दिल जिस्म से बड़ा था, हम ख़ैर क्या मनाते,
पत्थर से लगा बैठे, हम चोट क्यूं ना खाते..
तुमसे वफ़ा की चाहत, ग़लती ही हमारी थी,
तुम थे दिमाग़ वाले, तुम इश्क़ क्या निभाते..
इल्ज़ाम-ए-तर्क-ए-ताल्लुक*, ख़ुदपे ही लिया हमने,
हरकत भला तुम्हारी, हम किस तरह बताते..
* इल्ज़ाम-ए-तर्क-ए-ताल्लुक -> रिश्ता तोड़ने का इल्ज़ाम
दुनिया ने बहुत पूछा, क्यूं हो गए जुदा तुम,
लब हमने यूं ना खोले, तुम मुंह कहाँ छुपाते..
कल रात मयकदे में, था जश्न दिलजलों का,
चर्चा-ए-बेवफ़ा था, तुम याद क्यूं ना आते..
हर एक सितम हंसके, 'घायल' गुज़ार देता,
दिल में बसाए रखते, जी भर के तुम सताते..
"कल रात मयकदे में, था जश्न दिलजलों का,
ReplyDeleteचर्चा-ए-बेवफ़ा था, तुम याद क्यूं ना आते.."
बहुत खूब आदित्य .....ब्लॉग वाकई पसंद आया
शुभकामनाये ...
प्रदीप
bahut khoob! keep it going!
ReplyDeleteThanks for visiting my blog, and for voting for me on indivine!
@Pradeep: Bahut bahut shukriya sir.. :)
ReplyDelete@Sheen: Thanks a lot .. i m glad u liked it. :)
ReplyDeletehey u write very well...:)
ReplyDeleteवाह वाह वाह ..कल रात मयकदे में, था जश्न दिलजलों का,
ReplyDeleteचर्चा-ए-बेवफ़ा था, तुम याद क्यूं ना आते... मज़ा अगया आपकी यह नज़्म पढ़कर समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/
@Ranjana: Thankuuuu very much. :):)
ReplyDeletebahut bahut shukriya Pallavi ji .. :)
ReplyDeleteyou r a pro.
ReplyDeletehathurwala cheena