पाता है ना खोता है, ग़म-ए-उल्फ़त ही ढोता है,
वहां उम्मीद फूलों की, जहां काँटों को बोता है,
हुई पहली दुआ पूरी कि दूजी आ गई दिल में,
जिसे पाने को तड़पा था, उसे पाके भी रोता है..
हुई पहली दुआ पूरी कि दूजी आ गई दिल में,
जिसे पाने को तड़पा था, उसे पाके भी रोता है..
अच्छा लिखा है आपने
ReplyDeleteअपना ब्लॉग मासिक रिपोर्ट
इन्सान को संतोष कहाँ...? सुंदर लिखा है..बधाई
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना, धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा रचना , बधाई स्वीकार करें .
ReplyDeleteआइये हमारे साथ उत्तरप्रदेश ब्लॉगर्स असोसिएसन पर और अपनी आवाज़ को बुलंद करें .कृपया फालोवर बन उत्साह वर्धन कीजिये
सभी का बहुत बहुत धन्यवाद..
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