Tuesday, January 31, 2012

तो कुछ बात बने..(Part-3)



उसे यकीं है, सच्चा इश्क़ बस वहम है कोई,
हमें इक बार आज़माए, तो कुछ बात बने..

जिसे रुहानी मोहब्बत पे हो, यकीं बाक़ी,
वो मेरे यार से फ़र्माए, तो कुछ बात बने..

वो आए और नमक लगाए, मेरे ज़ख़्मो पे,
लगाए, ख़ुद ही तिल्मिलाए, तो कुछ बात बने..

वो जिसके पास हो जवाब, सब सवालों का,
मेरी बातों पे सर खुजाए, तो कुछ बात बने..

ये दिल की आग है, पानी से भला बुझती है,
ये आग प्यार से बुझाए, तो कुछ बात बने..

लो फिर से छाई घटा, फिर वही ग़रीब की आह,
जो अबके रोटियां बरसाए, तो कुछ बात बने..

जो कहता है, के कोई चीज़ नहीं नामुमकिन,
वो इश्क़ दिल में जो जगाए, तो कुछ बात बने..

मेरी तो आदत है, रोज़ उसपे मरने की,
कभी वो मुझपे जां लुटाए, तो कुछ बात बने..

जो सूरमा हो, तीस मार खां हो, सबसे बड़ा,
मेरे दिल से उसे हटाए, तो कछ बात बने..

यूं मंदिरों में लगाने से भोग, क्या हासिल,
किसी भूखे को कुछ खिलाए, तो कुछ बात बने..

Monday, January 30, 2012

तो कुछ बात बने.. (Part-2)


जिसे बरसों से लहू देके, मैने सींचा है,
वही इक फूल जो मुर्झाए, तो कुछ बात बने..

जो मेरे लाख बुलाने पे भी, नहीं आया,
सिसक-सिसक मुझे बुलाए, तो कुछ बात बने..

जो मेरी याद पे काबिज़ है, वही शख़्स कभी,
मुझे हर सांस पे भुलाए, तो कुछ बात बने..

जो कोई भी शराब को, ख़राब कहता हो,
वही खुशी-खुशी पिलाए, तो कुछ बात बने..

जिसे नफ़रत हो मुझसे, मुझसे भी कहीं ज़्यादा,
वो मुझे दिल में जो बसाए, तो कुछ बात बने..

अग़र जो आए झूठ बोलने, मेरे आगे,
वो लट में उंगलियां फिराए, तो कुछ बात बने..

मेरी ख़ातिर जो दिल में रक्खी है, जगह उसने,
छुपाए यूं, के वो दिखाए, तो कुछ बात बने..

मैं जिस हंसी के लिए, थाम रहा था आंसू,
वही दिल खोल के रुलाए, तो कुछ बात बने..

अभी तो मुझको दिन-ओ-रात में, है फ़र्क पता,
जो इश्क़ और बुरा छाए, तो कुछ बात बने..

वो जिस ख़ता पे ज़माना हुआ ख़िलाफ़ मेरे,
ज़रा मुझको भी तो बताए, तो कुछ बात बने..

Sunday, January 29, 2012

तो कुछ बात बने.. (Part - 1)



कोई जो मुझको समझ पाए, तो कुछ बात बने
समझ के मुझको भी समझाए, तो कुछ बात बने..

यूंही कब तक, तुम्हारी हाँ में हाँ, भरता रहूं मैं,
ज़रा यकीं सा भी आ जाए, तो कुछ बात बने..

मैं तन्हा रात के आलम में, तन्हा लेटा हूं,
जो उसकी याद, तब ना आए, तो कुछ बात बने..

कोई परवाना जल मरे, तो जल मरे, मुझे क्या,
जो शमा ख़ुद को ही झुलसाए, तो कुछ बात बने..

वो जिसका नाम लहू से, रगों पे लिखा हो,
वो अपने हाथ से मिटाए, तो कुछ बात बने..

मैं कब तलक पुराने ज़ख़्म, हरे करता रहूँ,
वो फिर से आए और सताए, तो कुछ बात बने..

किसी ने मारने का जान से, किया था कभी,
वो आए वादे को निभाए, तो कुछ बात बने..

वो जिसके नाम से बदनाम हुआ, नाम मेरा,
उसे लग जाए मेरी हाए, तो कुछ बात बने..

