हुआ था कल बुरा मेरा, मगर कल तो भला होगा,
कोई जानी सी पहचानी सी ख़ुशबू, है हवा में फिर,
किसी मासूम ने ताज़ा कोई, सपना तला होगा..
नहीं यूंही मकान-ए-बेवफ़ा में, है शमां रौशन,
कोई तो रूह सुलगी है कहीं, या दिल जला होगा..
वो निकले हैं गली में, सज-संवर कर, चाँद फिर बनकर,
किसी नादान का सूरज समझ का, फिर ढला होगा..
हुए जो इश्क़ में अंधे, दिखी तक़दीर जन्नत सी,
भला मुँह को फिराने से, कभी तूफां टला होगा..
ना जाने हैं हुए कितने क़तल, उनकी निगाहों से,
मगर ये मौत भी ऐसी, के ना मरना खला होगा..
हैं कुछ ऐसे भी मय्यत में, हंसी रोके नहीं रुकती,
नहीं कोई निशां, पर कोई तो खंजर चला होगा..
उतरते देख भी उसको, सुकूं मिलता नहीं है के,
मुझे मालूम है, कल सिर की मेरे फिर बला होगा..
ये मुमकिन ही नहीं, के वो बिना मतलब मदद् कर दें,
नहीं माँ का ये दिल, जो आह सुनते ही गला होगा..
ना मेरे ऐब गिनवाओ, ख़ुदा में कुछ यकीं रखो,
जो है मेरे लिये बेहतर, वही मुझमें डला होगा..
मिले टुकड़ा जो रोटी का तड़पते पेट, तो क़ीमत,
भला क्या भूख समझेगा, जो महलों में पला होगा..
धरम भी है यही, और आज की दुनिया का सच भी है,
जो सबका छीन खाएगा, वही फूला फला होगा..
जुनूं ऐसा चढ़ा हो के, नज़र मंज़िल हो आती बस,
सभी छोड़ेंगे रस्ता, सामने जब ज़लज़ला होगा..
सभी हैं चोट खाए, पर नहीं तुझसा कोई 'घायल',
मज़ा लेने को ज़ख़्मों पे नमक, जो ख़ुद मला होगा.. !!
P.S. : Writing with pen name for the first time, 'घायल'..
kya baat hai bahi..ati uttam...
ReplyDeletebest is:
ये मुमकिन ही नहीं, के वो बिना मतलब मदद् कर दें,
नहीं माँ का ये दिल, जो आह सुनते ही गला होगा..
yu to sare hi ek se ek hai...
daad kubool kijiye "घायल" jeeee...
ये मुमकिन ही नहीं, के वो बिना मतलब मदद् कर दें,
ReplyDeleteनहीं माँ का ये दिल, जो आह सुनते ही गला होगा..
ना मेरे ऐब गिनवाओ, ख़ुदा में कुछ यकीं रखो,
जो है मेरे लिये बेहतर, वही मुझमें डला होगा..
Kya Koob Kahi ha
वाह पहली बार पढ़ा आपको बहुत अच्छा लगा.
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