मोहब्बत क्या सितम है, अब तलक एहसास करता हूं,
मैं जिसके वार से घायल, उसी की आस करता हूं,
बेहोशी में, ख़यालों में जो उनके, आह भर बैठूँ,
तो कहते हैं, कड़ी जां हूँ, अभी तक सांस भरता हूँ..
उन्हे क्या इश्क़ समझाऊं, लिये सीने में पत्थर हैं,
ना वाइस मैं सही, तो वो भी मुझसे ख़ाक बेहतर हैं,
मगर दिल है जो ठहरा है, के उनकी हो झलक हासिल,
बिना दीदार उठ जाऊं, तो फिर क्या और बद्तर है..
नहीं किस्मत वो इस दिल की, समझता भी नहीं है ये,
तड़पता है, बिना उनके, धड़कता भी नहीं है ये,
किये तैयार बैठे हैं जनाज़ा, जो मेरे दर पे,
तमाशा देख कहते हैं, लो मरता भी नहीं है ये..!!
क्या बात है भाई!! आनंद आ गया
ReplyDeleteplease सही टैग का प्रयोग भी करें
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बहुत बढ़िया ... मन के सुंदर भाव
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