वो जिसको राज़ बताया था, छुपाने के लिए,
वो सारी दुनिया को बताए, तो कुछ बात बने..

ख़ुदा के नाम पे लगाते हैं जो, आग यहां,
ख़ुदा ख़ुद उनके घर जलाए, तो कुछ बात बने..



नोटः यह ग़ज़ल कुछ लम्बी हो गई लिखते लिखते, इसलिये भागों में प्रस्तुत करूंगा..:)

Friday, January 27, 2012

शुक्र है..शुक्रवार है..#33


ये ज़िंदगी है-क्या-जाने, वो-जिसने जी-ही-नहीं,
उसे क्या होश का पता है, जिसने पी ही नहीं,
जो चहते हो जानना, के क्या है मय का असर,
तो परिंदे से पूछ लो, है क्या आज़ाद सफर..

जो दिल को, दुनिया के सब कायदे, लगते हों बुरे,
अगर जो ज़ख़्म, दवा देख के, होतें हो हरे,
तो आओ तुम भी, महफ़िलों में पीने वालों की,
पनाह में आओ, तुम भी, मर के जीने वालों की..

ना उनकी बात सुनो, जिनको कुछ पता ही नहीं,
जिन्हे मालूम नहीं, उनकी कुछ ख़ता ही नही,
जो नहीं पीते है, उनको नहीं चोट मिली,
उन्हे क्या दर्द पता, लगती है हर बात भली..

किसी के टूटे हुए दिल की हक़ीक़त समझो,
किसी के उजड़े हुए घर की मुसीबत समझो,
किसी के पीने की वजह क्या है, राज़ सुनो,
किसी अंजाम से पहले, कोई आग़ाज़ सुनो..

जिसे नहीं है ज़रूरत, ना सही, आज नहीं,
वही कल मयकदे में होगा यहीं, आज नहीं,
उसे पता नहीं अभी, के अभी पी ही नहीं,
ये ज़िंदगी है क्या जाने, के उसने जी ही नहीं..
ये ज़िंदगी है क्या जाने, वो जिसने पी ही नहीं..

Friday, January 20, 2012

ज़माना ख़ुद सही होता, तो बदल जाते हम.


तू झूठ ही सही, कहता तो, बहल जाते हम,
ज़हर ही देता, तू देता तो, निगल जाते हम..

बड़ा ही सर्द रवैया रहा, तेरा हम से,
ज़रा सी गर्म-दिली से, क्या उबल जाते हम..

तू ही कहता था कि पत्थर हो, तो मज़बूत रहे,
जो तू कह देता हमें मोम, पिघल जाते हम..

तू बाहें खोल खड़ा होता, पार शोलों के,
हाँ चले जाते हम, चाहे तो जल जाते हम..

ये तो अच्छा हुआ, पहले से चोट खाए थे,
नहीं तो इक दफ़ा तो, तुझसे भी छल जाते हम..

है बुरा या के भला, दिल बता ही देता है,
नहीं होता, तो तेरे रंग में, ढल जाते हम..

हमें एहसास ही नहीं हुआ, नशे का कोई,
जो पता होता कि बहके हैं, संभल जाते हम..

बड़ी जल्दी हमें क़ाफ़िर बता दिया, वाइज़,
तेरी मस्जिद में, नहीं आज, तो कल जाते हम..

ज़माना हमको, ज़माने से ग़लत कहता है,
ज़माना ख़ुद सही होता, तो बदल जाते हम..

ज़रा उम्मीद के चक्कर में फंस गए 'घायल',
जो होते नामुराद, कब के निकल जाते हम..

