कभी बादलों से, बरसती हैं बूंदें,
कभी अश्क़ बनकर, तरसती हैं बूदें,
कभी प्यास सबकी, बुझाती हैं बूंदें,
कभी आग़ दिल में, लगाती हैं बूंदें..
कभी बन पसीना, हैं ठंडक दिलाती,
कभी बन परेशानी, माथे पे आती,
हों कम तो हलक को, सुखाती हैं बूंदें,
हों ज़्यादा तो सब कुछ, बहाती हैं बूंदें..
जो बूंदों का संग हो, तो मुस्काए गागर,
जो बूंदो से जुड़ जाएं बूंदे, तो साग़र,
जो ग़र कद्र ना हो, मिटाती हैं बूंदें,
जो सीखो तो जीना, सिखाती हैं बूंदें..
जिसम में, ज़मीं में, हवा में हैं बूंदें,
जहां भी जहां है, जहां में है बूंदें,
जो सोचो तो जीवन, चलाती हैं बूंदें,
जो देखो तो दुनिया, बनाती हैं बूंदे..
बहुत खूब! उत्कृष्ट प्रस्तुति...
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति, की सुंदर रचना,,,,, ,
ReplyDeleteMY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: ब्याह रचाने के लिये,,,,,
बहुत सुन्दर........................
ReplyDeleteबूँद बूँद से घट भरता...................
:-)
बहुत सुन्दर रचना......
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति....
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुरत खूब ... पानी की ये नन्ही बूँदें क्या न कर जाती हैं ...
ReplyDeleteसुन्दर रचना ...
वाह !!! कितनी खूबसूरती से अपने पानी के महत्व को एक नयी उप्मा देदी, बहुत खूब....मज़ा आ गया पढ़कर आभार सहित शुभकामनायें।
ReplyDeletekya khub likha hai apne.....wah!!
ReplyDeleteWah. . .bohot sundar...
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