Monday, January 30, 2012

तो कुछ बात बने.. (Part-2)


जिसे बरसों से लहू देके, मैने सींचा है,
वही इक फूल जो मुर्झाए, तो कुछ बात बने..

जो मेरे लाख बुलाने पे भी, नहीं आया,
सिसक-सिसक मुझे बुलाए, तो कुछ बात बने..

जो मेरी याद पे काबिज़ है, वही शख़्स कभी,
मुझे हर सांस पे भुलाए, तो कुछ बात बने..

जो कोई भी शराब को, ख़राब कहता हो,
वही खुशी-खुशी पिलाए, तो कुछ बात बने..

जिसे नफ़रत हो मुझसे, मुझसे भी कहीं ज़्यादा,
वो मुझे दिल में जो बसाए, तो कुछ बात बने..

अग़र जो आए झूठ बोलने, मेरे आगे,
वो लट में उंगलियां फिराए, तो कुछ बात बने..

मेरी ख़ातिर जो दिल में रक्खी है, जगह उसने,
छुपाए यूं, के वो दिखाए, तो कुछ बात बने..

मैं जिस हंसी के लिए, थाम रहा था आंसू,
वही दिल खोल के रुलाए, तो कुछ बात बने..

अभी तो मुझको दिन-ओ-रात में, है फ़र्क पता,
जो इश्क़ और बुरा छाए, तो कुछ बात बने..

वो जिस ख़ता पे ज़माना हुआ ख़िलाफ़ मेरे,
ज़रा मुझको भी तो बताए, तो कुछ बात बने..

7 comments:

  1. बहुत सुन्दर सृजन , बधाई.
    .
    कृपया मेरे ब्लॉग "meri kavitayen" पर भी पधारने का कष्ट करें, आभारी होऊंगा /

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    1. Bahut bahut shukriya sir..
      Aapke blog ka main niyamit paathak hun :)

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  2. बहुत बढ़िया..
    मगर पहला शेर कुछ अजीब है..
    सहेजा/लहू से सींचा फूल मुरझाए तो बात बनी कैसे???
    वो तो बात बिगड़ी ना??
    अन्यथा ना लें प्लीस.
    बाकी सभी लाजवाब..

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    1. Bahut bahut shukriya vidya ji.. :)

      Isme anyatha lene wali baat kahaan hai vidya ji..
      Galtiyaa/Kamiyaa pata chalengi tabhi to sudhaar hoga.. :)

      Waise pehle sher mein jo khayaal hai usme thoda vyangyaatmak( sarcastic) hone ki koshish ki hai..
      Ki baaki sabhi kuch to lut hi chuka hai.. bas ek hi phool/khwaahish baaki hai jise lahoo se seench kar abhi tak bachaaye huye hain.. ab wo bhi khatm ho jaaye to phir jhanjhat hi khatm ho jayein saare aur chalte banein duniya se..

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