Tuesday, January 17, 2012

बचपन के ख़ज़ाने का बक्सा…


वो बचपन के ख़ज़ाने का बक्सा…
क्या क्या नहीं था उसमें,
वो 1 आने, 2 पैसे के सिक्के,
वो आइस-क्रीम की डंडियों का पेन स्टैण्ड,
च्वींग गम के साथ मिले क्रिकेट कार्ड,
रसना के डिब्बे में निकले रबर के कीड़े मकोड़े,
मेले से खरीदा हुआ 10 तरह की आवाज़ निकालने वाला खिलौना,
किसी जिगरी दोस्त का दिया, हाथ से बनाया हुआ, नए साल का कार्ड,
वो गलियों की मिट्टी में जीते हुए कंचे,
वो टूटे हुए गुड्डे का सर,
रंगीन पन्नो वाली छोटी सी डयरी,
बूमर के 100 छिलके इकट्ठे करके मिला वो ईनाम,
चाचा-भतीजा चूरन का वो पैकेट,
पहला बटुआ,
एक सूखा हुआ पता,
एक पुरानी कैमरे की रील,
हिलाने पर 2 तस्वीरें दिखाने वाला मिकी माउस का स्टीकर,
एक काँच का, और एक लकड़ी का पेन,
कागज़ का बनाया हुआ मेंढ़क,
टूटी हुई ऑडियो केसट का एक चक्कर,
स्पीकर को तोड़कर निकाली हुई चुम्बक,
लाल इंक से निशान बना कर घेरा हुआ-
-दो रुपये के नोट पर नीले बिन्दुओं के बीच लिखा हुआ P.B.C. ,
वो महंगी वाली लम्बी रबर, जो कभी इस्तेमाल ही नहीं की,
पहले पोस्टर कलर के रंगों की शीशी,
भगवान जी की तस्वीर,
और बचपन की लिखी वो पहली कविता...

तब से आज तक,
बहुत सी कीमती चीज़ें आई ज़िन्दगी में,
पर कोई इतनी अनमोल नहीं हुई-
-कि उस बचपन के ख़ज़ाने के बक्से में जगह बना पाए...

Friday, January 13, 2012

शुक्र है..शुक्रवार है..#32


पिलाए जा, पिलाए जा, पिलाए जा साक़ी,
पिलाए जा, हैं जब तलक मेरी सांसें बाक़ी,
किसे पड़ी है के ढूंढे कोई वजहा, थम के,
पिला खुशी में खुशी की, या ग़म मे ग़म के,
है जितनी भी शराब, सारी कर दे नाम मेरे,
तू खाली होने से पहले ही, भर दे जाम मेरे,
कोई भी हद ना बता, घर को नहीं जाना है,
मेरा बस यार इक तू, मयकदा ठिकाना है,
पिलाए जा, ना तू महबूब है, ना माँ, साक़ी,
पिलाए जा, हैं जब तलक मेरी सांसें बाक़ी..

Wednesday, January 11, 2012

बचाए रखते हैं..



रगों में थोड़ा सा लहू, बचाए रखते हैं,
बड़ी ही मुश्क़िलों से रूह, बचाए रखते हैं..

जो हमको, दूसरों के राज़ बता देता है,
उसी इंसान से, पहलू बचाए रखते हैं..

कई लाखों के लिबासों में, सब दिखाते हैं,
कई कत्तर* में, आबरू बचाए रखते हैं..
 *कत्तर-- piece of torn cloth                                  

जो किसी और की होती, तो टूट ही जाती,
ये तो हम हैं, के आरज़ू बचाए रखते हैं..

जिसे जहां में हमसे और बुरा, कोई नहीं,
उसी की, दिल में जुस्तजू बचाए रखते हैं..

कोई बोले, तो नहीं बोलते हैं कुछ 'घायल',
कोई सुन ले, तो गुफ़्तगू बचाए रखते हैं..

Monday, January 9, 2012

चर्चा-ए-बेवफ़ा था, तुम याद क्यूं ना आते..


दिल जिस्म से बड़ा था, हम ख़ैर क्या मनाते,
पत्थर से लगा बैठे, हम चोट क्यूं ना खाते..

तुमसे वफ़ा की चाहत, ग़लती ही हमारी थी,
तुम थे दिमाग़ वाले, तुम इश्क़ क्या निभाते..

इल्ज़ाम-ए-तर्क-ए-ताल्लुक*, ख़ुदपे ही लिया हमने,
हरकत भला तुम्हारी, हम किस तरह बताते..
* इल्ज़ाम-ए-तर्क-ए-ताल्लुक -> रिश्ता तोड़ने का इल्ज़ाम

दुनिया ने बहुत पूछा, क्यूं हो गए जुदा तुम,
लब हमने यूं ना खोले, तुम मुंह कहाँ छुपाते..

कल रात मयकदे में, था जश्न दिलजलों का,
चर्चा-ए-बेवफ़ा था, तुम याद क्यूं ना आते..

हर एक सितम हंसके, 'घायल' गुज़ार देता,
दिल में बसाए रखते, जी भर के तुम सताते..

Friday, January 6, 2012

शुक्र है..शुक्रवार है..#31 ___________(तू तो ये ना पूछ, के क्यूं पीता हूं..)


