Sunday, February 6, 2011

माँ...


जो जन्म से पहले ही जी भर कोसी जाती है,
सहके जो सब, सुनके जो ताने रो सी जाती है,
जननी जो सबकी है, जिसे सब जनते डरते हैं,
वो माँ(औरत) देख कर मायूस वो माँ(देवी) हो सी जाती है..

पैदा होने भर से जो शिकन माथे पे लाती है,
जो फिर बात या बिन बात अक्सर मार खाती है,
जो माँ मारती है खाती थी तो ख़ुद भी रोती थी,
वो ही देखो कैसे अपना बचपन भूल जाती है..

स्वयं का पूरा जीवन बोझ ढोते जो बिताती है,
बेल-पाजेब, नथनी-नाथ से जो हांकी जाती है,
जिसका हर कदम हर राह पर डगमग ही पड़ता है,
सही फिर वो चले या हो ग़लत, ताड़ी ही जाती है.

जिसके नाम की गाली हृदय को चीर जाती है,
जो जन्म से मृत्यु तलक ख़ुद गाली खाती है,
पाप क्या है उसका, जानती ये भी नहीं है जो,
पुण्या करती है, फिर भी वो पापिन ही कहाती है..

जो मुस्कान लाती है, जो अश्रू को मिटाती है,
हमेशा देती है जो, ख़ुद कभी जो कुछ ना पाती है,
जिसका अधिकार है नभ, जिसको तिनका भी नहीं मिलता,
वो माँ देख कर मायूस वो माँ हो सी जाती है..

वो माँ देख कर मायूस वो माँ हो सी जाती है..

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