इक बोतल दो प्याले ले आ,
नाटक मत कर साले, ले आ,
हाँ सुन, चखने का सामान भी,
और दस-बारह धूम्र-पान भी,
जल्दी आजा, देर ना करियो,
दिन ही दिन, अंधेर ना करियो,
आजा कुछ माहौल बनाएं,
'शुक्रवार की शाम' मनाएं,
दिन हैं पूरे पाँच बिताए,
इस इक दिन की आस लगाए,
कम्प्यूटर को छोड़ के आजा,
टर्न्सटाइल को तोड़ के आजा,
धीमे-धीमे ग़ज़ल बजाएं,
साहिर-ग़ालिब को बुलवाएं,
काम किसीका खत्म हुआ है?,
ये तिलिस्म कब भस्म हुआ है?,
गोली ना दे, समझा साले,
यार हुं मैं, या क्लाइंट वाले?
कोई बहाना गा के आजा,
बहलाके फ़ुसला के आजा,
कुछ तो शर्म जगाले, ले आ,
सोडा किनली वाले ले आ,
इक बोतल दो प्याले ले आ,
नाटक मत कर साले, ले आ !!
Waah!! Mazaa Aa gaya :)
ReplyDeleteKeep Blogging!
इक बोतल दो प्याले ले आ
ReplyDeleteनाटक मत कर साले,
या तो ढीली कर ले जेब,
या जीजा की गाली खाले !
bahut khoob
ReplyDeletehar labz mein nasha hain
Thanks
http://drivingwithpen.blogspot.in/
wah ree botal teri maya
ReplyDeletebahut khoob andaj...
जब गम के बादल छाते है, तब मधुशाला हम जाते है,
ReplyDeleteजब गम का कोई इलाज नही, तब थोड़ी सी पी जाते है!
तू गम की दवा की पुडिया है,पीने में भी तू बढ़िया है,
मत पी,मत पी,सब कहते है, हम यार इसे पी जाते है!
MY RECENT POST.....काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...
बहुत खूब ! मज़ा आ गया..
ReplyDeleteबोतल पर बहुत अलग हट के लगी यह रचना बहुत खूब....सब कुछ लिखा आपने लेकिन ब्रांड नेम तो लिखा ही नहीं की कोण सी मागवाई है आपने....:-) ..
ReplyDelete....प्रशंसनीय रचना - बधाई
ReplyDeleteसही है, शुक्रवार की शाम !
ReplyDeletelage rahie kavivar....
ReplyDeleteamazing :D
ReplyDeleteये क्या सोचेंगे ? वो क्या सोचेंगे ?
ReplyDeleteदुनिया क्या सोचेगी ?
इससे ऊपर उठकर कुछ सोच, जिन्दगीं सुकून
का दूसरा नाम नहीं है
kaka ki shayari