Friday, December 9, 2011

शुक्र है..शुक्रवार है..#27



मैं इसको पा बहकता हूं, ये मेरी हो महकती है,
मैं तब जाके सुलझता हूं, ये जब मुझमें उलझती है,
ना मैं सबको समझता हूं, ना सब मुझको समझते हैं,
मैं जब ख़ुदको नहीं पाता, मय तब मुझको समझती है..

3 comments:

  1. मैं तब जाके सुलझता हूँ ।ये जब मुझमें उलझती है
    वाह बहुत खूब...

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  2. bahut bahut shukirya pallavi ji, alka ji. :)

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