Thursday, January 5, 2012

इक बार बस रुला दे कोई..



मेरी मुस्कान को जला दे कोई,
मुझे अश्क़ों का सिलसिला दे कोई,
मेरी आँखों में कुछ मिला दे कोई,
मुझे इक बार बस रुला दे कोई..

सुना है, रोने से ग़म कम होगा,
ना रोना, ख़ुद पे ही सितम होगा,
मुझे भी तो कोई मरहम हो ज़रा,
दिल सूखे, ये आँख नम हों ज़रा ,
आंसू जम गए गला दे कोई,
मुझे इक बार बस रुला दे कोई..

सुबह से शाम तक नहीं आते,
कभी अंजाम तक नहीं आते,
मेरे दिल में ही कुछ ख़राबी है,
मेरे अश्क़ों का ये शराबी है,
न पी सके, वो ज़लज़ला दे कोई,
मुझे इक बार बस रुला दे कोई..

कोई वादा भी ना ख़िलाफ़ दिखे,
मैं इतना रोऊं के सब साफ़ दिखे,
है जितना बोझ सब उतर जाए,
क़तरा-क़तरा हो, बिख़र जाए,
बस, पहला क़दम चला दे कोई,
मुझे इक बार बस रुला दे कोई..

कोई दवा सी कुछ पिला दे कोई,
मेरी आदत मुझे भुला दे कोई,
मेरी आँखों में कुछ मिला दे कोई,
मुझे इक बार बस रुला दे कोई..

8 comments:

  1. भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...

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  2. Bahut abhut shukriya Ana ji, Pallavi ji.. :)

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  3. "मेरी आँखों में कुछ मिला दे कोई,
    मुझे इक बार बस रुला दे कोई.."

    गहराई में डूब कर लाए सच्चे मोती सी कविता।
    भावपूर्ण अभिव्यक्ति।

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  4. Bahut bahut dhanyawaad Meenakshi ji.. :)

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  5. jab rona aa hi jata hai to koi ansu rok nahi pata...or jab rona na aaye to koi rula nahi sakta....aap rulne ki request kar rahe hain that means u r a strong person...:)...bahut accha likhten hain....:)

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  6. @Ranjana: Brilliant observation i must say...
    String bhale hi sahi.. par kabhi kabhi lagta hai ki ro lene kuch to halka feel hoga.. isliye ichha hoti hai.. :)
    Bahut bahut shukriya.. :)

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