताया,
थोड़ा सा पास आते, तो और पास आते..
इतनी सी आरज़ू थी, इतनी सी बस तमन्ना,
मैं जिनपे लुट मरा था, वो मुझपे जाँ लुटाते..
दोनो के टूटे दिल की, आसान सी दवा थी,
वो मेरा चुरा लेते, अपना मुझे गंवांते..
हिम्मत वो अग़र थोड़ी, इक बार फिर से करते,
तो मेरी तरह वो भी, तन्हा नहीं कहाते..
वो भी थे चोट खाए, 'घायल' मेरी तरह थे,
दो दिलजले वफ़ा की, नई दास्तां बनाते..
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