दिल नहीं कमबख़्त कुछ सुनता हमारा, क्या करें,
हम सुने दिल की, तो दुनिया में गुज़ारा क्या करें..
है समझदारों को-काफ़ी क्या, पता तो है मग़र,
बेवक़ूफ़ों के शहर में, हम इशारा क्या करें..
हां अग़र सूरत पे जाते हम, तो कर लेते यकीं,
आदमी को आँख से पढ़ते हैं सारा, क्या करें..
ग़र उभरना चाहता हो कोई, तो तिनका बहुत,
डूबना मक़सद हो ग़र, तो फिर सहारा क्या करें..
ये सुना था हार कर ही जीत का दस्तूर है,
इश्क़ में हमने मग़र, हारा ही हारा, क्या करें..
हो नशा गर ऊपरी, सौ काट हैं, सौ नुस्ख हैं,
जो रगों में बस गया, उसका उतारा क्या करें..
इक ज़रा सी रोशनी की जुस्तजू दिल में जली,
जल गया दिल पर अंधेरा है, उजारा क्या करें..
मंदिरो में मन्नतें मांगें, या सजदे में झुकें,
या करें उम्मीद, कि टूटे सितारा, क्या करें
और की बाहों में तुम हो, फिर भी हम ही बेवफ़ा,
अब सनम तुम ही बताओ, हम तुम्हारा क्या करें..
हाल सब बेहाल है, मालूम है हमको मग़र,
दिलजलों की बज़्म में चेहरा संवारा क्या करें..
इक बला थी इश्क़, पल्ले पड़ गई थी इक दफ़ा,
अब तलक संभले नहीं हैं, हम दुबारा क्या करें..
ना अग़र मालूम हो अंजाम, तो भी हां करें,
हश्र जिसका हो पता, उसको गंवांरा क्या करें..
ना बुलाते हैं कभी अब हम, ना आता है कोई,
हम कहीं जब ख़ुद नहीं जाते, पुकारा क्या करें..
दिल में सूखी टहनियाँ लो, रूह में बंजर जड़ें,
फिर ज़रा दोहराओ, ये दिलकश नज़ारा क्या करें..
हर तरह खाली किया, कितनी दफ़ा भूला किए,
याद का लेकिन घटा ना ये पिटारा, क्या करें..
शाम जब रोया किए कल, सोच कर ये हंस दिए,
रात के ज़ख्मो को अब हम और खारा क्या करें..
कोई ग़र दिल की नहीं पूरी हुई, तो क्या हुआ,
कोशिशें तो कम नहीं करता बेचारा, क्या करें..
मुश्किलें जितनी मिली, उतनी सिखाई ज़ंन्दगी,
मुश्किलें ही ज़िन्दगी हैं, कोई चारा क्या करें..
कश्तियां तूफान में बढती रहीं, कहती रहीं,
हम बनीं मझधार की ख़ातिर, किनारा क्या करें..
इक कसर 'घायल', तरीका एक भी छोड़ा नहीं,
पर नहीं मरता हमारा ख़्वाव मारा, क्या करें..
अब इश्क किया तो अंजाम भुगतना ही होगा.............
ReplyDeleteसुंदर गज़ल.....................
अनु .
बहुत ही बेहतरीन रचना, एक शेर सुभानअल्लाह,,,,, आभार
ReplyDeleteवाह वाह क्या बात है!
ReplyDeleteउल्फ़त का असर देखेंगे!
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल हर शेर लाजबाब , मुबारक हो
ReplyDeletesundar, ati sundar.
ReplyDeleteBahut hi sunder...kya kare taarif kare bina raha nahi jaa raha....kya kare:):)
ReplyDeleteवाह !!!! आदित्य जी
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर गजल ...बेहतरीन पोस्ट
.
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....
अरे हमारी टिप्पणी कहाँ गयी..........???????????
ReplyDeleteमुश्किलें जिंदगी हो तो और चारा क्या करें !!
ReplyDeleteअच्छी ग़ज़ल !
awesome lines as always...:)
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
इतनी लंबी ग़ज़ल!!! लेकिन खूबसूरत हर शेर
ReplyDeleteपूरी की पूरी ग़ज़ल इतनी सुन्दर है की ...लफ्ज़ ढूंढें थे बहुत ...तारीफ उनकी हम करें.....पर उनके आगे सिल गयी बेबस जुबान ....अब क्या करें!!!!!
ReplyDeleteदिल को छूती है ये ग़ज़ल.
ReplyDeleteइक दुई होई तो ...
ReplyDeleteतेहि समझावां ...
केही समझाऊँ ,सब जग अंधा .....
मैं केही समझाऊँ .....सब जग अंधा ......
बहुत सुंदर लिखा है ....
बहुत बधाई एवं शुभकामनायें ....!!
बेहद शानदार प्रेममयी प्रस्तुति।
ReplyDeleteया करें उम्मीद, की टूटे सितारा क्या करें. वाह!
ReplyDelete...behad khoobsoorat gazal, Aditya!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
ReplyDeleteअनुपम भाव संयोजन लिए उत्कृष्ट प्रस्तुति।
ReplyDeleteहर शेर बहुत कमाल, एक से बढ़कर एक... दुनियादारी की बातें, पल-छिन की बातें... बधाई.
ReplyDeleteवाह वाह क्या गजल बुनी है आपने sir.
ReplyDeleteawesome
बधाई स्वीकारें
please welcome to my blog. It will be my pleasure
bhaut sundar Adity ji ....badhai,
ReplyDelete