Saturday, February 5, 2011

कुछ ऐसे ही...



दिए में तेल कम है और सहर की आस थोड़ी है,
गम का ढेर है, बस है खुशी जो पास थोड़ी है,
शमां उम्मीद की भी हौले से अब हो चली मद्धम,
या दे रोशनी या ले जो बाकी साँस थोड़ी है...

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दिलजले इस क़दर बन बैठे तेरे इश्क़ में ज़ालिम,
कि अब दिल ना जले तो दिलजले को दर्द होता है..

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जुर्रत करता हूँ रोज़ तुझी से छुप कर तुझको चाहने की,
पलकों से ढक के आँखों में तेरी तस्वीर बनाने की,
इस बात से शायद अंदाज़ा हो जाए मेरे हाल-ए-दिल का,
तेरी यादें भी कसमें देती हैं अब तो तुझे भुलाने की..

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मुझे बदनाम तू कर ले, उसे शौहरत अगर तू दे,
उसे ईनाम सारे दे, मुझे तोह्मत अगर तू दे,
जुदा तू कर ही देगा रब अगर तेरी यही ज़िद है,
कदम दो साथ में चल लूँ, मुझे मोहलत अगर तू दे.

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इल्म-ए-अंजाम-ए-मोहब्बत है, फिर भी मैं आगे बढ़ रहा हूँ,
नामुमकिन है उस पार जाना, फिर भी मैं कोशिश कर रहा हूँ,
दुनिया कहती थी है दवा, पीता था मैं भी जोश में,
मालूम था वो था ज़हर, अब धीरे-धीरे मर रहा हूँ..

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