सही थे रास्ते, तो क्यूँ, गलत अंजाम आया है,
भरम लगता है, लब पे जो, ख़ुदा का नाम आया है..
दुआ उसको भी दी, जिसने, बना अपना मुझे लूटा,
तो फिर क्यूँ नाम, दुनिया में, मेरा बदनाम आया है..
जो हमको सीख देते थे पराई पीर हरने की,
बिना कंधे जनाज़ा, कल ही उनका शाम आया है..
अभी तक थे फ़िज़ूली में, पशेमां और परेशां हम,
शुरू जीना किया तो मौत का फरमान आया है..
भला ही है, निकल जल्दी चलें ऐसे जहाँ से हम,
नहीं आता समझ किस भेस में शैतान आया है..
गलत कहते हैं कि, बाकी बचे हैं जानवर कुछ ही,
चबाता फिर नज़र इंसान को इंसान आया है..!!
* पशेमां होना - पछ्तावा करना
अदभुत रचना हर शेर लाजवाब
ReplyDeleteगलत कहते हैं कि, बाकी बचे हैं जानवर कुछ ही,
ReplyDeleteचबाता फिर नज़र इंसान को इंसान आया है..
lazavab . sunder rachna
----- sahityasurbhi.blogspot.com
@ Beqrar ji & Dilbag ji : Bahut bahut shukriya apka..
ReplyDeleteअच्छी रचना,बधाई
ReplyDeleteशुक्रिया अजय जी..
ReplyDeleteवाह ! बेहतरीन शेर कहे हैं साहब !! क्या बात है !!!
ReplyDeleteमिस्टर आदित्य (आदित्या, नाव-अ-डेज़ इट इज़ इन चलन),
ReplyDeleteआपको उर्दू ठीक से आती नहीं है क्या ? हा हा। हँसना मना है।
बहुत उम्दा!! वाह!
ReplyDeleteसभी का बहुत बहुत शुक्रिया...
ReplyDelete@किलर झपाटा जी .. आपको कहां गलती लगी .. बताने का कष्ट करें
Hi great reeading your blog
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