यादों में अक्सर ही उनकी, कुछ ऐसा रम से जाते हैं,
ग़म जाता भी हो हमसे तो, हम ही ना ग़म से जाते हैं..
कभी नाम हमारा गर उनसे, यूँ मौज में ही दे जोड़ कोई,
वो गुस्से से होते तो हम, हो लाल शर्म से जाते हैं..
हासिल की सोच हैं छोड़ चुके, पर फिर भी दिल बहलाने को,
इक झलक को तड़पा करते हैं, इक झलक पे दम से जाते हैं..
वो बेफिक्री से बाहों मे, किसी और की चहका करते हैं,
इक होती हैं दो जान वहाँ, ये सोच ही जम से जाते हैं..
दिल नादाँ अब भी कभी-कभी, फिर लगने की ज़िद करता है,
कुछ ज़ख्म पुराने दुखते हैं और, कदम ये थम से जाते हैं..
अब तो साक़ी भी देख हमें, बस नज़र झुकाया करता है,
मय भी अब आँख चुराती है, मयखाने कम से जाते हैं..
अपनी तो कब्र की मिट्टी से भी , उनकी खुशबू आती है,
हम चले गये दुनिया से पर, अब भी ना हम से जाते हैं..!!
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