तेरी आंखों के नशे में, मैं अब भी जीता हूं,
मेरी जाँ, तू तो ये ना पूछ, के क्यूं पीता हूं..

कभी तूने ही निगाहों से, पिलाई थी मुझे,
ये जो आदत है नशे की, ये लगाई थी मुझे,
मैं तब से अब तलक, नशे में ही तो बीता हूं,
मेरी जाँ, तू तो ये ना पूछ, के क्यूं पीता हूं..

शराब रोज़ यूं पीता हूं, के नशा उतरे,
ना हो मुमकिन पूरा, थोड़ा तो ज़रा उतरे,
चढ़ाने को नहीं, उतारने को पीता हूं,
मेरी जाँ, तू तो ये ना पूछ, के क्यूं पीता हूं..

मुझे अब होश में तो, सांस भी नहीं आता,
ना हूं बेहोश, तो एहसास भी नहीं आता,
जो ज़ख़्म तूने दिए, बस उन्ही को सीता हूं,
मेरी जाँ, तू तो ये ना पूछ, के क्यूं पीता हूं..

कोई मतलब नहीं मुझे, सही ग़लत से कोई,
ना तो जीवन से कोई, ना ही कयामत से कोई,
ना तो क़ुरान हूं मैं, और, ना ही गीता हूं,
मेरी जाँ, तू तो ये ना पूछ, के क्यूं पीता हूं..

तेरा भी शुक्र है, तू थी, जो ग़र नहीं होती,
तो मेरी मय, ये मेरी हमसफ़र नहीं होती,
तुझे दुआएं ही देता हूं, जब भी पीता हूं,
मेरी जाँ, तू तो ये ना पूछ, के क्यूं पीता हूं..

तेरी आंखों के नशे में, मैं अब भी जीता हूं,
मेरी जाँ, तू तो ये ना पूछ, के क्यूं पीता हूं..

Thursday, January 5, 2012

इक बार बस रुला दे कोई..



मेरी मुस्कान को जला दे कोई,
मुझे अश्क़ों का सिलसिला दे कोई,
मेरी आँखों में कुछ मिला दे कोई,
मुझे इक बार बस रुला दे कोई..

सुना है, रोने से ग़म कम होगा,
ना रोना, ख़ुद पे ही सितम होगा,
मुझे भी तो कोई मरहम हो ज़रा,
दिल सूखे, ये आँख नम हों ज़रा ,
आंसू जम गए गला दे कोई,
मुझे इक बार बस रुला दे कोई..

सुबह से शाम तक नहीं आते,
कभी अंजाम तक नहीं आते,
मेरे दिल में ही कुछ ख़राबी है,
मेरे अश्क़ों का ये शराबी है,
न पी सके, वो ज़लज़ला दे कोई,
मुझे इक बार बस रुला दे कोई..

कोई वादा भी ना ख़िलाफ़ दिखे,
मैं इतना रोऊं के सब साफ़ दिखे,
है जितना बोझ सब उतर जाए,
क़तरा-क़तरा हो, बिख़र जाए,
बस, पहला क़दम चला दे कोई,
मुझे इक बार बस रुला दे कोई..

कोई दवा सी कुछ पिला दे कोई,
मेरी आदत मुझे भुला दे कोई,
मेरी आँखों में कुछ मिला दे कोई,
मुझे इक बार बस रुला दे कोई..

Tuesday, January 3, 2012

इक़ बार इश्क़ में..


इक़ बार इश्क़ में वो, मुझको भी आज़माते,
दुनियाँ में हर किसी को, ना बेवफ़ा बताते..

बस दूर से हमेशा, मुझको बुरा बताया,
थोड़ा सा पास आते, तो और पास आते..

इतनी सी आरज़ू थी, इतनी सी बस तमन्ना,
मैं जिनपे लुट मरा था, वो मुझपे जाँ लुटाते..

दोनो के टूटे दिल की, आसान सी दवा थी,
वो मेरा चुरा लेते, अपना मुझे गंवांते..

हिम्मत वो अग़र थोड़ी, इक बार फिर से करते,
तो मेरी तरह वो भी, तन्हा नहीं कहाते..

वो भी थे चोट खाए, 'घायल' मेरी तरह थे,
दो दिलजले वफ़ा की, नई दास्तां बनाते..