Tuesday, February 8, 2011

आज समझ में आता है..



यादों का लम्हा कोई जब आँखों पे छा जाता है,
बातें कितनी भूल चुका मैं, आज समझ में आता है,

वो बाबा का कहना, जब तक घर है समझ ना आएगा,
आँखें सब खुल जाएँगी जब घर से बाहर जाएगा,
अभी तो तुझको सारी बातें खेल ही मालुम पड़ती है,
राहें बड़ी कठिन हैं बेटा, खेल ना तू कर पाएगा..

दुनिया की राहों का जाला जब भी हमें फ़साता है,
बाबा के शब्दों का मतलब, आज समझ में आता है..

छोटी छोटी ग़लती पे जब अम्मा डाँट पिलाती थी,
सिर से ऊँचा हाथ उठाके, प्यार से चपत लगाती थी,
झूठे आँसू आँखो में भर, मन ही मन मैं हंसता था,
धीरे से फिर बाहों में ले, कोई सबक सिखाती थी..

धक्का दे जब कोई मेरे गिरे पे हँसी उड़ाता है,
मेरा गिरना तेरा उठाना, आज समझ में आता है..

बुद्धू बुद्धू कहके कितना मुझे सताया करती थी,
जा चुहिया जब मैं कहता, मुँह ग़ज़ब बनाया करती थी,
ग़लती खुद करती थी लेकिन मार मुझे खिलवती थी,
सब ही ऐसा करते हैं ये भी बतलाया करती थी..

हर कोई जब धोखा दे मुझको आगे बढ़ जाता है,
बुद्धू ही है भाई ये तेरा, आज समझ में आता है..

मुझको राज़ बताना और कहना, माँ को ना बतलाना,
मेरे तोड़े गमले की भी मार तेरा ख़ुद खा जाना,
वो कहना इसको हाथ लगा तो हड्डी-पसली तोड़ूँगा,
उठा-वो डंडा बिन सोचे मेरे झगड़ों में घुस जाना..

आज अकेला कभी तेरा ये छोटू जब घबराता है,
भैया तेरा हाथ पकड़ना, आज समझ में आता है..

रात का हर सपना जब मुझको घर वापस ले जाता है,
आँख सुबह क्यूँ नम मिलती है, आज समझ में आता है..!!

2 comments:

  1. "bhaiya tera hath pakdna" kafi kareeb se mahak aayi iski..
    prashanshaneey rachna adi :)

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  2. Likhte huye aankhein bhi nam thi sirji...

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