कुछ याद हैं बाकी इस दिल में, कुछ बात हैं बाकी इस दिल में,
दिल ख़ुद है ख़तम होने को पर, जज़्बात हैं बाकी इस दिल में..
के देख उन्हे फिर धड़का है, फिर सांस भरी है मुश्क़िल में,
आवाज़ भले दबती सी हो, कुछ साज़ हैं बाकी इस दिल में..
वो पाक़ है दिल, ये ख़ाक है दिल, दिक्क़त है बड़ी ही दाखिल में,
है इल्म, नहीं मुमकिन फिर भी, फ़रियाद है बाकी इस दिल में..
दी मौत मगर ना दर्द दिया, कोई और क्या मांगे क़ातिल में,
झूठा ही सही, इक़रार किया, एहसान है बाकी इस दिल में..
इक जाहिल में, इक काहिल में, एक क़ाबिल में, इक बिस्मिल में,
कर कर के टुकड़े राख़ किए, पर आग है बाकी इस दिल में..
परवाज़ थमी, हैं पंख लुटे, ना आस बची है मंज़िल में,
अरमान अभी भी लेकिन कुछ, आज़ाद हैं बाकी इस दिल में..
मझधार को गर साहिल समझो, क्या फ़र्क है कर्म-ओ-हासिल में,
ग़म में खुश रहकर जीने के, कुछ राज़ हैं बाकी इस दिल में..
जब बात चले इस दुनिया की, 'घायल' को-ना रखना शामिल में,
शैतान दिलों की बस्ती में, इंसान है बाकी इस दिल में..!!
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साज़ -- harmony ख़ाक -- dirt
दाखिल -- enter इल्म -- knowledge
जाहिल -- illiterate काहिल -- lazy
बिस्मिल -- devotee परवाज़ -- flight
वो पाक़ है दिल, ये ख़ाक है दिल, दिक्क़त है बड़ी ही दाखिल में,
ReplyDeleteहै इल्म, नहीं मुमकिन फिर भी, फ़रियाद है बाकी इस दिल में..बहुत अच्छा जरी रखो
अपने भावो को तराश कर अमूल्य रचना का रूप दिया है.
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