Tuesday, March 29, 2011

आँखें..



गला सूखा तड़पता, आँख ये नम हो कराहती हैं,
बुझेगी प्यास कैसे, नीर सारा दे बहाती हैं..

करूं गर बंद पलकें, तो 'उन्हे' हैं देख रो देती,
ना गर झपकूं, तो पाने को झलक इक, दौड़ जाती हैं..

गुज़ारी रात पूरी फिर है, कल खिड़की पे ही बैठे,
उजाले में कभी परछाई में, 'उनको' दिखाती हैं..

कभी पूनम का गर गलती से, इनको चाँद दिख जाए,
बड़ी खुश हो ये, 'उस' चेहरे पे इक टक दे जमाती हैं..

सुबह क्यूं सूजती हैं, ढूँढा जब ये राज़ तो जाना,
ये 'उनको' देख ख्वाबों मे, खुशी से फूल जाती हैं..

नहीं मुमकिन खुली रहके है, 'उनको' देख पाना तो,
ये धड़कन थाम, सांसें रोक भी, दीदार चाहती हैं.. 

No comments:

Post a Comment