Friday, February 25, 2011

हर मोड़ पर दो राह मिलती हैं..


कभी मिलती हैं मांगे से, कभी बिन चाह मिलती हैं,
अजब है ज़िन्दगी, हर मोड़ पर दो राह मिलती हैं..

चलूं गर राह पर दिल की, तो मिलती ठोकरें हर दम,
बढ़ाऊं होश से कदमों को, तो-भी है मिले बस ग़म,
जलाकर रूह को, दिल से निकलती आह चलती हैं,
अजब है ज़िन्दगी, हर मोड़ पर दो राह मिलती हैं..

मोहब्बत उनसे करते हैं, बड़ी मुश्किल से बतलाया,
सुना इनकार जो, दिल को बड़ी मुश्किल से समझाया,
मगर उन ही से टकराती, मेरी हर राह चलती है,
अजब है ज़िन्दगी, हर मोड़ पर दो राह मिलती हैं..

ज़रूरत से कभी दे ज़्यादा, वो विश्वास देता है,
कभी बस भूख देता है, उबलती प्यास देता है,
बढ़ाऊं या मैं रोकूं, जो दुआ में बांह चलती हैं..
अजब है ज़िन्दगी, हर मोड़ पर दो राह मिलती हैं..

मान जब हार लेता हूं, तभी उम्मीद दिखती है,
कई रमज़ान गुज़रें साथ, तब इक ईद दिखती है,
मनाऊँ मौत को तो, जीने की फिर चाह पलती है,
अजब है ज़िन्दगी, हर मोड़ पर दो राह मिलती हैं..

कभी मिलती हैं मांगे से, कभी बिन चाह मिलती हैं,
अजब है ज़िन्दगी, हर मोड़ पर दो राह मिलती हैं..

3 comments:

  1. इस बेहतरीन रचना के लिए बधाई ।

    ReplyDelete
  2. wah bahoot durust aur behad achchi rachna..badhai janab

    ReplyDelete