मै इंसा हूं, नहीं आदत मुझे, इंसां सताने की,
नहीं कम दर्द हैं पर, एक आदत मुस्कुराने की..
सभी जीते हैं, सब ही वक़्त अपना काट लेते हैं,
खड़े कुछ हों तने, बाकी तो तलवे चाट लेते हैं,
छुपाते हैं वो, जिनपे है ज़रूरत से कहीं ज़्यादा,
है जिनपे एक ही रोटी, वो आधी बांट लेते हैं ..
खुशी सब बाटने की, ग़म अकेले झेल जाने की,
नहीं कम दर्द हैं पर, एक आदत मुस्कुराने की..
मिला है एक जीवन, क्यूँ भला इसको ग़ंवांते हो
जो खुद के काम बस आए, उसे क्यूँ जां बताते हो,
किसी चेहरे पे रौनक दो, तो ख़ुद ही आशियां चमके,
किसी के आंसुओं से घर में दीपक क्यूँ जलाते हो,
जिसे तक़लीफ हो, खुल के उसे हंसना सिखाने की,
नहीं कम दर्द हैं पर, एक आदत मुस्कुराने की..
कोई गर हो ज़रूरत में, बढ़ाओ, हाथ ना रोको,
किसी को दे खुशी, दो साथ ऐसा, साथ ना रोको,
बुरा पहले ही क्या कम है, बुरा जो और कहते हो,
भला बोलो, जो दिल को दे सुकूं, वो बात न रोको,
मैं जिससे भी मिलूं, अपनी उसे आदत लगाने की,
नहीं कम दर्द हैं पर, एक आदत मुस्कुराने की..!!
No comments:
Post a Comment