वाह सपूत रे, कितने वर्षों से तू कहता आया यूँ,
देखो फिर से आज सभी, मैं माँ को बहका आया हूँ..
पहले माँ ने अपने तन का हिस्सा तुझे बनाया था,
तब नन्हा सा जिस्म लिए तू इस दुनिया में आया था,
बोल नहीं पाता था, तब भी सारी बात समझती थी,
भूख तेरी सूरत पे पढ़के, गोद में तुझको रखती थी..
भूख नही माँ कहके, अब यारों संग खाते कहता है,
एक मज़े की बात सुनो, मैं माँ को बहका आया हूँ..
रात रात भर जाग के तेरी नींद वो पूरी करती थी,
फिर आँखो में दर्द लिए दिन भर मज़दूरी करती थी,
चोट तुझे गर पहुँचे, आँसू रोक नही वो पाती थी,
एक आह पे तेरी, सरपट दौड़ी दौड़ी आती थी..
अब रात-रात भर जश्न मनाता, यारों से तू कहता है,
तकिये को कंबल में रख, मैं माँ को बहका आया हूँ..
हाथ पकड़ तेरा जिसने तुझको चलना सिखलाया था,
गिरके कैसे उठते हैं ये भी तुझको बतलाया था,
वो कहती थी की बस बेटा, तू राह सही पर ही चलना,
आसान सड़क के लालच में ना ग़लत मोड़ पे तू मुड़ना..
अब नशे में बहके कदम लिए सिर-दर्द बता जा सोता है,
नींद में ख़ुद से कहता है, मैं माँ को बहका आया हूँ..
तेरी हर चाहत पूरी करने को सबसे लड़ती थी,
खेल-खिलौने, लड्डू-टॉफी जो कहता था करती थी,
जोड़े हुए जो पैसे थे, सब तेरे लिए उड़ाती थी,
पैसे पिता की जेब से, लेता तू था डाँट वो खाती थी..
"माँ महेँगाई मार रही अब, भेज ना पैसे पाऊँगा",
बीवी से फिर कहता है, मैं माँ को बहका आया हूँ..
पहुँचे ठेस ना तुझको यूँ-कर तेरी मान तो लेती है,
पर आँखें तेरी देखती है तो सब कुछ जान वो लेती है,
तुझको लगता है रोज़-ही तू, माँ को बहका लेता है, पर
तू कल भी उसका बेटा था तू आज भी उसका बेटा है..
माँ की ममता का तूने तो, अच्छा क़र्ज़ चुकाया है,
सच ही तू कहता है कि, तू माँ को बहका आया है..!!
यार आदि बहुत ही खूबसूरत लिखा है ...दिल को छू गयी ....
ReplyDelete"माँ महगाई" वाली लाइन सच्चाई दिखा देती है ...
hats off yaar...truely awsm
Thankuuu so much sirji.. bas aap aise hi hausla afzaai karte rahiye.. main aise hi likhta rahunga.. :)
ReplyDeleteLAJAWAB HAI........................
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