कुछ आगाज़ हैं बाकी, तो कुछ अंजाम बाकी हैं,
कैसे थाम लूं अपने कदम, कुछ काम बाकी हैं..
बेकार को तो चाट तलवे मिलते हैं तोहफे सभी,
कुछ काबिलों को मिलने बस ईनाम बाकी हैं..
हो धर्म वो या हो ख़ुदा, हैं सब यहाँ बेचे गये,
माँ की ममता का ही लगना, बस दाम बाकी है..
राम ख़ुद ही हैं यहाँ, लक्ष्मण के मस्तक चीरते,
रावण के फलते फूलते, सर तमाम बाकी हैं..
पहचान जाने सज्जनों की कब से धूमिल हो रही,
इक शैतान का ही होना बस बदनाम बाकी है..
संदेश कायरता भरे तो रोज़ ही हैं गूँजते,
जो दे लहू में ज़लज़ला, पैग़ाम बाकी हैं..
इंसानियत दिल से, बदन से आत्मा है मिट चुकी,
बस मिटने कुछ बलिदानों के अभी नाम बाकी हैं..
कर आस जिसकी हंसके थे, चूमे गये फंदे कभी,
भारत का चढ़ना उस फ़लक, उस मकाम बाकी है..
कुछ आगाज़ बाकी हैं, तो कुछ अंजाम बाकी हैं,
कैसे थाम लूं अपने कदम, कुछ काम बाकी हैं..
ye tu hi likhta hai kya???
ReplyDeleteyakin sa nhi hota...
by d way...good job...
Haanji main hi lihkta hun.. yakeen karle.. thanks.. :)
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