Sunday, July 10, 2011

वो मुझको इश़्क में एहसान गिनाते ही रहे..


मुझे रह-रह के सदा, याद वो आते ही रहे,
मेरे टुकड़े हुए दिल को, वो जलाते ही रहे..

ये ना मुमकिन था, सितम उनके रुलाते मुझको,
मैं हँसके सहता रहा, वो भी हँसाते ही रहे..

उन्हे मालूम था, आशिक़ को सताने का मज़ा,
तभी रुक-रुक के मोहब्बत, वो जताते ही रहे..

वो लेके आए कभी ग़ैर से, जब भी तोह्फ़ा,
छुपाया इस क़दर, के मुझको दिखाते ही रहे..

मेरी तक़दीर में, उनकी वफ़ाओं का वो सफ़ा,
मैं बनाता रहा जिसको, वो मिटाते ही रहे..

फ़साना मेरा और, मैं ही था जो फ़ंसता रहा,
झुका के नज़रें वो, जाल बिछाते ही रहे.. 

युं हर इक ज़ख़्म भुलाता रहा, के आख़िरी है,
मैं उठता ही रहा, वो मुझको गिराते ही रहे..

लगाके दिल को, निभाता ही गया बस 'घायल',
वो मुझको इश़्क में एहसान गिनाते ही रहे..

4 comments:

  1. वो मुझको इश़्क में एहसान गिनाते ही रहे.. ...Wah bhai Awesome.

    What a beauty & meaning in these lines ...Great Lines
    ये ना मुमकिन था, सितम उनके रुलाते मुझको,
    मैं हँसके सहता रहा, वो भी हँसाते ही रहे..
    वो भी हँसाते ही रहे.

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  2. मुझे रह-रह के सदा, याद वो आते ही रहे,
    मेरे टुकड़े हुए दिल को, वो जलाते ही रहे..

    sundar bahut hi sundar

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  3. निराला अंदाज है. आनंद आया पढ़कर...
    कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-

    संजय कुमार
    हरियाणा
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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