Friday, January 6, 2012

शुक्र है..शुक्रवार है..#31 ___________(तू तो ये ना पूछ, के क्यूं पीता हूं..)


तेरी आंखों के नशे में, मैं अब भी जीता हूं,
मेरी जाँ, तू तो ये ना पूछ, के क्यूं पीता हूं..

कभी तूने ही निगाहों से, पिलाई थी मुझे,
ये जो आदत है नशे की, ये लगाई थी मुझे,
मैं तब से अब तलक, नशे में ही तो बीता हूं,
मेरी जाँ, तू तो ये ना पूछ, के क्यूं पीता हूं..

शराब रोज़ यूं पीता हूं, के नशा उतरे,
ना हो मुमकिन पूरा, थोड़ा तो ज़रा उतरे,
चढ़ाने को नहीं, उतारने को पीता हूं,
मेरी जाँ, तू तो ये ना पूछ, के क्यूं पीता हूं..

मुझे अब होश में तो, सांस भी नहीं आता,
ना हूं बेहोश, तो एहसास भी नहीं आता,
जो ज़ख़्म तूने दिए, बस उन्ही को सीता हूं,
मेरी जाँ, तू तो ये ना पूछ, के क्यूं पीता हूं..

कोई मतलब नहीं मुझे, सही ग़लत से कोई,
ना तो जीवन से कोई, ना ही कयामत से कोई,
ना तो क़ुरान हूं मैं, और, ना ही गीता हूं,
मेरी जाँ, तू तो ये ना पूछ, के क्यूं पीता हूं..

तेरा भी शुक्र है, तू थी, जो ग़र नहीं होती,
तो मेरी मय, ये मेरी हमसफ़र नहीं होती,
तुझे दुआएं ही देता हूं, जब भी पीता हूं,
मेरी जाँ, तू तो ये ना पूछ, के क्यूं पीता हूं..

तेरी आंखों के नशे में, मैं अब भी जीता हूं,
मेरी जाँ, तू तो ये ना पूछ, के क्यूं पीता हूं..

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
    इसको पढ़ने से पाठकों को सुख मिलेगा और हम जैसे तुकबन्दी करने वालों को निश्चितरूप से लिखने की नई ऊर्जा और प्रेरणा भी मिलेगी!

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  2. प्रोत्साहन के लिए.. बहुत बहुत धन्यवाद सर.. :)

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  3. वह शानदार है आदित्य ,,,,पढने में मज़ा आया ....एकदम मस्त ....फ्लो अच्छा है !!

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  4. this is really beautiful and very well written. Loved the expression and depth in it..
    warm regards and keep up the good work! :)

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