फिर आई उबासी, पलकों पे फिर भारीपन सा छाया है,
आज तो पूरा घंटा हमने, जगते हुये बिताया है,
रुक गये कदम गद्-दे को देखा जो नयनों ने चोरी से,
अंग रज़ाई के भी दिखते हैं कोमल इक गोरी से,
लेट पलंग पे लगता है कि मोक्ष सा हमने पाया है,
पापी धूप ने बापू का फिर डंडा याद दिलाया है,
खड़े हुये जो बिस्तर से, आँखों मे कुछ आसूं आए,
मुश्किल से फिर छुपके से दो चार कदम थे रख पाए,
नींद हमें बाहों में लेकर, कान में यूं फरमाती है,
जानू मुझसे दूर ना जाओ, याद तुम्हारी आती है,
प्रेम भी इतना करते हैं, दुख देख ना उसका पाते हैं,
ले आगोश में अपने उसको, स्वप्न लोक दिखलाते हैं,
पर प्रेम कहां इन दुनिया वालो की आँखो को जचता है,
मां कभी तो बापू के हाथों से ढोल गाल पे बजता है,
मुझसे मेरा प्यार छीनकर मुझको ये समझाते हैं,
सोने वाले खोते हैं और जागने वाले पाते हैं,
'गीता' की कुछ पंक्ती मेरी याद में वापस आती हैं,
दोहराता हूँ दोहा अपना, माँ झाड़ू ले आती हैं,
"कुछ उसका था ना तेरा है, कुछ पाना है ना खोना है,
चादर तानो वत्स ये जानो, सोना सच्चा सोना है.. !!"
नींद हमें बाहों में लेकर, कान में यूं फरमाती है,
ReplyDeleteजानू मुझसे दूर ना जाओ, याद तुम्हारी आती है,
प्रेम भी इतना करते हैं, दुख देख ना उसका पाते हैं,
ले आगोश में अपने उसको, स्वप्न लोक दिखलाते हैं,
पर प्रेम कहां इन दुनिया वालो की आँखो को जचता है,
सच कहा आपने। पता नही लोगों के पास प्रेम करने का समय नही होता पर नफरत करने के लिए समय कहॉ से लाते है।
शुक्रिया ehsas जी.
ReplyDeleteबहुत सुंदर आदित्य भाई।
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ब्लॉगवाणी: ब्लॉग समीक्षा का एक विनम्र प्रयास।
बहुत बहुत शुक्रिया ज़ाकिर भाई..
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